ब्रह्माण्ड में कृष्ण-ऊर्जा (Dark Energy) और कृष्ण-द्रव्य (Dark Matter) की सहभागिता ९५% है इसलिए मात्र ५% शेष प्रकट-ऊर्जा (Perceptible Energy) एवं प्रकट-द्रव्य (Perceptible Matter) को अपने अस्तित्व के लिए निरंतर संघर्ष करते रहने की अपरिहार्यता होती है । यह सिद्धांत ब्रह्माण्ड की प्रत्येक घटना के लिये व्यावहारिक और अनिवार्य है । यह इतना सरल नहीं है इसीलिए अंकिता ठाकुर, सत्तू चाची और मोतीहारी वाले मिसिर जी जैसे कुछ लोग यज्ञाग्नि के लिए सतत अरणीमंथन में लगे हुए हैं । सत्तू चाची असभ्य होती वर्तमान सभ्यता के अंधकार से जूझ रही हैं, अंकिता ठाकुर मानवीय अधिकारों के अपहरण से चिंतित हैं तो मोतीहारी वाले मिसिर जी भारत पर विगत कुछ शताब्दियों से निरंतर होते आ रहे सांस्कृतिक आक्रमणों से चिंतित हैं । ऐसे ही और भी कई लोग हैं जो यह मानते हैं कि भले ही अकेला चना भाड़ न फोड़ सके पर चर्चा तो होती ही रहनी चाहिये ।
अंकिता
ठाकुर से पता चला कि दक्षिण कोरिया जाने वाले विदेशियों को जातीय घृणा के कारण
बहिष्कार का सामना करना पड़ता है । चर्मरंग, दैहिक सौंदर्य और भाषा के कारण दक्षिण कोरिया के
लोग विदेशियों से ही नहीं अपने भी देश के नागरिकों से घृणा करते हैं । यही कारण है
कि वहाँ नाक, होठ और स्तन की प्लास्टिक
सर्जरी का उद्योग जितना फल-फूल रहा है उतना विश्व में अन्यत्र कहीं भी नहीं है ।
दक्षिण कोरिया के सामान्य नागरिक से लेकर उद्योग और सरकार तक सभी लोग जातीय घृणा को बनाए रखने में विश्वास रखते हैं, ये बड़ी दुःखद और अचम्भित करने वाली स्थितियाँ हैं । अंकिता ठाकुर बताती हैं कि इस इतनी बड़ी समस्या को लेकर विश्व भर में जो प्रयास किये जाने चाहिये उनका अभाव और भी विचित्र है ।
*असभ्य होती सभ्यता*
टीवी चैनल्स पर आयोजित होने वाली राजनीतिक और धार्मिक चर्चाओं ने बार-बार प्रमाणित किया है कि तथाकथित सभ्य और माननीय लोग कितने असभ्य और अमाननीय हो चुके हैं । झूठ को महिमामण्डित और सत्य को लांछित करने वाले ये लोग देश की प्रतिष्ठा और समृद्धि के लिए कितने निष्ठावान होंगे इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है ।
*हिंसक होती शक्तियाँ*
भीड़ के पास
शक्ति है, सत्ता के पास शक्ति है ...और
ये दोनों ही निरंकुश होती जा रही हैं । सुरक्षा बलों और सेना पर आक्रमण करने वाली
भीड़ बढ़ती जा रही है, कई प्रांतों की सत्ता निरंकुश
और हिंसक हो गयी है । कुछ मुख्यमंत्री भारत विभाजन कर एक पृथक देश बनाने की दिशा
में विगत कई वर्षों से तीव्रता से आगे बढ़ते जा रहे हैं । केंद्रीय सत्ता धीरे-धीरे
अपना कांग्रेसीकरण करती जा रही है, जबकि देश के बारे में सोचने वाले मुट्ठी भर लोग नेपथ्य से बाहर
नहीं आ पा रहे हैं । संविधान से किसका कितना भला हुआ है, कितनी शांति हुयी है, कितने लोगों को न्याय मिला है, कितने असुरों को दंडित किया जा सका है ? संविधान की शक्तियाँ इतनी निष्क्रिय और अव्यावहारिक क्यों हैं ?
हमारे पास
विदुर नीति है पर उसकी बात करने से मुसलमानों के रुष्ट हो जाने की आशंकाओं के कारण
कोई उस पर बात भी नहीं करना चाहता । हमारे पास न्याय के सिद्धांत हैं पर उनके
क्रियान्वयन से अपराधियों के रुष्ट हो जाने की आशंकाओं के कारण कोई उसे व्यवहार
में नहीं लाना चाहता ।
सावधान! कैंसर की कोशिकाओं को कोई क्षति न हो इसलिए इसलिए शरीर की स्वस्थ्य कोशिकाओं की बलि देने की धूर्तता इस सभ्यता को समाप्त कर देगी ।
*भूस्खलन हिमांचल से केरल तक*
केरल के वायनाड
में हुये भूस्खलन को लेकर तेजस्वी नेता “तेजस्वी सूर्या” ने संसद में तथ्यात्मक आँकड़ों
के साथ जो तर्क प्रस्तुत किये उनका सारांश यह है कि इसके लिए प्रकृति के कोप से अधिक
“अधर्म” उत्तरदायी है ।
भूस्खलन के
लिए सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र हिमालय से भी अधिक घटनाओं का केरल में होना आश्चर्यजनक
नहीं दुःखद है । बारम्बार दी जाती रही चेतावनियों के बाद भी भू-उत्खनन और वृक्ष-हनन की निरंकुश घटनाओं ने प्रकृति को अपने संतुलन के लिए
विवश कर दिया जिसका परिणाम हुआ भूस्खलन, बाढ़, और मानवीय क्षति । ये अप्राकृतिक
और अधार्मिक कार्य धर्म-विशेष के लोगों को रुष्ट न करने के लिए वर्षों से किये जाते
रहे हैं । तेजस्वी सूर्या ने तथ्यों के साथ
यह भी बताया कि धर्म-विशेष के लोगों को प्रसन्न करने के लिए प्रकृति को अप्रसन्न करने
के इस पाप को रौल विंची (राहुल गांधी) के कार्यकाल में प्रोत्साहित किया जाता रहा है
।
पहले केदारनाथ धाम और मुंस्यारी, इस वर्ष शिमला और अब कुल्लू-मनाली क्षेत्र में हिमालय के प्रकोप की विनाशकारी घटनाओं से स्थानीय लोग कितनी शिक्षा ग्रहण करेंगे यह तो समय ही बतायेगा, पर हमारा विनम्र अनुरोध है कि इन क्षेत्रों में बहुखण्डीय आधुनिक भवनों के निर्माण की आज्ञा हिमालय किसी को नहीं देता । हिमालय ने पुरानी शैली के साधारण भवनों और काठ-कुनी शैली के भवनों के निर्माण की ही आज्ञा दी है । कृपया हिमालय की आज्ञा का उल्लंघन न करें ।
*गणेश के
नाम से द्यूतव्यवसाय*
अन्य
व्यवसायियों की तरह द्यूतव्यवसायियों ने भी रिद्धि-सिद्धि के दाता गणेश जी का
प्रयोग अपने व्यवसाय के लिए करना प्रारम्भ कर दिया है । संचार माध्यमों पर “Ganesha slot game lottery” का विज्ञापन बताता है कि कैसे “Ganesha betting app* डाउनलोड करके एक विमान परिचारिका ने आधे घंटे में ही कई करोड़
रुपये जीत लिए । द्यूतक्रीड़ा के विनाशकारी प्रभावों के भुक्तभोगी रहे हस्तिनापुर
का उदाहरण किसे दिया जाय !
गोआ, सिक्किम, मेघालय, दादर और नागर हवेली, दमन और दिव के अतिरिक्त भारत के अन्य किसी भी प्रांत में लॉटरी और कैसीनो को वैध नहीं माना गया है, पर संचार माध्यमों पर इस तरह के कई एप उपलब्ध हैं जो गैंब्लिंग उपलब्ध करवाते हैं । गोआ में तो कैसीनो इतने लोकप्रिय हैं कि एक कम्पनी “डेल्टा कॉर्प” को शेयर मार्केट में भी उतरना पड़ा । गैंब्लिंग से कई घर उजड़ते हैं तब कहीं जाकर एक घर बस पाता है, और यह बहुत बड़ी कीमत है ।
*आयकर*
देश के विकास
के लिए कराधान आवश्यक है किंतु तब क्या जब कराधान असंगत हो और करों का एक भाग
असामाजिक और अकर्मण्य लोगों को प्रसन्न करने के लिए अनिवार्य कर दिया जाय ? निश्चित ही यह करदाताओं का शोषण है जिससे कर्मण्यता हतोत्साहित
और अकर्मण्यता उत्साहित होती है । ऐसे अनैतिक अवसर क्यों उपलब्ध करवाये जाते हैं ?
करों के
बोझ से छोटे उद्योगपति विदेश पलायन के लिए विवश होने लगे हैं । क्या रोहिंग्याओं
और अवैध बांग्लादेशियों को पालने के लिए भारत की सृजनशीलता को हतोत्साहित कर दिया
जाना उचित है ? कैपिटल गेन पर बढ़ाये गये कर
करदाताओं के लिए ही नहीं उद्योगों के लिए भी दुष्परिणाम देने वाले हैं । केंद्र
सरकार को गैंब्लिंग के अतिरिक्त अन्य कैपिटल गेन पर बढ़ाये हुए करों की
व्यावहारिकता पर पुनः चिंतन करने की आवश्यकता है । गैंब्लिंग से होने वाली आय पर
बढ़ाया गया आयकर स्वागतेय है ।
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