१- एक छोटा सा लोकतांत्रिक मज़ाक
बड़ी आनाकानी के बाद
निकाली थी उन्होंने एक डिबिया
बोले-
इतनी ही जिद है .........तो आओ,
लगा दूँ मलहम...
लगा दूँ मलहम...
खोलो, कहाँ है घाव...
फिर .....आहिस्ते से
डिबिया खोल,
डिबिया खोल,
ढक्कन छोड़
फेक दिया सबकुछ दरिया में ...
बोले-
ये रहा तुम्हारा लोकपाल बिल.
२- दलाध्यक्ष ...गोया प्रधानमंत्री ...गोया राष्ट्राध्यक्ष
एक छोटा सा सवाल है,
अब से पहले
कभी देखा है
किसी दलाध्यक्ष को
किसी प्रधानमंत्री
या राष्ट्राध्यक्ष की छाती पर
इस कदर मूंग दलते ?
नहीं .....?
तो देख लो...जी भर के देख लो
और याद रखना
इतिहास का
ये दुर्गंधित ....काला पन्ना.
ये दुर्गंधित ....काला पन्ना.
३- प्रधान मंत्री
गुस्सा मत करो उस पर....
न बेशर्म कहो ....
क्या करे बेचारा !
नाबालिग है अभी
धीरे-धीरे सीख लेगा चलना
बिना उंगली थामे भी.
तुम तो बस
वोट देते रहो उसे.
४- ये देश खाली करो... कि वो आ रहे हैं ...
पूरब से इन्हें बुला लो
पश्चिम से उन्हें बुला लो
उत्तर में ड्रेगन है
दक्षिण में समंदर है
चलो, हम समंदर में डूब जाएँ.
५- क्योंकि उनका हक़ है
इनको आरक्षण
उनको आरक्षण
सबको आरक्षण
सिवा हमारे .....
क्योंकि उनका हक़ है
और हमारा कभी था ही नहीं
ये हक......
कौन सी दूकान में मिलेगा ?.
ये हक......
कौन सी दूकान में मिलेगा ?.
६- जजियाकर भी देंगे
मेज़बान शरण माँगते हैं
मेहमान घर में बसते हैं
नागरिकता भी उन्हें ही दे दो
अपना काम तो हम
द्वितीय नागरिकता से भी चला लेंगे
जजियाकर भी देंगे.
क्योंकि हम
न तो अल्प संख्यक हैं....
न आरक्षित ...
न घुसपैठिये ....
न आतंकवादी .....
बस,
केवल टुटपुंजिये भारतीय ही तो हैं.
आपका कर ही क्या लेंगे ?
7- पत्रकार
वे
भ्रष्ट थे,
नौकरी से हाथ धो बैठे.
सुना है ............
आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ
लड़ाई लड़ते हैं
बहती गंगा में
जम के हाथ धोते हैं.
८- चौथा स्तम्भ
लोग
उन्हें कलम के सिपाही कहते हैं.
वे
बड़े-बड़े दफ्तरों में जाते हैं
शाम को झूमते हुए
छपे हुए गांधी के साथ वापस आते हैं.
९- पुरस्कार/सम्मान
दे दो
उस मक्कार.... चालबाज़..... निकम्मे को,
वह इसी के लायक है नालायक ...
दुष्ट कहीं का....
और भी जो कुछ हो सकता हो वह भी कहीं का ....
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दुष्ट कहीं का....
और भी जो कुछ हो सकता हो वह भी कहीं का ....
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हम क्या इतने गए गुजरे हैं
कि सभा में बुलाकर
किये जाएँ बेआबरू
और ज़िंदगी भर कहे जाएँ-
"जुगाड़ू साला"