रविवार, 5 अगस्त 2012

भारत में पुर्तगालियों की सत्ता का विजयद्वार ...गोवा

 

गोकर्णादुत्तरे भागे सप्तयोजनविस्तृतं
तत्र गोवापुरी नाम नगरी पापनाशिनी

- स्कन्दपुराण ( सह्याद्रि खण्ड )

विष्णु के अवतार के रूप में विख्यात परशुराम जी ने दक्षिण भारत को अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना था। कर्मयोग में विश्वास रखने वाले परशुराम जी ने मनुष्यों के गुणात्मक उत्थान का बीड़ा उठाया और स्थानीय लोगों को कर्म के द्वारा ब्राह्मण बनाने का महान कार्य किया। इतना ही नहीं उन्होंने दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों की भूमि को कृषियोग्य तैयार करने का बृहद् अभियान भी सफलतापूर्वक सम्पन्न किया था। ऐसे ही महान कर्मयोगी ने मण्डोवी नदी के तट पर बसायी थी गोवापुरी जिसे आज हम गोवा के रूप में जानते हैं।

दुर्भाग्यहै कि उसी गोवापुरी को एक दिन सात समन्दर पार से आये चन्द पुर्तगालियों के हाथों पराभव की पीड़ा झेलने को भी विवश होना पड़ा था। आज के सन्दर्भों में वह पीड़ा और भी गहन हो जाती है जब हम भारतीय सत्ताधीशों के निर्लज्ज खेल को निरंतर ...और निरंतर और भी निर्लज्ज होते देखते हैं। लोकपाल बिल के प्रति सत्ताधीशों की अनिच्छा, भ्रष्टाचार को खुला संरक्षण और राजनीति में अपराधियों के प्रवेश की अंकुशरहित स्वतंत्रता पुनः गम्भीर चिंता का विषय है।

कदाचित ऐसी ही परिस्थितियों ने और अपनी मातृभूमि के प्रति अकृतज्ञ एवं सत्ता में बैठे गद्दारों ने बारम्बार इस देश को विदेशियों की झोली में अर्पित किया है। आज दिनांक 23 जुलाई सन् 2012 को पवित्र मण्डोवी नदी के तट पर पुर्तगालियों के विजयप्रतीक के रूप में निर्मित वायसरॉय आर्च को देखने के बाद मैं बहुत दुःखी और उदास हूँ।

 

अरब सागर में विलीन होने को व्यग्र मण्डोवी नदी

जिसके किनारे पर बसायी गयी थी गोवापुरी

 

पवित्र मण्डोवी नदी

 

मण्डोवी नदी के तट पर परशुराम की बसायी गोवापुरी अर्थात् पुर्तगालियों का The so called Old Gova

 

वायसरॉय के आर्च के सामने मण्डोवी नदी की ओर वाले भाग पर लगा एक शिलालेख


 

1498 में वास्को डि गामा नें कालीकट के रास्ते भारत की धरती पर कदम रखे। 1510 में पुर्तगालियों ने दुर्बल और असंगठित भारतीयों को हरा कर परशुराम की बसायी गोवापुरी पर अधिकार कर लिया। बाद में इसी विजय की स्मृति में वास्को डि गामा की मूर्ति वाले इस द्वार का निर्माण पुर्तगालियों द्वारा कराया गया। पुर्तगालियों की भारतभूमि पर विजय, उनके शौर्य और दृढ़ इच्छा शक्ति के प्रतीक के साथ ही भारतीयों के पराभव की पीड़ा के प्रतीक के रूप में आज भी यह द्वार मण्डोवी नदी के तट पर खड़ा है।

 

विजयद्वार की भीतरी भित्ति

 

परशुराम की गोवापुरी पर पुर्तगालियों की सत्ता का विजयद्वार, सामने है मण्डोवी नदी

 

Basilica of Bom Jesus, Old Gova, शिशु जीसस के गृह का पिछला भाग  

 

Basilica of Bom Jesus, Old Gova, शिशु जीसस के गृह का मुख्य द्वार

 

Basilica of Bom Jesus, Old Gova 

 

Basilica of Bom Jesus, Old Gova 

4 टिप्‍पणियां:

  1. चित्रों, शब्दों ने सोचने पर विवश किया। ये स्मारक हमें अहसास कराते हैं कि हम कभी गुलाम थे।

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  2. सुन्दर चित्र एवं विवरण. लगभग पूरे पश्चिमी तट पर इनका अधिकार हो गया था. उनके किलों के भग्नावशेष अनेकों हैं.

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  3. पौराणिक गोवानगरी के ऐतिहासिक स्थलों के चित्रों के लिये धन्यवाद। इतिहास अब मिटाया नहीं जा सकता और भविष्य अभी पाया नहीं जा सकता, जो भी है, बस यही इक पल है ...

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.