पश्चिम बंगाल में हर बार की इस बार भी बम विस्फ़ोट से उपसंहार हुआ। अंतिम दिन तक गोलियाँ चलीं, हत्यायें हुयीं, सड़क पर रक्त बहा ...इस सबके बाद भी लोकतंत्र केवल बंगाल में ही सुरक्षित बना रहा। कई विषयों पर स्वसंज्ञान लेने वाले मीलॉर्ड! आपकी चेतना और नैतिकता सुरक्षित है न!
चुनाव प्रचार
के बाद मोदी चले साधना करने तो कुपित हो गये प्रोफ़ेसर अभय दुबे। अन्य लोगों की तरह
उन्होंने भी मोदी की कन्याकुमारी तीर्थयात्रा को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना
और मोदी पर साधना के राजनीतीकरण का आरोप लगाया।
चुनाव प्रचार
के समय भी “अलहमदुलिल्लाह” से बात का प्रारम्भ करने और एक वाक्य में तीन-चार बार “इंशा
अल्लाह” कहने वालों नेताओं पर ब्राह्मण देवता की कोई टिप्पणी नहीं आयी अभी तक। प्रोफ़ेसर
महोदय! आपने राजनीति, अध्यात्म, धर्म और दर्शन के बीच दीवालें खड़ी करने का निंदनीय प्रयास किया है।
प्रोफ़ेसर जी
ब्राह्मण हैं पर उन्हें यह नहीं पता कि धर्म, दर्शन और अध्यात्म में केवल उतना ही अंतर है जितना कि शरीर, नेत्र और मस्तिष्क में है। इन तीनों को पृथक कर देने से मनुष्य का
अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। जो धार्मिक है वह अ-दार्शनिक हो सकता है क्या? जो दार्शनिक है वह अ-धार्मिक हो सकता है क्या? जो अध्यात्मिक है क्या उसे धर्म और दर्शन के ज्ञान से कोई बाधा उत्पन्न
हो सकती है?
हे ब्राह्मण
देवता! भारतीय संस्कृति में धर्म केंद्रित राजनीति को ही लोककल्याणकारी माना गया है।
धर्मविहीन राजनीति उस मृत-वृक्ष की तरह होती है जो फल देने योग्य नहीं है। राजनीति
और राजनीतिज्ञों के पतन का कारण ही धर्मद्वेष है, और आप राजनीति को धर्म से अलग करना चाहते हैं? ध्यान रहे प्रोफ़ेसर साहब, हम उस धर्म की बात कर रहे हैं जो सार्वदेशज और सार्वकालिक है। आपकी
परिभाषा वाले एक भी धर्म इस श्रेणी में नहीं आते, वे केवल सम्प्रदाय हैं, धर्म नहीं।
अद्भुत्! जिन
ब्राह्मणों को ज्ञान-विज्ञान-धर्म-अध्यात्म और दर्शन का पण्डित एवं उपदेशक माना जाता
है वे इनके बीच दीवालें खड़ी कर रहे हैं? आप अकेले नहीं हैं, बहुत हैं आप जैसे तथाकथित कुलीन ब्राह्मण जिन्हें मोदी की साधना
से भी आपत्ति है।
सावधान! तथाकथित
ब्राह्मणो! कलियुग में सनातनधर्म को ब्राह्मणेतर लोगों ने ही बचा कर रखा है अन्यथा
ब्राह्मण तो प्रायः धर्मविरुद्ध आचरण करते हुये ही देखे जाते हैं। मैं लज्जित हूँ ब्राह्मणों
के आचरण पर और गौरवान्वित हूँ ब्राह्मणेतर लोगों के आचरण पर।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.