हमने तो
ये कभी
सोचा ही नहीं,
चाँद भी
इस तरह
जलता है क्यूँ ?
हिचकियों के
ले थपेड़े
सिन्धु भर-भर
नयन तेरे
डूबने को
हैं बुलाते
कौन जाने
डूबकर
कोई कुछ पाया भी है ?
कोई डुबाने पे अड़ा
डूबने को
कोई खड़ा
खेल का ये सिलसिला
जाने यूँ
चलता है क्यूँ ?
आँसुओं की
धार में वो
साथ हमको
बहा ले जायेंगे
भावना के
फेक पांसे
वेदना दे जायेंगे.
प्रेम का नाम ले
छल गए
वो हमें,
दर्द पीने को ये
दिल
तड़पता है क्यूँ ?
वो
हर घाट पर
जा रहे
रूठ कर
"प्यास
हमको नहीं
घाट को थी लगी "
पीके जी भर पथिक
झूठ कहता है क्यूँ ?
उनके हर झूठ पर
दिल
मचलता है क्यूँ ?
बहुत भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंडॉक्टर साहब! आप निशब्द कर देते हैं!!
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे हैं भाव कविता के... सुन्दर
जवाब देंहटाएं"प्यास
जवाब देंहटाएंहमको नहीं
घाट को थी लगी "
पीके जी भर पथिक
झूठ कहता है क्यूँ ?
अनूठे बिम्बों के प्रयोग से एक चकित करती कविता।
सुन्दर और भावपूर्ण रचना!
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