1-
सड़क किनारे
बूढ़े वक़्त ने
अपनी दूकान सजा ली है.
युवा वक़्त ने
खरीदे हैं कुछ नाज़ुक से रिश्ते
वह खेलेगा इनसे,
फिर सिरा देगा
किसी
तालाब में.
२-
रिश्ते
कभी गर्म हुआ करते थे
बूढ़ी हथेलियों की गर्माहट से
अब
गर्म रिश्ते भी गर्म नहीं लगते
जवान हथेलियों के स्पर्श से.
३-
ठंडी राख से लगते हैं
रिश्ते,
इनमें गर्माहट क्यों नहीं है ?
जबकि सुनते हैं,
दुनिया परेशान है
ग्लोबल वार्मिंग से.
४-
पत्थर सी ठोस बर्फ को
बहते देखा है कभी ?
कभी खोल सको
अपनी धमनियाँ
तो देख सकोगे
बर्फ को बहते हुए.
५-
सुनते हैं ....
रिश्तों की गर्माहट
अब देह में आ गयी है.
और देह में
पलीता लगाना पड़ता है
चलने के लिए.
६-
वो मुस्कराते हैं
तो फूल नहीं झड़ते
वो रोते हैं
तो आंसू नहीं गिरते.
एक दिन छू के देखा
तो वो पत्थर के सनम निकले.
७-
यूँ मुस्कुरा के
धोखे में क्यों रखा हमें.
यूँ गुनगुना के
धोखे में क्यों रखा हमें.
जबकि पता था तुम्हें
किराए पे लाये हो इन्हें,
लौट जायेंगे सब
वक़्त पूरा होते ही.
८-
वो तो चल दिए
छू के हमें
पत्थर जान के.
हम तो बुत ही भले थे
अब क्या करें
कहाँ जाएँ
अहिल्या बनके ?
९-
हे भगवान !
तू इस दुनिया को
रेल का डब्बा क्यों नहीं बना देता,
सफ़र के शुरू से आख़िरी तक
कोई रिश्ता दर्द नहीं देता.
किसी की पंक्तियां याद आती हैं-
जवाब देंहटाएंहमने शब्द लिखा था रिश्ते, अर्थ हुआ बाजार.
कविता के माने खबरें हें, सम्वेदन व्यापार.
ठंडी राख से लगते हैं
जवाब देंहटाएंरिश्ते,
इनमें गर्माहट क्यों नहीं है ?
जबकि सुनते हैं,
दुनिया परेशान है
ग्लोबल वार्मिंग से.
@ बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न....
क्या विडंबना है?.... ग्लोबल वार्मिंग के बावजूद रिश्तों का ठंडा पाया जाना...
...... यहाँ विरोधमूलक अलंकार खोजा जा सकता है.
पत्थर सी ठोस बर्फ को
जवाब देंहटाएंबहते देखा है कभी ?
कभी खोल सको
अपनी धमनियाँ
तो देख सकोगे
बर्फ को बहते हुए.
@ बहुत कठिन प्रश्न पूछा है....
शर्मिंदगी महसूस हो रही है...
यौवन को फटकार लग रही है शायद..
सुनते हैं ....
जवाब देंहटाएंरिश्तों की गर्माहट
अब देह में आ गयी है.
और देह में
पलीता लगाना पड़ता है
चलने के लिए.
@ बहुत ही सुन्दर बिम्ब.
मजबूरी में ही निभाने पड़ते हैं रिश्ते...
पलीते का सटीक प्रयोग..
लेकिन एक और प्रयोग हो सकता है....
जब तक पलीता नहीं लगा हो तो कोई विस्फोट आसानी से नहीं होता ...
'आज जन-जागृति की गरमाहट है...' उसी गरमाहट में अन्ना और रामदेव जैसे सन्त पलीता लगाने में लगे हैं.
वो मुस्कराते हैं
जवाब देंहटाएंतो फूल नहीं झड़ते
वो रोते हैं
तो आंसू नहीं गिरते.
एक दिन छू के देखा
तो वो पत्थर के सनम निकले.
@ ये क्या पहेली है?
वैसे मूर्तिपूजक सनातनी लोग तो पत्थर में भी आस्था रखते हैं... फिर चिंता किस बात की है आपको?
यूँ मुस्कुरा के
जवाब देंहटाएंधोखे में क्यों रखा हमें.
यूँ गुनगुना के
धोखे में क्यों रखा हमें.
जबकि पता था तुम्हें
किराए पे लाये हो इन्हें,
लौट जायेंगे सब
वक़्त पूरा होते ही.
@ हे कवि कौशलेन्द्र जी,
शाश्वत प्रेम के उपदेश के लिये सन्त कौशलेन्द्र जी का सानिध्य लें.
नहीं तो हर भाव हर क्रिया क्षण-भंगुर ही प्रतीत होगी...
वो तो चल दिए
जवाब देंहटाएंछू के हमें
पत्थर जान के.
हम तो बुत ही भले थे
अब क्या करें
कहाँ जाएँ
अहिल्या बनके ?
@ वापिस गौतम के पास.
जैसे उड़ जहाज को पंछी
फिर जहाज पर आये...
मेरो मन अनत कहाँ सुख पाये...
हे भगवान !
जवाब देंहटाएंतू इस दुनिया को
रेल का डब्बा क्यों नहीं बना देता,
सफ़र के शुरू से आख़िरी तक
कोई रिश्ता दर्द नहीं देता.
@ सचमुच यदि ऐसा होता
तो कोई कालिदास नहीं होता,
न घनानंद, और न ही होता कोई कौशलेन्द्र.
ऎसी गज़ब की शायरी .... आपसे सुनने को मिली आश्चर्य हो रहा है....
जवाब देंहटाएंरिश्तो की अद्भुत व्याख्या..बहुत सुन्दर भाव ..आनंद आ गया..
जवाब देंहटाएंये रिश्ते तो ऋतुओं जैसे,झट पतझड़ में मुरझाते हैं,
जो जीवन में हो ऋतु बसंत,ये प्रेम पुष्प बिखराते हैं।
आज तो,
जवाब देंहटाएंइधर प्रतुल उधर प्रतुल
जिधर देखो प्रतुल -प्रतुल
नुक्ता-चीनी बक्से में
छाये हैं बस प्रतुल !
आश्चर्य मत करिए वत्स ! मैंने अपने पिछले किसी लेख में कहा था कि दोनों विपरीत ध्रुव एक ही अस्तित्व का विस्तार भर हैं.....हम किसी एक ही ध्रुव पर रहें तो एकीकरण की यात्रा बहुत लम्बी हो जाती है ...दोनों ध्रुवों पर रहने से द्वंद्व अवश्य होता है पर एकीकरण की यात्रा इतनी लम्बी नहीं रह जाती....और फिर निर्द्वंद की स्थिति में समुद्र मंथन कैसे हो सकेगा !
@ हमने शब्द लिखा था रिश्ते, अर्थ हुआ बाजार.
कविता के माने खबरें हें, सम्वेदन व्यापार.@
राहुल जी ! जिसकी भी पंक्तियाँ हों...पर हैं प्रभावी.
@ ये रिश्ते तो ऋतुओं जैसे,झट पतझड़ में मुरझाते हैं,
जो जीवन में हो ऋतु बसंत,ये प्रेम पुष्प बिखराते हैं।
आशुतोष जी ! आजकल रिश्ते भी अवसरवादी हों गए हैं.
सभी एक से बढकर एक। ऐसी भावनायें पढते ही बचपन में सुनी पंक्तियाँ फिर-फिर याद आती हैं:
जवाब देंहटाएंबच के चलते हैं सभी खस्ता दरो दीवार से
दोस्तों की बेवफ़ाई का गिला पीरी में क्या?
रिश्तों की हकीकत, रिश्ते के अलग-अलग शेड्स, रिश्तों की नई पर्भाशायें, रिश्तों के बदलते मूल्य.. सब समाहित इस कविता की मालिका में!!
जवाब देंहटाएंरिश्ते को अलग अलग रूप में खूबसूरती से संजोया है ..
जवाब देंहटाएंवैसे तो सभी लाजवाब हैं लेकिन तीन और पाँच तिया-पाँचा कर गये, अभी तो इतना ही कहेंगे डाक्टर साहब।
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