शनिवार, 15 जून 2024

अलोकतांत्रिक होता लोकतंत्र

-फ़र्जी वोट डालने गयी महिलाओं को पुलिस पकड़ कर ले गयी, रात को भीड़ ने पुलिस स्टेशन पर आक्रमण किया और महिलाओं को मुक्त कराकर ले गयी। पुलिस कुछ भी नहीं कर सकी। पुलिस-प्रशासन के औचित्य पर पुनः चिंतन किया जाना चाहिये। क्यों न इसी भीड़ को समाज की अंतरव्यवस्था का अधिकार दे दिया जाय!

-यौन-उत्पीड़न की पीड़िता जब अपने जैसी ही अन्य यौन-उत्पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए चुनाव लडती है तो मतदाता उसे पराजय का दंड देते हैं। ऐसे समाज में किसी भी व्यवस्था के औचित्य पर पुनः चिंतन किया जाना चाहिये। क्यों न यौनौत्पीड़क पुरुषों को ही समाज और सत्ता के सारे अधिकार अर्पित कर दिये जायँ!

-कोलकाता हाईकोर्ट से कोई निर्णय होता है, राज्य की महिला मुख्यमंत्री उस निर्णय को स्वीकार करने से मना कर देती है। उच्च-न्यायालय के औचित्य पर पुनः चिंतन किया जाना चाहिये। क्यों न सर्वशक्तिमान महिला मुख्यमंत्री को ही हर तरह के निर्णय का अधिकार दे दिया जाय!

-पूजा, शोभायात्रा और धार्मिक पर्वों पर आपत्ति करते हुये हिंसक आक्रमण करने की घटनाओं की निरंतरता, अपने ही देश में सनातनियों के धार्मिक अनुष्ठानों पर सत्ता के प्रतिबंध और हिंदुत्व को उखाड़ फेकने के आह्वान को देखते हुये भारत में सनातन संस्कृति और सभ्यता के औचित्य पर पुनः चिंतन किया जाना चाहिये। क्यों न आक्रमणकारी अपसंस्कृति और असभ्यता को भारत की राष्ट्रीय संस्कृति और सभ्यता घोषित कर दिया जाय!   

-भारत का विभाजन कर पृथक खालिस्तान देश बनाने की दिशा में आगे बढ़ते एक व्यक्ति को जेल से चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाती है और वह भारी मतों से चुनाव जीत जाता है। अब वह संसद में बैठकर खालिस्तान बनाने की नींव निर्मित करने के लिये अधिकृत है। यदि भारत के संविधान में इस तरह की अराजक गतिविधियों को रोकने के लिये कोई प्रावधान नहीं है तो संविधान के औचित्य पर पुनः चिंतन होना चाहिये। क्यों न अराजकता को ही भारत का अलिखित संविधान स्वीकार कर लिया जाय!

-जो लोग बारम्बार संविधान बदलते रहे हैं वे दूसरों पर संविधान समाप्त कर देने का आरोप लगाते रहे हैं जिसे बहुत से मतदाता यथावत् स्वीकार भी करते रहे हैं। राजनीति में नैतिक मूल्यों के औचित्य पर पुनः चिंतन किया जाना चहिये। क्यों न झूठे दुश्प्रचार और संविधान बदलने वालों के ही हाथों में संविधान अर्पित कर दिया जाय!

-जातिप्रथा को विभाजनकारी और घृणामूलक मानने वाले *ब्राह्मणेतर राजनेता* एवं चिंतक जातीय-जनगणना करके जातिप्रथा को और भी सुदृढ़ करने की दिशा में कटिबद्ध हो चुके हैं ...इस घोषणा के साथ कि जातियाँ बनाने के लिये उत्तरदायी ब्राह्मणों को मारकर भारत से भगा देना चाहिये। इस देश में ब्राह्मणों के रहने के औचित्य पर पुनः चिंतन किया जाना चाहिये। क्यों न ब्राह्मणों को मारने और उन्हें भगा देने के लिये ऐसे राजनेताओं को स्वतंत्र कर दिया जाय!

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