ॐ नहीं ....
अल्लाह के नाम पर योग
......
और योग के नाम पर
व्यायाम ।
और व्यायाम भी क्यों ?
वारिस पठान नामक एक व्यक्ति ने चिल्लाकर कहा कि ‘योग ही क्यों’ .....’मार्शल आर्ट
क्यों नहीं’ ?
सच है ...हर किसी को
योगी बना डालने का यह हठ क्यों ?
और हठ भी ऐसा कि
भूलुंठित होकर गाने लगे ...लुभाने लगे – “योग भगाये रोग”।
रोग भगाने के लिये
दवाइयाँ हैं .... संतुलित भोजन है ....दवाइयाँ हैं .....व्यायाम है ....जिम है
....जादू है ...टोना है ..... बहुत कुछ है दुनिया में ।
रोग भगाने के लिये यह
सुई योग पर ही क्यों अटक गयी ? योग को इतना महत्वपूर्ण क्यों समझा गया ?? ऐसा क्या
विशेष है योग में ???
वक्तव्य आने लगे कि
योग का धर्म से कोई लेना-देना नहीं, गोया यह ध्वनित करने की चेष्टा की जा रही हो
कि योग धर्म से परे एक अधार्मिक कृत्य है जिसे शराब की तरह किसी सरकारी कार्यालय
की छत पर संगीत की धुन पर रात के अंधेरे में मजे ले-लेकर भोगा जा सकता है ।
योग को सर्व स्वीकार्य
बनाने की चेष्टा हो रही है । यह विश्वास ठूँसा जा रहा है कि व्यक्ति को योग के
अनुरूप ढलने की आवश्यकता नहीं है बल्कि योग को व्यक्ति की रुचि के अनुरूप ढाले
जाने की आवश्यकता है ।
भारत में एक
“योगिकक्रांति” का सूत्रपात होने जा रहा है .....”योग” गेरुये परिधान से निकलकर
छोटे-छोटे कपड़े पहने लड़कियों के साथ “योगा” बनकर प्रकट हो रहा है । सेक्युलर योगा
एकांत से निकलकर समूह में डीजे की धुन पर थिरकने के लिये तैयार हो रहा है ।
मेरी बात मानिये, आपको
योग से चिढ़ है तो जोग कर लीजिये ....जोग से भी चिढ़ है तो योगा कर लीजिये ....जोगा
कर लीजिये ...कुछ भी कर लीजिये मगर कर लीजिये क्योंकि यह भारत की महानता का प्रश्न
है ।
भाईजान ! आप अल्लाह के
नाम पर जोगा कर लीजिये ।
शेष हिंदू, बौद्ध,
जैन, सिख .....आदि आप लोग पायथागोरस की प्रमेय को नीलामी में लगायी जाने वाली बोली
के शब्दों में सिद्ध करते-करते ‘जोगा’ कर डालिये ..... जो अफीम के अभ्यस्त हैं वे
अफ़ीम खाकर ‘जोगा’ कर डालें ..... जो रिश्वतखोर हैं वे रिश्वत लेते-लेते ‘जोगा’ कर
डालें ....जो घोटालेबाज हैं वे घोटाले करते-करते ‘जोगा’ कर डालें ....... जो दुष्ट
हैं वे अपनी सम्पूर्ण दुष्टता की रक्षा करते हुये ‘जोगा’ कर डालें .... जो लोग
अपराधी वृत्ति के हैं उन्हें भी कर लेना चाहिये “जोगा” .....मंत्रों की अनिवार्यता
नहीं है । वे सामान्यतः आपस में रोज बतियाने के अन्दाज़ में माँ-बहन की गालियों का
उच्चारण कर सकते हैं । सूर्य को नमस्कार करने से यदि धर्म ख़तरे में पड़ रहा है तो
सूर्य को कोसते हुये ‘जोगा’ कर डालिये । सूर्य की ओर नहीं बल्कि मक्का की ओर मुँह
करके व्यायाम कर डालिये हम उसे ही योगा मान लेंगे । २१ जून को हमारी ....हमारे
भारत की ....महर्षि पतञ्जलि की .....योगदर्शन की ....भारत के उत्कृष्ट ज्ञान की
इज़्ज़त आप लोगों के हाथ में है । आप कतार में खड़े होकर नमाज़ पढ़ते रहिये, हम उसे भी
जोगा ही मान लेंगे ।
कितनी दीन-हीन याचना
है .....
जोग की यह कितनी
विद्रूप विवशता है ......
एक हलवाहे को
भौतिकशास्त्री बनाने का हठ क्यों है .....
हम ‘अपेक्षा’ और ‘हठ’
का अंतर क्यों नहीं समझना चाहते ......
आषाढ़ शुक्ल पंचमी
विक्रम संवत् २०७२ को विश्वयोगदिवस मनाये जाने से पहले ही भारतीय ज्ञान-विज्ञान और
दर्शन की ऐसी-तैसी प्रारम्भ हो चुकी है ।
महर्षि पतञ्जलि का
योगदर्शन विवादित हो गया है ।
सत्य और असत्य
....प्रकाश और अन्धकार के बीच का स्वाभाविक संघर्ष अब समझौते और धर्मनिरपेक्षता का
ध्वज उठाये और भी शातिर हो गया है ।
शातिराना गुरुओं का
बाज़ार सज-धज कर तैयार है ...और इस सबके बीच योगदर्शन हिमालय की किसी ठण्डी गुफा
में जाकर दुबक गया है ।
कलियुग का हव्य बन रहा
है योगदर्शन ।
अनिवार्य नहीं है शराब
पीना या न पीना ।
अनिवार्य नहीं है पाप
करना या न करना ।
अनिवार्य नहीं है
संस्कारित होना या न होना ।
अनिवार्य नहीं है सभ्य
होना या न होना ।
अनिवार्य नहीं हिंसा
करना या न करना ।
भारत के संवैधानिक
लोकतंत्र ने लोगों को मूर्ख बने रहने के विरुद्ध कभी कोई निषेध नहीं किया है
।
हमारा आचरण या अनाचरण
स्वैच्छिक है ।
हाँ ! अपेक्षायें
अवश्य हैं कि हम धरती के उत्कृष्ट प्राणी होने का “होना” अपने आचरण में प्रमाणित
करते रहें ।
संवैधानिक स्वतंत्रता
की निरंकुश व्याख्या से “ॐ” वर्ज्य और “सूर्यनमस्कार” अधार्मिक हो गया है ।
आहत होने लगी हैं लोगों
की आस्थायें-मान्यतायें ।
ख़फ़ा होने लगे हैं
अल्लाह मियाँ ।
धर्मगुरुओं की बढ़ गयी
हैं चिन्तायें ।
द्विविधा में पड़ गये
हैं मुसलमान .... “योग” को यथावत् स्वीकार
करें या योग को व्यायाम का पाज़ामा पहनाकर स्वीकार कर लें !
योग जैसे गम्भीर विषय
को लेकर इस समय भारत में एक मूर्खतापूर्ण बहस छिड़ी हुयी है ।
योग दर्शन हमारे जैसों
के लिये एक बड़ी बात है ।
बड़ी-बड़ी बातों में
उलझने से अच्छा है कि हम छोटी-छोटी बातें करके सुलझे बने रहने का प्रयास करें
......
इसलिये .........
प्यार को प्यार ही
रहने दो कोई नाम न दो ।
ज्ञान को ज्ञान ही
रहने दो कोई धर्म न दो ॥
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