रविवार, 25 मई 2025

समाज और सत्ता

             भारत के विपक्षी दलों ने सैन्यकार्यवाही सिंदूर से पूर्व और पश्चात् जिस तरह के आचरण का प्रदर्शन किया है वह कई प्रश्न तो खड़े करता ही है, हमें अपने राजनीतिक अतीत में झाँकने का अवसर भी प्रदान करता है ।

वे हिंदुत्व और भारतीय मूल्यों का सदा अमर्यादित एवं कठोर विरोध करते रहे हैं और प्रायः पाकिस्तान के साथ खड़े दिखायी देते हैं । वे वर्तमान सत्ता को अपदस्थ कर स्वयं सत्ता में आना चाहते हैं जिससे विदेशी सत्ताओं के लक्ष्यों को पूरा किया जा सके । वे भारत के हितैषी होने का छल करके भारत का सर्वनाश करना चाहते हैं क्योंकि वे भारत और भारत के मूल्यों को हीनतर और विदेशी मूल्यों को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं । उनके विदेशानुराग का कोई आदर्श कारण नहीं है, बस वे एक तरह की हीनभावना से ग्रस्त हैं इसीलिए उनके आचरणों में कई बार दुस्साहस, अमर्यादित प्रदर्शन और विरोधाभास निर्लज्जता की सीमा से पार भी प्रकट होता रहता है । पहलगाम नरसंहार से पूर्व और सैन्यकार्यवाही सिंदूर के पश्चात् की घटनाओं पर विपक्षियों का निरर्थक प्रलाप भारत की गरिमा को धूमिल करता है ।

पहले उन्होंने कहा कि मोदी अपने नागरिकों की सुरक्षा करने में सक्षम नहीं हैं, वे पाकिस्तान पर प्रत्याक्रमण करने में भी सक्षम नहीं हैं । फिर सैन्यकार्यवाही सिंदूर के समय हड़बड़ाया विपक्ष चुप हो गया और सत्ता के साथ खड़ा दिखाई देने लगा किंतु यह उनका आभासी आचरण ही सिद्ध हुआ । सिंदूरकार्यवाही के पश्चात उनका कुटिल आचरण स्पष्ट होने लगा – मोदी ने सैन्य कार्यवाही क्यों रोक दी, मोदी भीरु हैं, मोदी ट्रम्प के दबाव में क्यों आ गये, विदेश मंत्री ने प्रत्याक्रमण की सूचना पाकिस्तान को पहले से क्यों दी, विश्वमुद्राकोष से पाकिस्तान को मिलने वाले धन की स्वीकृति को रोकने में मोदी असफल क्यों हुये, विश्व भ्रमण पर विपक्षी सदस्यों को भेजने की क्या आवश्यकता थी, आवश्यकता थी तो रौलविंची से पूछकर सदस्यों का चयन क्यों नहीं किया, ड्रोन गिराने के लिये इतने मूल्यवान मिसाइल का प्रयोग क्यों किया, इतना धन व्यय करने के बाद भी लाहौर और इस्लामाबाद अपने अधिकार में क्यों नहीं किया, …। खल-श्रेणी के ऐसे आधारहीन प्रश्न असीमित हो सकते हैं और प्रश्नकर्ताओं की कुटिलता भी अंतहीन हो सकती है । हम इतिहास की उपेक्षा करने में गर्व का अनुभव करने लगे हैं! लगभग तेरह सौ वर्ष पूर्व जब सिंध के चचवंशी राजा दाहिर पर अरबी सेनाओं ने आक्रमण किया तो आर्यावर्त के अन्य राजागण निर्विकार रहे । इतना ही नहीं, स्वयं राजा दाहिर की प्रजा के कुछ बौद्धों ने विदेशी सेना का नगर में स्वागत किया जिसके परिणाम स्वरूप आर्यावर्त सदा के लिये इस्लामिक आक्रमणकारियों के अत्याचारों से पीड़ित बने रहने के दुर्दैव का भागी बना । आज की स्थिति भी वैसी ही है । विपक्षी दलों के प्रवक्ता सैन्य कार्यवाही स्थगन को लेकर ट्रम्प की विवादित भूमिका पर सेना और सत्तापक्ष द्वारा स्पष्टीकरण के बाद भी प्रधानमंत्री को जिस तरह दोषी ठहराये जाने के हठ पर अड़े हुये हैं वह उनकी कुटिल निर्लज्जता का द्योतक है ।

सत्ता की अज्ञात विवशता

मध्यप्रदेश के एक मंत्री ने सिंदूर कार्यवाही के पश्चात् एक समर्पित महिला सैन्यअधिकारी की प्रशंसा करने की अपेक्षा उन पर आपत्तिजनक और अमर्यादित टिप्पणी कर दी, प्रकरण न्यायालय में पहुँचा तो मीलॉर्ड ने मंत्री को क्षमा करने से मना करते हुये कारागार में भेजने से भी मना कर दिया । विद्वान मीलॉर्ड जी! सेना और महिला का अपमान करने वाले व्यक्ति को अपराधी क्यों नहीं माना जाना चाहिये? ऐसे अभद्र आचरण वाले मंत्री को सत्ता में बनाये रखने की ऐसी कौन सी विवशता है ? ? ?   

फातिमा बेगम अर्थात् राखी सावंत

सनातन से ईसा और अब अल्लाह तक की साम्प्रदायिक यात्राओं ने राखी सावंत की सामाजिक और राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं में जिस तरह की क्रांतियाँ की हैं वे इस बात को सिद्ध करती हैं कि मतांतरण ही राष्ट्रांतरण का पूर्वस्वरूप है । जब उसने फ़ातिमा बनकर मुस्लिम व्यक्ति से निकाह किया तो वह इस्लाम के प्रति समर्पित हो गयी किंतु पति से प्रताड़ित होने के बाद अब वह किसी अन्य पाकिस्तानी व्यक्ति से अपना अगला निकाह करना चाहती है । अगला निकाह अभी हुआ नहीं है क्योंकि होने वाले पति ने विवाह करने से मना कर दिया है किंतु फ़ातिमा बेगम के मन में पाकिस्तान बस चुका है, अपने दृढ़ निश्चय के साथ ही राखी (फ़ातिमा बेगम) की प्रतिबद्धता भारत से निकलकर पाकिस्तान के लिये हो गयी है, इसीलिये वह कैमरे के सामने मुट्ठी भींचकर कहती दिखायी देती है “पाकिस्तान ज़िंदाबाद”!

जब दो लोगों के मध्य विवाद या युद्ध हो रहा हो और हम किसी के लिये ज़िंदाबाद / जय हो का नारा लगाते हैं तो उसके विरोधी या शत्रु के लिये मुर्दाबाद / पराजय की स्पष्ट कामना करते हैं । अतः राखी सावंत/ फ़ातिमा भारत की पराजय की कामना करने लगी है ।

राखी जैसे लोग ही अपने देश के विरुद्ध विदेशी शक्तियों का स्वागत और सहयोग किया करते हैं । राखी सावंत को भारत ने वह सब कुछ दिया जो उसे चाहिये था, पर वह भारत को उसका उसका हजारवाँ अंश भी नहीं दे सकी । लोग चाहते हैं कि राखी जैसे लोगों का खुलकर विरोध प्रदर्शन किया जाना चाहिये और उनके विरुद्ध विधिक कार्यवाही की जानी चाहिये ।

सत्ता और व्यापार, सत्ता का व्यापार

सत्ता और व्यापार का संतुलन किसी भी देश की समृद्धि के लिये आवश्यक घटक माना जाता है किंतु तब क्या होगा जब राजनेता सत्ता का ही व्यापार करने लगें ?

ब्रिटिश इंडिया से लेकर इंडिया तक की यात्रा में दुर्भाग्य से सत्ता का व्यापार ही भारत का भाग्य बन गया । सत्ता के साथ ही शोषण का भी हस्तांतरण हुआ जिससे इंडिया कभी भारत बनकर अपना शीष उठा ही नहीं सका । वर्तमान सत्ताधीश इंडिया को भारत की ओर एवं वर्तमान विपक्षी दल इंडिया को जिन्ना के पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश या लेनिन-स्टालिन के तत्कालीन सोवियत संघ जैसे किसी कम्युनिस्ट देश की ओर ले जाने के लिये अपनी-अपनी प्रतिबद्धतायें दोहराते रहते हैं और हम प्रतीक्षा करने अतिरिक्त और कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं ।

मोदी, ट्रम्प, पिंग और पुतिन

आयातित वस्तुओं पर कराधान और प्रतिकराधान के बीच लाभकारी नये सम्बंध बनाने के प्रयासों ने विश्व को व्यापारिक कराधान के एक अप्रिय शीतयुद्ध में धकेल दिया है । ट्रम्प बुल्लिश होकर आक्रमण कर रहे हैं तो पिंग, मोदी और पुतिन अपने-अपने व्यापारिक ढाँचों को सुरक्षित बनाये रखने के उपाय खोजते दिखायी दे रहे हैं । ट्रम्प का छेड़ा यह युद्ध अपने प्रतिद्वंदी की व्यापारव्यवस्था को पराभूत करते-करते अब औद्योगिक ढाँचे को ही चरमरा देने की ओर बढ़ता दिखायी देने लगा है । ट्रम्प का तो पता नहीं पर पिंग और पुतिन अपनी सुरक्षा कर पाने में सक्षम हैं जबकि भारत की स्थिति संशयपूर्ण है, उसे बहुत सावधानी से अपनी कार्ययोजनायें बनानी होंगी । किसी भी उद्योग की श्रेष्ठता और सफलता तकनीकी शोधों और कुशल कर्मियों की गुणवत्ता पर आधारित होती है, जबकि भारत में गुणवत्ता की अपेक्षा जातीय आरक्षण को ही प्राथमिकता दी जाने की कुटिल राजनीतिक परम्परा पड़ चुकी है । जातीय जनगणना की घोषणा और संख्याबल के अनुसार सत्ता में भागीदारी के स्वप्न ने संख्या को प्रोत्साहित किया है, गुणवत्ता को नहीं ।

पारस्परिक कराधान के युद्ध में एक स्पष्ट ध्रुवीकरण होता दिखायी देने लगा है, जिसके परिणामस्वरूप अमेरिका और चीन का तात्कालिक गठजोड़ सम्भावित है । भारत को अपने लिये विश्वसनीय साथी खोजने होंगे, कौन हो सकता है विश्वसनीय! नैतिक मूल्यों में विश्वास न रखने वाले अमेरिका की स्वार्थपरता सर्वविदित है । चीन मौन रहकर घात-प्रतिघात में दक्ष है । रूस भी परिस्थितियों के अनुरूप अपनी नीतियों में परिवर्तन को प्राथमिकता देता रहा है । हम इज़्रेल पर विश्वास कर सकते हैं पर वह बहुत छोटा देश है, व्यापार संतुलन में उसकी भूमिका अभी इतनी पहत्वपूर्ण दिखायी नहीं देती । इधर हम अपने पड़ोसियों के आतंकी व्यवहार से पीड़ित हैं अन्यथा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश एक साथ खड़े होकर औद्योगिक जगत और व्यापार व्यवस्था पर एकछत्र राज्य कर सकने में समर्थ हैं । कदाचित यह स्वप्न भविष्य में कभी सच हो सके । निश्चित ही हम अमेरिका पर लेश भी विश्वास नहीं कर सकते, इसलिये अभी तो हमें रूस और चीन के बारे में ही सोचना होगा । अमेरिका की अपेक्षा चीन पर विश्वास करना कम संकटपूर्ण हो सकता है । काश! भारत और चीन निर्जन हो चुके अपने पुराने रेशमपथों पर लौट पाते !

शुक्रवार, 16 मई 2025

ईश्वर की खोज

             पूर्व की चर्चाओं में मैं पहले भी कई बार कह चुका हूँ कि ईश्वर मनुष्य का सबसे बड़ा अनुसंधान है । यह क्वांटम से आगे का विषय है किंतु इसका अनुसंधान क्वांटम के अनुसंधान से पहले ही हो गया था । यह अद्भुत है कि सबसे बड़े अनुसंधान के बाद बहुत से छोटे-छोटे अनुसंधान और आविष्कार होते रहे, छोटे अनुसंधानों की यह शृंखला आज भी अनवरत चल रही है ।

एक परम्परावादी धार्मिक परिवार में जन्म लेने वाले किशोर को जब कम्युनिज़्म ने प्रभावित किया तब सबसे पहले तो वह नास्तिक बना फिर तथाकथितरूप से प्रगतिशील समूह में सम्मिलित हो गया । किशोर के जीवन में आँधी की तरह प्रविष्ट हुआ कम्युनिज़्म युवावस्था तक विलुप्त हो गया । कम्युनिज़्म का अंतर्द्वंद्व जब शांत होता है तब समुद्र की अतल गहराई में छिपे हुये सनातन के दर्शन होते हैं । अब मैं एक सनातनी हूँ और ईश्वर को सनातनी दृष्टि से समझने का प्रयास करता हूँ । सनातनी होने का अर्थ है सत्यान्वेषी होना, किंतु सनातनी होना कोई उपलब्धि नहीं है, उपलब्धि है सत्यान्वेषी होना ।  

जब हम ईश्वर और उसके प्रतीकों की स्थूल दृष्टि से बात करते हैं तो विज्ञानसम्मत तथ्य भी पाखण्ड से प्रतीत होने लगते हैं, विशेषकर अनुष्ठानों को लेकर । हमने उन सभी शक्तियों की मूर्तियाँ बनाने का प्रयास किया जिनसे हम बारम्बार परास्त होते रहे और अंततः उनकी उपासना करने के पश्चात् ही समस्याओं से मुक्त हो सके ।

अनादि, अनंत, अखण्ड, अभेद और निराकार ईश्वर की उपासना सबसे कठिन कार्य है । आप क्वाण्टम की कल्पना कर सकते हैं पर ईश्वर की कल्पना कैसे करेंगे! ईश्वर की उपासना को सरल करने के लिये हमने प्रतीकों को गढ़ा और उन्हें आकार दिया, उनकी प्राणप्रतिष्ठा की और ईश्वर को अपने जैसा किंतु एक सर्वश्रेष्ठ मनुष्य बना लिया । अब वह हमारी तरह जागता है, सोता है, वस्त्राभूषण से सुसज्जित होता है, भोजन और शयन करता है ...हमने अपने दैनिक जीवन की सभी भौतिक आवश्यकताओं को अपने ईश्वर में प्रतिष्ठित कर लिया । निराकार की उपासना अब सरल हो गयी है । बीजगणित के सूत्र सिद्ध होने लगे, यदि के तुल्य ’, ‘के तुल्य तो भी के तुल्य होगा । अब अ, , स मुझे पाखण्ड नहीं लगते । हमारे ही गढ़े हुये प्रतीक अब पाखण्ड नहीं लगते । बहुत दूर है, उसे के पास जाने के लिये से होते हुये ही जाना होगा, यही तो सन्मार्ग है जिसे मैं बहुत भटकने के बाद समझ पाया हूँ  मोतीहारी वाले मिसिर जी

In quest of the God

 

“In earlier discussions, I have mentioned several times that God is the greatest research of mankind. This is a subject beyond quantum, but its research had already occurred before the research on quantum. It is amazing that after the greatest research, many smaller researches and inventions have continued to happen; this chain of smaller researches is still ongoing today.

When a teenager born into a traditional religious family was influenced by communism, he first became an atheist and then joined the so-called progressive group. Communism entered his life like a storm but faded away by his youth. When the inner conflict of communism settles, the eternal philosophies hidden in the deep ocean become visible. Now I am a Sanatani and I try to understand God from a Sanatan perspective. Being a Sanatani means being a seeker of truth, but being a Sanatani is not an achievement; the achievement is being a seeker of truth.

When we talk about God and his symbols from a gross perspective, even scientific facts begin to appear as hypocrisy, especially concerning rituals. We have tried to create idols of all those powers from which we have repeatedly faced defeat, and ultimately we were able to free ourselves from problems only after worshiping them.

The most difficult task is to worship the eternal, infinity, unbroken, impenetrable and formless God. You can imagine quantum, but how can you imagine God? In order to simplify the worship of God, we have coined and shaped symbols, consecrated them, and made God like ourselves but a superior human being. Now he wakes up like us, sleeps, is clothed, eats and sleeps... We have enshrined all the material needs of our daily life in our God. The worship of the incorporeal has now become easy. The formulae of algebra began to be proved, if 'B' equals 'A', 'S' equals 'B', then 'S' will also be equal to 'A'. Now A, B, C does not seem to me hypocrites. Our own fabricated symbols no longer seem hypocritical. 'S' is very far away, one has to go through 'B' to get to 'A', and this is the path which I have been able to understand after deviations". – Motihari Wale Misir Ji 

मंगलवार, 13 मई 2025

युद्ध रुका क्यों ?

 *कौन हारा कौन जीता*

जब दो योद्धा अपनी-अपनी जीत के प्रमाण प्रस्तुत करने लगें और कोई निष्पक्ष निर्णायक अनुपस्थित हो तो भ्रम स्वाभाविक है । प्रायः होता यह है कि जिसके प्रमाण अधिक सजे-सँवरे लगें वह सत्य के नहीं, झूठ के अधिक समीप होता है । पाकिस्तानी समाचार चैनल – “365 News Live” में अपनी जीत और भारत की पराजय के समाचार परोसने वाले लोगों के ठहाके, उनका आत्मविश्वास, विरोधाभासी वक्तव्य और भारत की पराजय के कूटप्रमाण सारी पोल खोल कर रख देते हैं । ऐसी निर्लज्जता अन्यत्र दुर्लभ है ।    

झूठ को सत्य की तरह प्रस्तुत करने में तकनीक की भूमिका ने कई विवादों और भ्रमों को जन्म दिया है । यह आधुनिक समाज का सर्वाधिक कलंकित पक्ष है । “अश्वत्थामा हतो नरो कुंजरो वा” जैसे भ्रम उत्पन्न करना युद्ध के समय रणनीतिकौशल के अंश हैं, पर अपने ही लोगों के समक्ष झूठ पर अड़े रहना किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं होना चाहिये । पाकिस्तान ने यही किया है, वह सदा से ऐसा ही करता रहा है । वह कभी अपनी पराजय को स्वीकार नहीं करता प्रत्युत अपने शत्रुपक्ष की जीत को उसकी पराजय बताकर और उसके कूटरचित प्रमाण प्रस्तुत कर पूरी दुनिया के साथ-साथ अपनी जनता के साथ भी छल करता रहा है । विडम्बना यह है कि ईरान, तुर्की और अजरबैजान जैसे मुस्लिम देशों के साथ-साथ चीन भी इस छल के लिये पाकिस्तान का ही समर्थन करता रहा है । चीन की एक समृद्ध दार्शनिक परम्परा रही है, उसका छलपूर्ण व्यवहार चिंताजनक है ।

हर बात में प्रतिकूल टिप्पणियाँ करने वाला अतिदुर्बल विपक्ष पूछता है कि अचानक युद्ध रुका क्यों ? रुका तो ट्रम्प के कहने से क्यों रुका ? पाक अधिकृत कश्मीर वापस लिया क्यों नहीं ? बलूचिस्तान को स्वतंत्र कराया क्यों नहीं ? पाकिस्तान को खण्ड-खण्ड किया क्यों नहीं ?  

 

*युद्ध रुका क्यों?*

भारतीय सेना और प्रधानमंत्री के वक्तव्यों के बाद स्थिति अब पूरी तरह स्पष्ट हो चुकी है । यह युद्ध पाकिस्तान के विरुद्ध तो था ही नहीं, यह तो पाकिस्तानी सेना समर्थित आतंकवादियों के विरुद्ध था । हम ही इसे पाकिस्तान के विरुद्ध समझ बैठे थे । पाकिस्तान में भारत समर्थक बलूच हैं, पख़्तून हैं, सिंधी हैं, हम अपने समर्थकों से युद्ध कैसे कर सकते हैं!

पहलगाम नरसंहार के बाद हुये इस प्रत्याक्रमण में शत्रु को भरपूर क्षति पहुँचाने के बाद और पाकिस्तान की सेना की ओर से युद्धविराम की पहल के बाद युद्ध करते रहने का कोई अर्थ नहीं था, विशेषकर तब और भी जब शत्रु महामूर्ख, आत्महंता और जनहित के कल्याण से निष्प्रयोजित भी हो ।

युद्ध के समय पाकिस्तान में दो बार भूकम्प के झटकों का अनुभव किया गया । यह पाकिस्तान का भूमिगत परमाणुपरीक्षण था । उसे पता है कि भारत पर परमाणु बम डालने के बाद उसका भी अस्तित्व बच नहीं सकेगा किंतु इससे उसे कोई प्रयोजन नहीं, उसका तो सारा प्रयोजन गजवा-ए-हिंद के लिये शहीद होकर अल्लाह की गोद में बैठकर अंगूर की शराब पीने और बहत्तर हूरों की सेवायें प्राप्त करने तक ही सीमित है ।

विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तान के परमाणु बम त्रिस्तरीय हैं जिनके एक स्तर का नियंत्रण अमेरिका के पास है । समाचार है कि अमेरिका की चिंता इस बात को लेकर है कि आतंकनियंत्रित पाकिस्तान का न्यूक्लियर नियंत्रण कहीं अन्य आतंकी समूहों ने तो नहीं ले लिया । सर्वविदित है कि पाकिस्तान की राजनीति आतंक और अल्लाह के नाम पर ही चलती है, वहाँ की कठपुतली सत्ता आतंकवादियों को कभी भी न्यूक्लियर नियंत्रण को दे सकती है जिससे एशिया के अन्य देश भी संकट में पड़ सकते हैं । भारत ने पाकिस्तान के परमाणु बम की धमकी को देखते हुये उसके सैन्य केंद्र को लक्ष्य बनाकर आक्रमण किया जिससे वहाँ के तकनीकी संयत्रों को भारी क्षति हुयी है और वहाँ रेडिएशन होने की आशंका व्यक्त की जाने लगी है । अभी तो पाकिस्तान इस स्थिति में नहीं रह गया कि वह निकट भविष्य में कहीं परमाणु बम डाल सके ।

भारत ने विश्वबंधुत्व के उत्तरदायित्व की महती भूमिकाओं का निर्वहन किया है । हमें केवल अपने ही नहीं, दूसरों के कल्याण के बारे में भी सोचना होता है । पाकिस्तान एक ऐसा झोलाछाप डॉक्टर है जो किसी औषधि के साइड-इफ़ेक्ट्स की चिंता किये बिना रोगियों को औषधि देने तक ही सीमित है, फिर उसका परिणाम कुछ भी क्यों न हो, उससे पाकिस्तान को कोई प्रयोजन नहीं । भारत के पास चिकित्सा की वैश्विक उपाधियाँ हैं, इसलिये उसे तो हर बात की चिंता करनी ही होगी न!   

हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि भारत किसी देश, किसी सभ्यता या किसी सम्प्रदाय के विरुद्ध कभी आक्रामक नहीं रहा है । भारत का इतिहास आक्रमण का नहीं, सुरक्षात्मक प्रत्याक्रमण का रहा है, और यह भारत के लिये गर्व का विषय है ।    

सोमवार, 12 मई 2025

झूठ के समंदर में

आज वैशाख पूर्णिमा है और सीमा के उस पार झूठ की मंडी में बहार है । नेता अभिनेता से लेकर सड़क पर खड़ा आमआदमी तक झूठ में नहा-नहा कर मगन हो रहा है । झूठ उधर ही नहीं, इधर भी है, कुत्सित चालें उधर भी हैं, इधर भी हैं ।

कोई मोदी को संसद में स्पष्टीकरण के लिये बुला रहा है, कोई उनका त्यागपत्र माँग रहा है तो कोई क्षमायाचना मँगवाने के लिये रार कर रहा है । विवेक श्रीवास्तव को क्रोध है कि मोदी ट्रम्प के बहकावे में क्यों आये? उदय राज को दुःख है कि नाम सिंदूर क्यों है । कल पूछेंगे कि भारत का नाम भारत क्यों है ! सदा उदास रहने वाले उदय राज! सिंदूर को सिंदूर न कहें तो क्या बिक्सा ओरेल्लाना चलेगा !    

सत्यान्वेषी अँधेरे में भटक रहे हैं, झूठ के इस समंदर में सच की नन्हीं मछली न जाने कहाँ छिपा दी गयी है! कौन जीता कौन हारा, कौन गिड़गड़ाया किसके आगे । किसने किसके सैनिक मारे, कौन जान बचाकर भागे । बड़के-बड़के डीजीएमओ बोल रहे हैं, हमको तुमको पता नहीं कुछ, कितनी सच्ची कितनी झूठी हाँक रहे हैं । बनकर मुखिया घूम रहे सब, ट्रम्प बीच में कूद रहे हैं । कभी इधर की कभी उधर की, चीनी फ़्रांसीसी बोल रहे हैं । सगा कौन है कौन हितैषी, ना कोई रिश्ता ना कोई नाता, क्यों फूफ़ा बनके घूम रहे हैं!    

पाकिस्तान को क्या कहा जाय, उसके लिये तो केवल इतना ही संदेश है –

 लाख जतन भी ना ढकयँ साँचे हों जो काम

कभी उजागर होएँगे सब काम-धाम और नाम ॥

मिथ्या इतना बोलिये जा में मुँह छिपि जाय

कालिख भी कुछ कम लगय लज्जा भी रहि जाय ॥

गुरुवार, 8 मई 2025

असुर और दैत्य परम्परा के पोषक

             एक भारतीय नेता उवाच - ऑपरेशन सिंदूरएक धर्म विशेष का प्रतीक है, ऑपरेशन का कोई धर्मनिरपेक्ष नाम होना चाहिये था

बिहार की एक महिला विधायक उवाच - पहलगाम नरसंहार हुआ ही नहीं, यह तो केवल जुमलेबाज का दुषप्रचार है

ऐसे लोगों को क्यों नहीं कारागार में डाला जाना चाहिये ? हम जानते हैं कि कोई भी मीलॉर्ड इन भारतविरोधी कृत्यों पर स्वसंज्ञान नही लेगा, यह तो भारत के नागरिकों को ही करना होगा । हमारे न्यायालय सफेद हाथी हैं जिनकी आम नागरिक के लिये उपयोगिता को समझना और स्वीकार करना कठिन है । स्वातंत्र्योत्तर भारत की न्यायव्यवस्था सर्वाधिक भ्रष्ट और अन्यायपूर्ण व्यवस्था ही सिद्ध होती रही है ।

पहलगाम नरसंहार पर आरोपों=प्रत्यारोपों की शृंखला का कोई अंत नहीं है । धरती पर असुरों और दैत्यों की परम्पराओं के पोषक सदा से रहते आये हैं । पाकिस्तान के अपराधों और कुकृत्यों को मोदी का झूठा प्रचार मानने वालों की कमी न भारत में है, न पाकिस्तान में और न विश्व के अन्य देशों में ।

छल, प्रपंच और द्वेष जैसे दुर्गुणों के आधार पर निर्मित पाकिस्तान के नेता अपने कुकृत्यों को सदा से नकारते रहे हैं । वहाँ के लोग भारत को अपना शत्रु मानते रहे हैं, इसीलिये वे लोग भारत पर अत्याचार और आक्रमण करना अपना धर्म मानते हैं । संचार माध्यमों पर चल रहे वीडियोज़ में अधिकांश भारतीय मुसलमान भी पहलगाम नरसंहार को झूठ और ऑपरेशन सिंदूर को मोदी का मुसलमानों पर अत्याचार बताने में लेश भी लज्जित नहीं होते । भारत के ऐसे अभारतीय और पाकिस्तानप्रेमी नागरिकों को भारत में रहने का कोई भी नैतिक, सामाजिक या राष्ट्रीय अधिकार क्यों होना चाहिये? हम भी तो इसके विरुद्ध कभी कोई आंदोलन नहीं करते

पाकिस्तान की आरजू काज़मी चर्चा में रहती हैं, उन्हें खुलकर पाकिस्तान के विरोध में और भारत के पक्ष में बोलते हुये सुना जाता है पर हमने उन्हें भारत के विरोध में और मोदी का अपमान करते हुये भी सुना है । सीमा हैदर एक बार पुनः चर्चा में हैं, कई लोग उन्हें पाकिस्तान की जासूस मान रहे हैं, उनके पास इसके तर्क भी हैं पर वे भारत में चैन से रह रही हैं । त्रिया चरित्र को समझना इतना सरल है क्या ! पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि भारत में अंबर जैदी, सुबुही खान, याना मीर और नाज़िया इलाही खान जैसी विवेकशील नारियों की भी कमी नहीं है ।

हम पुनः पाकिस्तान पर आते हैं, जो पहलगाम नरसंहार घटना की जाँच कराने की माँग कर रहा है । कौन करेगा जाँच, चीन, तुर्की, मलेशिया, ईरान, बांग्लादेश....? पाकिस्तान के इस प्रलाप में अभी तक हर घटना का प्रमाण माँगने वाले भारतीय नेता सम्मिलित नहीं हुये, यह आश्चर्य है । हमने मोतीहारी वाले मिसिर जी से पूछा, असुर इतने प्रभावी कैसे हो जाते हैं कि मनुष्यत्व और दैवत्व का अस्तित्व ही संकट में आ जाता है? उन्होंने इसका कारण ब्रह्माण्ड की भौतिक संरचना को बताया -  “As you know the visible universe is only 5 percent of the entire cosmos i.e. 95% of the cosmos is invisible and hence dark, which contains 26.8% dark matter and 68.2% dark energy.  So, the negative charges, hidden elements and invisible powers are dominant over divinity.” – मोतीहारी वाले मिसिर जी ।

शनिवार, 3 मई 2025

मूर्तियाँ

 गढ़ डालीं हमने

सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ

उन लोगों की

जो लगे विचारक

और शुभचिंतक भी हम सबके ।

हमने भगवान बना डाला उन सबको

जो काम आ सकते थे हम सबके

मनुष्यों की तरह ।

पता था

गढ़ी हुयी मूर्तियाँ निष्प्राण होती हैं

हमने ठूँस दिये उनमें विचार

उनके नहीं

अपने लक्ष्यों को पूरा करने वाले

निजी विचार ।

मूर्तियाँ अब अस्त्र-शस्त्र बन गयी हैं

जिनसे हत्या करते हैं हम प्रतिक्षण

उन्हीं विचारकों और चिंतकों की

उनके विचारों और चिंतन की ।

 

दिवंगत हो चुके लोगों के शवों से

अब हम व्यापार करते हैं

गढ़कर भगवान, भगवान से

हम टकरार करते हैं

दिन-रात सबकी आँखों में

हम धूल झोकते हैं

तुम्हें भी तो लगता है अच्छा

धूल झुकी आँखों से निहारना

निहारते ही रहना मृगमरीचिका ।