मैं
नदी नहीं........
कि काट कर घायल कर दूं
अपने ही किनारों को,
और ......न बेबस तालाब हूँ .......
कि कीचड में तब्दील कर दूं
अपनी सारी सीमाएं /
मैं
हमेशा के लिए
न तो बह कर जा सकता हूँ .......
नदी की तरह,
न ठहर सकता हूँ .......
तालाब की तरह
............किन्तु
तुम मुझे इल्ज़ाम न देना,
मैं तो बारबार आऊँगा............
ज्वार की तरह
.................तुम्हें स्पर्श करने ...........
लौट जाऊंगा फिर
उछाल कर सीपियाँ ............
तुम्हारे सुनहले....रूपहले तट पर
और लिख कर .......
बालू पर एक इबारत .............
पढ़ सको तो पढ़ लेना
खारे पानी की
अनंत व्यथा-कथा.
मैं तो बारबार आऊँगा............
जवाब देंहटाएंज्वार की तरह
.................तुम्हें स्पर्श करने ...........
लौट जाऊंगा फिर
उछाल कर सीपियाँ ............
तुम्हारे सुनहले....रूपहले तट पर
और लिख कर .......
बालू पर एक इबारत .............
पढ़ सको तो पढ़ लेना
खारे पानी की
अनंत व्यथा-कथा। ...
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प्रेम की अनंत ऊँचाइयों को गहरायी से बयान करती हुई आपकी ये रचना अनमोल है...
आभार।
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दिव्या जीईइ.... ! आपकी गुणग्राहकता से हम उत्साहित होते हैं ..........निः शर्त प्रेम की दीवानगी को पहचाना आपने ....हमारा प्रयास सार्थक हुआ ....शब्द धन्य हुए ........
जवाब देंहटाएंजोयाआआआ जी ! आपकी सुन्दर सी टिप्पणी मेल बाक्स में देखने को मिली.....आप हमारा उत्साह वर्धन करती हैं..... तो अच्छा लगता है .......हमारे साथ बने रहने के लिए .....आभार !
जवाब देंहटाएंमैं तो बारबार आऊँगा............
जवाब देंहटाएंज्वार की तरह
.................तुम्हें स्पर्श करने ...........
लौट जाऊंगा फिर
उछाल कर सीपियाँ ............
तुम्हारे सुनहले....रूपहले तट पर
और लिख कर .......
बालू पर एक इबारत .............
पढ़ सको तो पढ़ लेना
खारे पानी की
अनंत व्यथा-कथा.
baba
aaj ye fir se priiiiiiiiiiiiiii...aur ye linesssss........to bas..........jaane kitni baar pri maine
mujhe aapki likhii rchnaaon me se ye sabs eadhik aakrshit krti he...ise aksar prne chali aati hun..aapke paas....:)