आज दिनांक -२१ सितम्बर के दैनिक भास्कर में गोपाल कृष्ण गांधी का लेख -कितने दूर कितने पास पढ़ा. उनकी यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि कश्मीर पर देश की जनता के बीच संवाद की प्रक्रिया प्रारम्भ होनी चाहिये. अभी तक हम कश्मीर पर सिर्फ अपने निर्णय देते आये हैं .....कश्मीर हमारा है ......यह भारत का अविभाज्य अंग है......आदि-आदि. किन्तु मुझे लगता है कि हमने कभी अपने आचरण से यह प्रदर्शित करने का प्रयास नहीं किया कि कश्मीर हमारा है और हम कश्मीर के हैं. हो सकता है कि कश्मीर की छटपटाहट जिन्ना की छटपटाहट जैसी हो .....केवल कुछ लोगों की छटपटाहट भर. पर एक अहम् सवाल यह है कि हमने अभी तक कश्मीरियों से कितनी मोहब्बत की है ? और केवल कश्मीरी ही क्यों, पूर्वांचल के लोगों से भी हम कितने जुड़ सके हैं ? अब अगला सवाल यह है कि हम उनसे जुड़ें कैसे ? देखिये, देश के शेष भागों में भी मुसलमान हिन्दुओं के साथ रह रहे हैं वहां ये समस्याएं नहीं हैं. ......क्योंकि हम सामाजिक तौर पर उनसे गहरे जुड़े हुए हैं, और एक-दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी हैं.जब तक हमारे सामाजिक सरोकार एक-दूसरे से नहीं जुड़ेंगे तब तक कश्मीरी हमें अपना नहीं समझ पाएंगे....और समझें भी आखिर क्यों ? हमें उन से नातेदारी बनानी होगी और उन्हें अपने विश्वास में लेना होगा. सीमान्त प्रान्तों में हमारी घनिष्ठता बनाने का एक अच्छा और बहुत पुराना तरीका है....शादी-ब्याह के सम्बन्ध बनाना. परस्पर शादी-ब्याह की नातेदारी हमें एक-दूसरे के करीब लाएगी ही. गरीबी-अमीरी बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है. सबसे बड़ी चीज है पारस्परिक प्रेम और भाई-चारा. अपनत्व दूर-दूर से नहीं पैदा होता....करीब आना होगा.....एक-दूसरे के दुःख-सुख में पूरी शिद्दत के साथ सहभागी बनना होगा. राज-तंत्र के जमाने में राजा लोग दूर-दूर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करते थे इसके पीछे कूटनीतिक विषय भी एक महत्वपूर्ण कारण हुआ करता था . बहरहाल पिछले कुछ महीनों से कश्मीर में जो कुछ हो रहा है........पथराव, आगजनी, मौत का तांडव और इस सब पर सियासत का नंगा खेल ....... वह अत्यंत दुखद है हम इन हालातों में खुद अपने को रख कर देखें तो दर्द का अंदाजा हो जाएगा. दैनिक भास्कर की टीम नें कर्फ्यूग्रस्त कश्मीर का दर्दनाक चित्र खिंच कर शेष भारत को कश्मीर के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया है. और इस नेक काम के लिए उनकी पूरी टीम धन्यवाद की पात्र है. शायद इसी बहाने हम नॅशनल इंटीग्रेशन की तरफ सही मायनों में कुछ कदम बढ़ सकें. अभी तो हम कश्मीरी भाइयों के लिए चिंतित हैं.वहां के हालात जल्दी से जल्दी सुधरें और बेहतर हों इसके लिए हम इश्वर से प्रार्थना करते हैं.
प्रिय कौशलेंद्र जी
जवाब देंहटाएंमैं हैरान था की इतना कुच्छ घटित हो रहा है कश्मीर में और हिन्दी ब्लॉग जगत मे इसपर खामोशी क्यों है. आपका लेख बेहद सारगर्भीत है और मन को आशावान बनाता है. आपकी बातों से मैं पूरी तरह सहमत हूँ. शादी ब्याह के संबंधों के मामले मे तो धर्म और जाती की रुकावटें हैं जिन्हें दूर करना आसान ना होगा. मगर और कई स्तर हैं जहाँ हमारे सामाजिकआर्थिक और सांस्कृतिक ताल्लुक़ात गहरे किए जा सकते हैं.
धन्यवाद
राकेश जी ! मैं सहमत हूँ आपकी बात से. सांस्कृतिक,सामाजिक और आर्थिक संबंधों की दिशा में देशवासियों को ही कुछ करना होगा.सरकारों से हम आशा नहीं कर सकते. रही बात वैवाहिक संबंधों की तो कश्मीरियो की जाति और धर्म के लोग शेष भारत में भी तो हैं . इस ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद.
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