शनिवार, 23 अक्टूबर 2021

इस्लामिक राष्ट्रवाद


               यूके में दूसरे सर्वाधिक मतावलम्बियों वाला धर्म इस्लाम है जिसमें सबसे अधिक संख्या (3 प्रतिशत) सुन्नी मुसलमानों की है जिन्हें इस्लामिक साम्राज्य विस्तार के लिये समर्पित योद्धा माना जाता है । ब्रिटिश सरकार स्वीकार करती है कि ब्रिटेन की जेलों में रहते हुये कई अपराधी इस्लाम धर्म को अपना लिया करते हैं । यह उन सरकारी सुविधाओं के आकर्षण में किया जाता है जो केवल ब्रिटेन के मुसलमानों को ही प्राप्त हैं अन्य ब्रिटिशर्स को नहीं । यूँ इस्लाम के प्रति ब्रिटिश क्रिश्चियन्स का आकर्षण अद्भुत है । सन् 2011 की स्थिति में ब्रिटेन में जहाँ क्रिश्चियंस की जनसंख्या 59.3 प्रतिशत और मुसलमानों की जनसंख्या 4.8 प्रतिशत हुआ करती थी वहीं सन् 2019 की स्थिति में क्रिश्चियंस की जनसंख्या कम होकर 50 प्रतिशत और मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर 5 प्रतिशत हो गयी । धार्मिक मतावलम्बियों का यह खिसकाव ब्रिटेन के लिये ख़तरे की घण्टी है । यूनाइटेड किंग्डम में 2011 में नॉन रिलीजियस लोगों की जनसंख्या 25.1 प्रतिशत थी जो सन् 2019 में बढ़कर 37 प्रतिशत (9% एथीस्ट्स, 28% नॉन बिलीवर्स एवं एग्नॉस्टिक्स) हो गयी । राष्ट्रवाद के संदर्भ में इस विचलन का विश्लेषण कुछ नये समीकरण प्रस्तुत करता है ।

आश्चर्य की बात यह है कि यूके में मुस्लिम धर्मान्तरण की ओर यह झुकाव तब है जबकि इस कम्यूनिटी को वहाँ की सरकार और समाज पर एक अनावश्यक बोझ माना जाने लगा है । ब्रेडफ़ोर्ड, ड्यूज़बरी और ब्लैकबर्न के उदाहरण किसी को भी हतोत्साहित करते हैं जहाँ के मुसलमानों ने अपनी एक अलग दुनिया बना ली है जिसका शेष इंग्लैण्ड के लोगों से कोई वास्ता नहीं होता । उनके घर गंदे और अनहाइजेनिक होते हैं, वे अल्पशिक्षित या अशिक्षित होते हैं, अधिकतर युवा बेरोज़गार एवं आवासविहीन हैं और सरकारी सुविधाओं पर आश्रित रहते हैं, टीवी में भी वे लोग अपने मुस्लिम चैनल ही देखते हैं । वे स्वयं को इंग्लैण्ड जैसा नहीं बनाना चाहते बल्कि इंग्लैण्ड को अपने जैसा बनाना चाहते हैं जिसके कारण ब्रिटिशर्स और उनके बीच सामाजिक दूरियाँ बढ़ रही हैं और विवाद सड़क पर आने लगे हैं । इनके मौलवी धरती के चटाई की तरह चपटी होने और स्थिर होने की कल्पना की सत्यता पर आज भी अडिग हैं और इस्लाम के आगे आधुनिक विज्ञान को झूठा और दुनिया को ग़ुमराह करने वाला प्रचारित करने में रात-दिन एक किये रहते हैं । वे विज्ञान को तुच्छ और कुरान को सर्वोपरि मानते हैं, यहाँ तक तो सब कुछ ठीक है किंतु मुश्किल तब पैदा होती है जब उनकी ज़िद होती है कि सारी दुनिया को उनकी हर बात माननी ही होगी अन्यथा उन्हें क़त्ल कर दिया जायेगा ...और यह सब उनकी आसमानी किताब में लिखा है । विश्व के लिये यह एक बहुत बड़ी और गम्भीर चेतावनी है जिसका सामना करने के लिये पूरी दुनिया को एक मंच पर आना ही होगा ।

इस्लामिक साम्राज्यवाद की ओर तेजी से बढ़ता हुआ यह इस्लामिक राष्ट्रवाद है जिसके अनुसार धरती के किसी भी हिस्से में रहने वाले मुसलमान और उसके परिवेश को एक वैश्विक इस्लामिक देश का हिस्सा माना जाता है । स्वयं को अल्लाह का बंदा कहने वाले मुसलमान देर-सबेर हर हिस्से की आज़ादी के लिये ज़िहाद करने का अवसर तलाशते रहते हैं । मुश्किल तब आती है जब वे धरती से अन्य सभी धर्मों को समूल उखाड़ फेकने की बात करते हैं । यह एक तरह से अराजकता, असामाजिकता और आपराधिक गतिविधि का ऐलान है ।

यू-ट्यूब पर ऐसे वीडियोज़ की भरमार है जिनमें भारत और पाकिस्तान के मौलवी हिंदुओं का नाम-ओ-निशान धरती से मिटा देने का ऐलान कर रहे होते हैं । ऐसे वीडियोज़ पर न कभी यू-ट्यूब को कोई आपत्ति होती है और न किसी सरकार को । भारत की तर्ज़ पर अब यूके में भी 5 प्रतिशत जनसंख्या वाले मुसलमान सामने आ गये हैं और यूके को इस्लामिक मुल्क बनाने के लिये प्रदर्शन करने लगे हैं । इसका सीधा सा अर्थ यह है कि वे ग़ैरइस्लामिक 95 प्रतिशत लोगों को भी शरीया की सीमा में लाने की ज़िद पर अड़ गये हैं । दूसरे शब्दों में कहा जाय तो 5 प्रतिशत लोगों को 95 प्रतिशत लोगों की धार्मिक आस्थाओं से कोई लेना देना नहीं है और वे उन 95 प्रतिशत लोगों पर भी अपनी हुकूमत कायम करने पर आमादा हैं ।

             ब हम किसी की कही हुयी बात को अंतिम सत्य मान लेते हैं तो हम उस समय सत्य की हत्या कर रहे होते हैं । अंतिम सत्य वह है जिसे कोई कहता नहीं फिर भी वह होता है ...उसका अस्तित्व होता है ...देश-काल से परे ...सार्वकालिक.... सार्वभौमिक ।

गणित में भारत की उपलब्धियाँ

शून्य की खोज करने वाले भारत ने गणित में अद्भुत उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं । भारत की कालगणना की सूक्ष्मता और वृहदता आश्चर्यचकित करती है ।

दुनिया को “संख्या” का उपहार देने वाले भारत में आज गणित का काला जादू भी किया जाना लगा है जहाँ गणित के सारे नियमों के धता बताते हुये 68.3 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों को अल्पसंख्यक माना जाता है, शेष तीस प्रतिशत में अन्य धर्मावलम्बी हैं जिन्हें बहुसंख्यक माना जाता है । इसी तरह लक्षद्वीप में भी जहाँ मुस्लिम 96.2% हैं अल्पसंख्यक माने जाते हैं, जबकि हिंदू, जो कि गणितीय दृष्टि से वास्तव में अल्पसंख्यक हैं उन्हें बहुसंख्यक माना जाता है ।

भारत में बहु और अल्प का गणितीय और राजनैतिक अर्थ परस्पर विरोधी हुआ करता है । इतनी बेशर्म गणित दुनिया के अन्य किसी भी देश में नहीं परोसी जाती । ...मजे की बात यह है कि गणित के इस काले जादू पर कोई भारतीय कोई सवाल भी नहीं करता ।

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