सर्दियों की रात की ये खामोशी...... और........
खोया - खोया सा चाँद.
नहीं - नहीं .......
चुप नहीं है ......पूरी कायनात में पसरी ये 'खामोशी' .
चुप नहीं है ......पूरी कायनात में पसरी ये 'खामोशी' .
सच......
इसने सब कुछ बता दिया है मुझे
इसने सब कुछ बता दिया है मुझे
कि अभी तक ख़त्म नहीं हुई है तेरी तलाश.
भोले चाँद!
सुना है कि तू भी रोता रहा है रात भर.
देख , झूठ मत बोल,
मैंने देखे हैं
जुही की कलियों पर ठहरे ......
तेरे आंसू ...
कलिओं ने रात भर समेटा है उन्हें
चलो न !
आज रात हम दोनों
मिल कर तलाशें
अपनी -अपनी मंजिलें
शायद मिल जाएँ .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.