बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

इण्डोनेशिया में राम, भारत में इस्लाम

 

कुरान में लिखा है काफिर जहाँ दिखे उसे मार दो -डॉक्टर ज़ाकिर नाइक

इण्डोनेशिया की सुकर्णोपुत्री सुक्मावती ने इस्लामधर्म छोड़कर “शुद्धिवदानी” संस्कार के माध्यम से पुनः अपने पूर्वजों के सनातन धर्म को स्वीकार कर लिया । भारत में कुछ साल पहले श्याम गौतम नाम के एक राजपूत युवक ने अपने पूर्वजों के सनातनधर्म का परित्याग करते हुये इस्लाम की राह पकड़ी और मौलाना उमर गौतम बन गया । आस्था और विचारों के स्थानांतरण” की इन दोनों घटनाओं ने परस्पर विरुद्ध दिशाओं में गमन किया और दुनिया को दो परस्पर विरोधी संदेश प्रेषित किये ।

जड़ों की ओर वापस आने और जड़ों को काटकर फेक देने की ये दो परस्पर विरोधी घटनायें हैं । इण्डोनेशिया की वृद्ध सुक्मावती ने राम को स्मरण कर और भारत के युवक श्याम ने मोहम्मद साहब को याद कर अपने-अपने जीवन को कृतार्थ किया । सुकर्णोपुत्री सुक्मावती ने इण्डोनेशिया के किसी अन्य मुसलमान को सनातनधर्म अपनाने के लिये नहीं कहा । मौलाना उमर गौतम ने मुसलमान बनने के बाद भारत के हजारों सनातनधर्मियों को इस्लाम की राह में प्रवृत्त किया । इण्डोनेशिया में कोई दुःखी नहीं हुआ, भारत में हजारों परिवार खण्डित होकर दुःखी हुये ।  

आज मैं उस धर्मांतरण की बात कर रहा हूँ जिसके मूल में हिंसा की विवशता नहीं बल्कि आचरण की स्वेच्छा होती है । प्रतिवर्ष भारत सहित पूरी दुनिया के लाखों लोग विभिन्न कारणों से अपने मूल धर्म का परित्याग कर इस्लाम धर्म में अपनी “आस्था और विचारों का स्थानांतरण” कर दिया करते हैं । इनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जो क्रांतिकारीरूप से अपने नवीन मत, विचार, आस्था, आचरण और जीवनशैली के विस्तार के महा-अभियान में कूद पड़ते हैं । यह महा-अभियान अपनी प्राथमिकताओं और आवश्यकताओं के कारण समाज और राष्ट्र को प्रभावित करता है, इससे अर्थव्यवस्था और उद्योग प्रभावित होते हैं, इससे शांति और विकास की सहज गतिमान प्रक्रियायें प्रभावित होती हैं । म्यानमार, नार्वे, फ़्रांस और आस्ट्रेलिया ने इस प्रभाव की नकारात्मकता को बड़ी गम्भीरता से समझा है । इस्लामिक तौर-तरीकों से चीन और रूस भी प्रभावित होते हैं किंतु उनके पास नियंत्रण के उनके अपने तौर तरीके हैं जिनका विरोध पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश भी नहीं कर पाते ।

एक तैरता हुआ प्रश्न इधर-उधर टकराता है – “दुनिया के उदारवादी देश भी इस्लाम से भयभीत क्यों होने लगे हैं जबकि लगभग हर देश में कुछ लोग इस्लाम के स्वैच्छिक अनुयायी भी बनते जा रहे हैं?” समाचार है कि यूके की जेलों में बंद कई अपराधियों ने स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार कर लिया है । मलेशिया में रह रहे भारतीय नागरिक डॉक्टर ज़ाकिर नाइक दुनिया भर में घूम-घूम कर इस्लामिक आचरण के बारे में लोगों को बता रहे हैं । मलेशिया में ज़ाकिर नाइक के बहुत प्रशंसक हैं जबकि उनके हिंसक कट्टरवाद ने दुनिया के सहिष्णु लोगों को भयभीत कर दिया है । वे खुलकर कुरान की आयतों का उल्लेख करते हुये मुसलमानों को काफिरों की हत्या कर देने के लिये प्रेरित करते हैं । इस्लाम की यह शिक्षा पूरी दुनिया के लिये एक बहुत बड़ी समस्या बन गयी है । इतनी दहशत के बाद भी इस्लाम की ओर युवाओं के आकर्षण को हमें समझना होगा ।

जहाँ किसी प्राणी को धीरे-धीरे ज़िबह (हलाल) करके उस प्राणी की मरणांतक पीड़ा में आनंद की अनुभूति को धर्मानुकूल माना जाता हो, जहाँ ईश्वर के सम्बंध में अन्य विद्वानों के अभिमत को अस्वीकार करते हुये उन्हें काफ़िर मान लेने और उन्हें देखते ही क़त्ल कर देने को ईश्वरीय आदेश प्रचारित करने की ज़िद की जाती हो, जहाँ अपनी विचारधारा के विस्तार के लिये किये जाने वाले युद्धों में शत्रु की सम्पत्ति और स्त्रियों की लूटमार को माल-ए-गनीमत मानकर बाँट लेने को धर्मसम्मत माना जाता हो, जहाँ मानवीय और नैतिक मूल्यों की अपनी स्वैच्छिक परिभाषायें हों, जहाँ प्राचीन सभ्यता और संचित ज्ञान को नष्ट कर देना “सबब” माना जाता हो, जहाँ हिंसा ही हर समस्या का समाधान हो, जहाँ सहमत न होने को ईशनिंदा मानकर असहमत व्यक्ति की हत्या कर दी जाती हो, जहाँ इन सारे आचरणों को धार्मिक कृत्य माना जाता हो... वहाँ उजालों को जाने से डर लगता है ।

अपने ज्ञान, मत और विचार को सर्वोपरि मानते हुये शेष दुनिया के ज्ञान, मत और विचार के प्रति हिंसक असहिष्णुता उन गहनतम अँधेरों को आमंत्रित करती है जिन्हें सामाजिक जीवन की मानवीय और नैतिक मर्यादाओं से मुक्ति की तीव्र छटपटाहट होती है । स्वेच्छाचारी और सामंजस्यहीन जीवन जीने के इच्छुक लोगों को भी एक ऐसे विचारतंत्र की आवश्यकता होती है जो उनके कृत्यों को ईश्वर की दृष्टि में न्यायसंगत ठहरा सके । ऐसे विचारतंत्र न्यूनाधिक रूप में हर युग में रहे हैं और आगे भी रहेंगे । तमस के सुर कभी प्रकाश के सुर के साथ तालमेल नहीं कर पाते, उनकी गति अ-सुर ही रहती है । यही कारण है कि अँधेरों से सामंजस्य करना बहुत सरल होता है, कठिनाई तो तब आती है जब सूर्य अपने चरम पर होता है और सत्य का प्रखर तेज तमस का काल बनकर प्रकट होता है ।

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