गुरुवार, 14 अक्टूबर 2021

तमसोमा ज्योतिर्गमय

 ब्राह्मण, मूलनिवासी और पूर्वज

 

भारत के ब्राह्मणविरोधी मूलनिवासी उवाच – ब्राह्मण विदेशी हैं, रूस और ईरान से आये हैं किंतु पौलस्त्य रावण जी हमारे पूर्वज हैं, हम दशहरा में उनका वध नहीं होने देंगे

ब्राह्मणों को विदेशी मानने और छत्तीसगढ़ को उनसे मुक्त करने का स्वप्न देखने वाले छत्तीसगढ़ के एक मंत्रीपिता ने कुछ गाँवों के लोगों को दशहरा के अवसर पर रावणवध न करने के लिये तैयार कर लिया है ।

मंत्रीपिता का अनायास ही हृदयपरिवर्तन हो गया है और ब्राह्मणविरोधी होते हुये भी अब वे ब्राह्मणपुत्र रावण की पूजा करने के लिये छत्तीसगढ़ के लोगों को तैयार करने के अभियान में जुट गये हैं । यह वही छत्तीसगढ़ है जहाँ रावण वध करने वाले श्रीराम की ननिहाल हुआ करती थी । यानी श्रीराम की ननिहाल में कुछ लोग उनके शत्रु की पूजा की तैयारियों में जुट गये हैं ।

श्रीकृष्ण को जहाँ अपने जन्म के पूर्व से ही अपनी ननिहाल का तीव्र विरोध झेलना पड़ा वहीं राम को अपने स्वर्गवासी होने के बाद अपनी ननिहाल का विरोध झेलना पड़ रहा है । अद्भुत कुयोग है! 

भारत के आदिवासीबहुल कुछ क्षेत्रों में रावण और महिषासुर को अपना पूर्वज मानने वाले आदिवासी दुर्गापूजा में महिषासुर वध और दशहरा में रावणवध का समय-समय पर विरोध करते रहे हैं । ब्राह्मणों को विदेशी मानने वाले ये ब्राह्मणविरोधी लोग स्वयं को भारत का मूलनिवासी मानते हैं किंतु पता नहीं क्यों ब्राह्मणपुत्र रावण को अपना पूर्वज मानते हैं ।

 “धार्मिक अभिव्यक्ति” और “नासा के वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकार किये गये इतिहास को नकारने की अभिव्यक्ति” की स्वतंत्रता का यह एक अद्भुत उदाहरण है । भारत में स्वतंत्रता का जिन्न सिर पर चढ़कर नाचता है । 

इजाज़त और अधिकार

 कुछ समय पूर्व गुजरात के भरूच में मुस्लिमबहुल हो गये एक क्षेत्र से हिन्दुओं को मुसलमानों के हाथों अपने घर बेचकर पलायन करना पड़ा था, और अब उस क्षेत्र के मंदिर को बेचने की तैयारी की जा रही है ।

भारतीय उपमहाद्वीप में हिन्दू-मुस्लिम टकराव थमने के स्थान पर बढ़ता ही जा रहा है । इस्लाम का यह टकराव विदेशों में वहाँ के स्थानीय धर्मावलम्बियों के साथ भी है जिसके कारण पूरी दुनिया में इस्लाम की नकारात्मक नहीं बल्कि एक विघटनात्मक छवि बनती जा रही है । इस्लामिक स्कॉलर्स ने इस्लाम के विस्तार और अन्य धर्मों के उन्मूलन के लिये नयीं-नयी परिभाषायें गढ़ ली हैं और और नये-नये मापदण्ड बना लिये हैं ।  

इस्लामिक स्कॉलर स्थान विशेष में कुछ कार्यों की “अनुमति के लिये कुरान को और कुछ कार्यों के अधिकार के लिये भारत के संविधान एवं धर्मनिरपेक्षता की सीमायें

हिन्दूविरोधी कार्यों के लिये धर्मनिरपेक्षता और भारत के संविधान को स्वीकार करने वाले इस्लामिक स्कॉलर

मंदिर में कुरान और दुर्गा पंडाल में अजान देने और नमाज पढ़ने को अपना संवैधानिक अधिकार मानने वाले इस्लामिक स्कॉलर्स तब तुरंत पाला बदल लेते हैं जब उन्हीं संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुये मस्ज़िद में भी आरती करने की बात की जाती है । मंदिर में नमाज पढ़ने और हिन्दू लड़की से विवाह करने को मुस्लिम स्कॉलर धर्मनिरपेक्षता और गंगाजमुनी तहज़ीब का नायाब उदाहरण मानते हैं किंतु मस्ज़िद में हनुमानचालीसा पढ़ने और मुस्लिम लड़की से हिन्दू लड़के के विवाह के सवाल पर वही स्कॉलर धर्मनिरपेक्षता और गंगाजमुनी तहज़ीब का चोला उतार फेंकते हैं और ऐसे विवाह को इस्लाम के ख़िलाफ़ मानते हैं । शोएब जमुई जैसे कई स्कॉलर कहते हैं कि इन कार्यों के लिये पवित्र कुरान में इजाज़त नहीं है । यानी “कहीं” वे अपने अधिकारों का प्रयोग करते हैं और “कहीं” उन्हें कुरान की इजाज़त नहीं होती जिसका अंतिम परिणाम होता है हिन्दू उन्मूलन ...जो गज़वा-ए-हिंद का लक्ष्य है ।

भारत का संविधान ऐसा क्यों है कि एक व्यक्ति हिन्दू-उन्मूलन के लिये तो उसका दुरुपयोग कर लेता है किंतु वही व्यक्ति हिन्दू-रक्षण का विषय आते ही शरीयत को संविधान से ऊपर मानने लगता है । यदि ऐसा है तब क्यों नहीं अन्य धर्मावलम्बियों को भी अपने-अपने धर्मों को संविधान से ऊपर मानने की स्वतंत्रता होनी चाहिये?

धर्म जब इतना विकृत हो जाय कि उसके नाम पर स्वेच्छाचारिता और अराजकता का ही राज्य हो जाय तब धर्म को अफीम मानकर उसका तिरस्कार ही मानवता को बचा सकता है । मूर्खों और निरंकुश असुरों का धर्म से कोई लेना देना नहीं हुआ करता । 

स्वतंत्र भारत में असुरक्षित हिन्दू

 जिस देश में ...धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर बलपूर्वक कहीं भी मजार या मस्ज़िद बना ली जाती हो (हालिया घटनायें दिल्ली की हैं जहाँ ये कार्य पुलिस संरक्षण में किये गये हैं), …मंदिर में घुसकर नमाज पढ़ने को धार्मिक सौहार्द्य माना जाता हो किंतु मस्ज़िद में रामायण पढ़ने को इस्लाम के विरुद्ध माना जाता हो, …सड़क पर कहीं भी नमाज पढ़ने के कारण आवागमन बाधित हो जाता हो, …कभी भी ...कहीं भी हिन्दुओं के साथ मारकाट होने लगती हो, …हिन्दुओं की लड़कियों से छलपूर्वक निकाह कर लिया जाता हो, …वक्फ़बोर्ड को भारत भर में किसी भी इमारत या ज़मीन को मुसलमानों को सौंप देने के लिये कलेक्टर को आदेश देने के कानूनी अधिकार दे दिये गये हों, …रोहिंग्यायों और बांग्लादेशियों को भारत में बसाकर जनसंख्या संतुलन बिगाड़ने की सरकारी दीवानगी परवान चढ़ती रहती हो, …हिन्दुओं को भारत के किसी भी प्रांत के किसी भी हिस्से को छोड़कर भाग जाने का फ़तवा देने की बढ़ती धार्मिक आज़ादी परवान चढ़ती रहती हो, …दुर्गा-पूजा के पंडाल में जूते सजाने को धर्म और कला की अभिव्यक्ति मान कर चुपचाप रहने की दबंगई दिखायी जाती हो, …मुस्लिम दंगाइयों से पीटे गये पीड़ित हिन्दू लोगों के ही विरुद्ध भारत की पुलिस अपराध दर्ज़ करती हो और फिर उन्हें घर से उठाकर गायब कर देती हो (हालिया घटना कवर्धा दंगे की है), …शरीयत लागू करने और भारत को इस्लामिक मुल्क बनाने का खुलेआम ऐलान किया जाता हो, …मौलानाओं और नेताओं द्वारा हिन्दुओं का नाम-ओ-निशान मिटा देने वाले उत्तेजित भाषणों से दहशत का वातावरण तैयार किया जाता हो फिर भी सरकारें बेबस बनी रहती हों, …स्वतंत्रता के बाद से ही पाठ्यक्रमों में मनगढ़ंत और भारतीय गौरव के विरुद्ध अपमानजनक इतिहास पढ़ाया जाता रहा हो जिसके कारण हिन्दुओं की नयी पीढ़ी में आधुनिकता के नाम पर अपने ही धर्म के विरुद्ध दीवानगी बढ़ती जा रही हो, …जहाँ हिन्दुओं को काफिर और मुशरिक माना जाता हो, …जहाँ का हिन्दू स्वयं को दूसरी श्रेणी का नागरिक अनुभव करने लगा हो, … तो मुझे संदेह होने लगता है कि पंद्रह अगस्त 1947 को मिली स्वतंत्रता क्या केवल मुसलमानों के लिये ही थी या उसमें से कुछ हिस्सा हिन्दुओं के लिये भी था ...और तब मैं यह भी सोचने के लिये विवश हो जाता हूँ कि क्या गांधी और नेहरू के सपनों का भारत अब सचमुच अपना आकार लेने लगा है और आने वाले दिनों में हिन्दुओं के लिये इस धरती पर कोई स्थान नहीं होगा?

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