बुधवार, 20 जुलाई 2016

उच्च शैक्षणिक संस्थानों में व्याप्त गुण्डागर्दी...


एक निजी मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाली श्रावणी को तीसरे वर्ष यह समझ में आ सका कि ऊपर वाले ने उसे डॉक्टर बनने के लिये नहीं बल्कि फ़िल्म डायरेक्टर और स्क्रिप्ट राइटर बनने के लिये भेजा है । उसने अपने माता–पिता से बात की और मेडिकल की पढ़ायी छोड़कर सत्यजित रे फ़िल्म एण्ड टेलीविजन इण्स्टीट्यूट में एडमीशन दिलाने का अनुरोध किया । एक लम्बे विमर्श के बाद श्रावणी की बात मान ली गयी । श्रावणी अब चौथे वर्ष मेडिकल कॉलेज में न पढ़कर एफ़.टी.आई. में बी.एससी. प्रथम वर्ष की पढ़ायी करने के लिये तैयार हो चुकी थी किंतु मेडिकल कॉलेज में एडमीशन के समय जमा किये गये हाई स्कूल और हायरसेकेण्ड्री के मूल प्रमाणपत्र वापस ले पाना एक बहुत बड़ी समस्या थी ।
भारत में उच्च शिक्षा के लिये निजी संस्थानों में प्रवेश मिलना जितना सरल है उतना ही मुश्किल है वहाँ से मुक्ति पाना । छात्र को यदि किसी कारण से बीच में ही अध्ययन छोड़ना पड़े तो ये संस्थान शेष अवधि की पूरी फ़ीस वसूल करने के बाद ही उसके मूल प्रमाणपत्र वापस करते हैं । निजी संस्थानों में यह एक शैक्षणिक गुण्डागर्दी है जिसे श्रावणी ने प्रारम्भ में तो गम्भीरता से नहीं लिया था किंतु जब ख़ुद पर आ पड़ी तो उसे एक लम्बी लड़ाई के लिये ख़ुद को तैयार करना पड़ा । उसे पता था कि भारत में कुछ भी पाने के लिये एक लम्बे संघर्ष की आवश्यकता होती है ।
राजनैतिक संरक्षण के बिना शैक्षणिक संस्थानों में ऐसी खुले आम होने वाली गुण्डागर्दी असम्भव है । आख़िर किसी संस्था द्वारा अवार्डेड प्रमाणपत्र दूसरी संस्था द्वारा यूँ गिरवीं कैसे रखा जा सकता है ? शैक्षणिक प्रमाणपत्र छात्र की अर्जित सम्पत्ति है, उस पर कोई डाका कैसे डाल सकता है ? किंतु यह डाका डाला जा रहा है... खुले आम डाला जा रहा है ।
श्रावणी के पिता झंझट में नहीं पड़ना चाहते थे । वे कलकत्ता से बंगलोर पहुँचे, मेडिकल कॉलेज प्रबन्धन से कई दौर की चर्चा हुयी किंतु महापापी कॉलेज प्रबन्धन टस से मस नहीं हुआ । अंततः उन्होंने बेटी के मूल प्रमाणपत्रों का सौदा किया और बेटी को लेकर कलकत्ता वापस चले गये । इस बीच एफ़.टी.आई. में एडमीशन की तारीख निकल गयी और उन्हें एक बार फिर एक निजी फ़िल्म संस्थान में श्रावणी के सारे मूल प्रमाणपत्र सौंप देने पड़े ।

क्या माननीय प्रकाश जावडेकर जी सर्टीफ़िकेट स्नेचिंग की परम्परा का समूलोच्छेद करने पर गम्भीरता से विचार करेंगे ?  आख़िर हर पिता श्रावणी के पिता जैसा सम्पन्न तो नहीं हो सकता न !

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