शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

पड़ोसियों नें मेरे ....

पता होता भी तो कैसे !
तुम .............
इतने आहिस्ते से ज़ो गुज़रे.
वह तो ग़नीमत है......
कि ग़ुबार अभी तक हैं छाये. 
मैं  क्या जानूं 
कौन गुज़रा था........
मेरी खिड़की के सामने से,
मुझे तो बतायी है बात 
पड़ोसियों  नें मेरे.

4 टिप्‍पणियां:

  1. :)...baba.....kitne bhaawo ko janam deti he aapki ye rchnaa.jiska jaisaa nazriya...wo vaise hi is rchna ko le le ...
    kitnii smjhdar si rchna he...kuch kehti bhi nhi..aur prne wala smjhta rehta he...
    bahut pyaari rchnaa he.....:)

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  2. आहिस्‍ते से गुजरने पर इतना गुबार, पड़ोसियों पर भरोसा तो है न.

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  3. आदरणीय राहुल जी ! नमस्कार....
    ब्लॉग पर आने और टिप्पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
    कभी-कभी यकीन करना पड़ता है पड़ोसियों पर भी ............. कुछ लोग बड़ी खामोशी से गुज़र जाते हैं...हमें उनके चले जाने का पता भी नहीं चल पाता ........उनकी खामोश अंतिम यात्रा का धमाका हर कोई सुन नहीं पाता ......हर किसी की किस्मत ऐसी कहाँ कि छींक भी आयी तो सुर्ख़ियों में आ गए. डाक्टर सुरेश बहुत कम उम्र में ही चले गए.......मुझे कई दिन बाद पता चला .........सबको पता कहाँ चल पाया ? .....वे शरीफ थे .....नेता नहीं. मगर उनके जाने का ग़ुबार अभी तक छाया हुआ है....उसे कैसे भुलाया जा सकेगा !

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.