वह घड़ी आ गयी
आज अनोखी
जब
शहद घुले आँसू बरसेंगे.
खुश होंगे
हम
फिर भी तरसेंगे.
किया विदेशी के संग हमने
एक सुखद स्वप्न का सौदा.
प्रीति के बदले
नेह स्वजन का
बिछुड़ रहा है........
तड़प रहा है ......
मन की मनमानी तो देखो
पंख लगाकर उड़ा जा रहा
कभी भीत हो ठिठक रहा है
कैसा है यह हृदय अनोखा
क्यों किया
सुखद स्वप्न का सौदा.
प्रीति पराई
ले अंगड़ाई
पल-पल
करे प्रतीक्षा.
कभी वियोग के दुःख से विह्वल
कभी सुखद स्वप्न की हलचल
अपनों से वियोग की पीड़ा
किन्तु विदेशी के सुयोग की
मन में सुखद स्वप्न की क्रीड़ा
किसको अधरों पर लाऊँ
किसको नयनों में बाँधूँ
किसको रोकूँ
किसको बह जाने दूँ.......
......................................
चंदा मामा दूर जा रहा
सूरज मेरे पास आ रहा
कुछ खोकर, कुछ पाने का
यह कैसा व्यापार हो रहा
केवल वधुओं के हिस्से में
अपनों से वियोग की पीड़ा !
यह कैसी है विधि की लेखी
वे
पहली बार मिलें तो पूछूँ
क्या तुमने कभी अमावस देखी ?