आज वैशाख
पूर्णिमा है और सीमा के उस पार झूठ की मंडी में बहार है । नेता अभिनेता से लेकर सड़क
पर खड़ा आमआदमी तक झूठ में नहा-नहा कर मगन हो रहा है । झूठ उधर
ही नहीं, इधर भी है, कुत्सित चालें उधर भी हैं, इधर भी हैं
।
कोई मोदी को
संसद में स्पष्टीकरण के लिये बुला रहा है, कोई उनका
त्यागपत्र माँग रहा है तो कोई क्षमायाचना मँगवाने के लिये रार कर रहा है । विवेक
श्रीवास्तव को क्रोध है कि मोदी ट्रम्प के बहकावे में क्यों आये? उदय राज को
दुःख है कि नाम सिंदूर क्यों है । कल
पूछेंगे कि भारत का नाम भारत क्यों है ! सदा उदास
रहने वाले उदय राज! सिंदूर को सिंदूर न कहें तो क्या बिक्सा ओरेल्लाना चलेगा
!
सत्यान्वेषी अँधेरे में भटक रहे हैं, झूठ के इस समंदर में सच की नन्हीं मछली न जाने कहाँ छिपा दी गयी है! कौन जीता कौन हारा, कौन गिड़गड़ाया किसके आगे । किसने किसके सैनिक मारे, कौन जान बचाकर भागे । बड़के-बड़के डीजीएमओ बोल रहे हैं, हमको तुमको पता नहीं कुछ, कितनी सच्ची कितनी झूठी हाँक रहे हैं । बनकर मुखिया घूम रहे सब, ट्रम्प बीच में कूद रहे हैं । कभी इधर की कभी उधर की, चीनी फ़्रांसीसी बोल रहे हैं । सगा कौन है कौन हितैषी, ना कोई रिश्ता ना कोई नाता, क्यों फूफ़ा बनके घूम रहे हैं!
पाकिस्तान को क्या कहा जाय, उसके लिये तो
केवल इतना ही संदेश है –
कभी उजागर होएँगे सब काम-धाम और नाम ॥
मिथ्या इतना बोलिये जा में मुँह छिपि जाय
कालिख भी कुछ कम लगय लज्जा भी रहि जाय ॥
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