हमारे
पास वैक्सीन हैं, दवाइयाँ हैं, निरंतर होते रहने वाले शोध हैं और
बीमारियाँ हैं, लिव-इन-रिलेशनशिप में रहते हुए ये सब
अपने-अपने किरदार से बहुत ख़ुश हैं ।
हमारे
रिश्ते पल्मोनरी ट्युबरकुलोसिस, ह्यूमन ईम्म्यूनोडिफ़ीसिएंसी
वायरस, एन्थ्रेक्स और यहाँ तक कि सामान्य से नज़ला-ज़ुख़ाम जैसी
संक्रामक बीमारियों से आज भी मज़बूत हैं ।
लिव इन रिलेशनशिप
के बाद अब हम एक काले जादू की बात करेंगे ।
काले
जादू का खेल...
सूचना –
सैनेटायज़र, फ़ेस मास्क और पैथोलॉज़िकल टेस्ट में सिमटा कोरोना मुस्करा रहा है और मैं
राजाओं की अट्टहास से भयभीत हो रहा हूँ ।
काले
जादू का सिद्धांत – “कोरोना की कोई दवाई नहीं हैं, चिकित्सा का प्रश्न
ही नहीं उठता फिर भी कोरोना के संक्रमण से किसी की मृत्यु न हो जाय इसलिए
सैनेटायज़र, फ़ेस मास्क और पैथोलॉज़िकल टेस्ट करना आवश्यक है”।
व्याख्या
– यह एक ऐसा शब्दजाल है जो औद्योगिक बुद्धि के कालेजादू से बुना गया है और दुनिया
भर के लोगों को सम्मोहित करता है, उत्सुकता जगाता है और भयभीत
करता है ।
सांख्यिकी
की आवश्यकता राजा को होती है, प्रजा को नहीं, इसलिए स्टेटिस्टिक्स का तक़ाज़ा है कि उसे अपनी ज़रूरतों के हिसाब से सजाया जाय
। कोरोना के मामले में सैनेटायज़र, फ़ेसमास्क और पैथोलॉज़िकल
टेस्ट्स वे उपकरण हैं जिनसे सांख्यिकी को सजाया जाता है । महामारी हो या भुखमरी या
कोई अन्य प्राकृतिक आपदा ...सबके लिए अलग-अलग टूल्स बना लिए जाते हैं । ये टूल्स
राजा के लिए बहुत उपयोगी होते हैं ...सत्ता पर अपनी पकड़ और मज़बूत करने के लिए
इन्हीं टूल्स से युद्ध किया जाता है, प्रजा को लगता है कि
प्राकृतिक आपदा से लोगों को मुक्त करने के लिए राजा दिन-रात परिश्रम कर रहा है ।
राजा के प्रति प्रजा की श्रद्धा अपने चरम पर पहुँचने लगती है । पिछले कई महीनों से
दुनिया भर के सत्तातंत्र सैनेटायज़र, फ़ेसमास्क और पैथोलॉज़िकल टेस्ट्स
में ही कोरोना को कैद करने का मंचन करने में मशग़ूल हैं । वैक्सीन का स्वप्न इस
मंचन में तड़के का काम करता है ।
कोरोना
एक ऐसा जैविक आयुध है जो अस्त्र भी है और शस्त्र भी । राजा को भला और क्या चाहिए?
युद्ध प्रारम्भ
हुआ ...शारीरिक दृष्टि से कमज़ोर और पहले से बीमार रहे लोग मारे जा रहे हैं, मारे
जा रहे लोगों में से कोई भी व्यक्ति इस युद्ध के लिए तैयार नहीं था । सत्ता में
बने रहने के लिए आवश्यक है कि प्रजा को कभी भी किसी युद्ध का सामना करने के लिए
तैयार न किया जाय । यदि प्रजा तैयार होगी तो राजा की लड़ाई कमज़ोर हो जाएगी और प्रजा
जीत जायेगी । किंतु स्क्रिप्ट के अनुसार जीत राजा की होनी है । राजा ने एक कुशल
योद्धा बनकर युद्ध की रणनीति तैयार की फिर प्रजावत्सल बनकर युद्ध से मुक्ति का
मंचन करना प्रारम्भ कर दिया । दुनिया भर के देशों के राजा एक ही परिवार के सदस्य
होते हैं । प्रजा के मामले में उनकी दृष्टि और योजनायें एक जैसी होती हैं ।
कोरोनाकाल
में चालू उद्योग धंधे बंद हो गए, लोग घरों में क़ैद हो गए ।
कोरोनाकाल
में कुछ नए उद्योग प्रारम्भ हो गए, मैंयूफ़ेक्चरिंग यूनिट्स में
काम करने के लिए कुछ लोगों को घरों से आज़ाद करके फ़ैक्ट्रीज़ में क़ैद कर दिया गया ।
सैनेटायज़र्स, फेसमास्क, पैथोलॉज़िकल
टेस्ट किट्स और पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट किट्स का धड़ाधड़ उत्पादन होने लगा ।
एण्टी कोरोना वैक्सीन पर शोध की आँधी चलने लगी । प्लाज़्मा थेरेपी पर ज़ोर आज़माइश
होने लगी ।
हमारे
किले के सारे दरवाज़े, किले की दीवारें और बुर्ज़ ...सब कुछ जर्जर थे । किले के अंदर सेना पूरी
तरह असुरक्षित थी । हमने किले के लिए कभी कोई प्रोटेक्टिव नीति नहीं बनायी बल्कि
शत्रु सेना को रोकने के लिए हमने अपने सैनिकों का पैथोलॉज़िकल टेस्ट करना शुरू कर
दिया । टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव होने पर हम राहत की साँस लेने लगे जबकि पॉज़िटिव
होने पर आगे की किसी मुकम्मल कार्यवाही पर ख़ामोशी ओढ़ लेने लगे ।
टेस्ट
हो रहे हैं ..लगातार । राजा का ध्यान टेस्ट पर है, चिकित्सा पर नहीं
...क्योंकि चिकित्सा उपलब्ध ही नहीं है ।
परिणाम –
कोरोना ने दुनिया को कुछ नए उद्योगों और कुछ नई अनावश्यक आवश्यकताओं के लिए तैयार
कर लिया है । इनफ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉज़ी ने अपनी व्यापकता को एक नया आयाम दे दिया है ।
दुनिया का अर्थतंत्र नया आकार ग्रहण कर रहा है । सैनेटायज़र्स के अंधाधुंध प्रयोग
से होने वाले कॉम्प्लीकेशन्स से कुछ और नई बीमारियाँ अस्तित्व में आने वाली हैं, उद्योग
की गति में कुछ और वृद्धि होगी । उद्योगपति ख़ुशहाल होंगे, मज़दूर
हम्रेशा की तरह मज़दूर रहेंगे ...उद्योगधंधों
में काम करने के लिए ।
तत्वज्ञान
– भय सत्ता का भोजन है और समाधान उसका शत्रु ।