१-
लो,
तुम्हारी हठ का
मान रखा मैंने
और ख़त्म कर दिए रिश्ते
......................
पर कोई मरघट नहीं मिला ऐसा
जहाँ दफ़न कर सकूँ इन्हें.
२-
बड़ी गहरी मोहब्बत है
सूरज से चाँद को.
देश निकाला दे दिया
पर
ताक-झाँक से बाज नहीं आता
अभी भी भटकता है
रात-रात भर.
३-
ये ज़िद है उनकी
कि अब न मिलेंगे कभी.
उनसे कहो
इतनी ही दुश्मनी है
तो निकाल कर फेक दें मुझे
अपनी यादों के संदूक से.
४-
हमें तड़पाने में
मज़ा आता है तुम्हें
तो खुश हैं हम.
वैसे नहीं
तो ऐसे ही सही
तुम्हें मज़ा तो आया.
५-
उन्हें तो
दुश्मनी भी निभाना नहीं आता ढंग से.
सुना है
छुप-छुप के रोने की
आदत हो गयी है उन्हें
दुश्मन की याद में.
६-
रात
सितारों के पहरे में था चाँद.
सुबह
पूरी धरती भीगी पड़ी थी.
क्या पता
कौन रोया था इस कदर.
७-
हम हँसे .....तो वो हँसे
हम रोये .....तो वो रोये
हम रूठे .......तो वो भी रूठे
कमाल है ........
....ये मोहब्बत तो न हुयी,
आखिर मनायेगा कौन ?
बेहतरीन ! सब एक से बढ़कर एक !
जवाब देंहटाएंसोचता हूं ये सब आपने किस उम्र में लिखी होंगी :)
रात
जवाब देंहटाएंसितारों के पहरे में था चाँद.
सुबह
पूरी धरती भीगी पड़ी थी.
क्या पता
कौन रोया था इस कदर.
इसमें चित्रात्मकता बहुत है। आपने बिम्बों से इसे सजाया है।
आ. कौशलेन्द्र जी इन क्षणिकाओं ने तो दिल जीत लिया, भई वाह...................
जवाब देंहटाएंचौबे जी ! धन्न भाग हमाये
जवाब देंहटाएंजो आप हमाये जंगल में आये .....
इतैं कांटेऊ हें . ....और काँकरऊ
बस्स....! गली भर सांकरी नाय
सो कूद-कूद के आय जइयो.....
सुबह
जवाब देंहटाएंपूरी धरती भीगी पड़ी थी.
क्या पता
कौन रोया था इस कदर.
वाह!
चिंता जायज़ है
जवाब देंहटाएंआखिर मनाएगा कौन
behad samvedanapurn, bhaavpurn, arthpurn...
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