राष्ट्रप्रेमियों
को लाठी, राष्ट्र्द्रोहियों को बिरियानी ....
यही है
भारत का वर्तमान जो भविष्य का एक भयानक चित्र उपस्थित करता है । यदि आप इस चित्र
को और स्पष्ट देखना चाहते हैं तो आपको मेरे साथ 26 वर्ष पूर्व के कालखण्ड की एक
झलक देखनी होगी । 1990 में जब मैं एन.आई.ए. जयपुर में एम.एस. का छात्र था, एक
कश्मीरी ब्राह्मण छात्र प्रायः मुझसे मिलने आया करता था । एक दिन उसने बताया था कि
घाटी में पण्डितों को नारकीय स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है । वहाँ के मेडिकल
और इंजीनियरिंग कॉलेजस में स्थानीय सीनियर्स उत्तरभारतीयों को हिन्दुस्तान
मुर्दाबाद और पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे लगाने के लिये या फ़िर घाटी छोड़ने के
लिये मज़बूर करते हैं ।
यह 1990
की बात है जब घाटी में कश्मीरी पण्डितों को मारा-पीटा जा रहा था, उनकी हत्यायें हो
रही थीं, उनकी लड़कियों से बलात्कार हो रहे थे और उन्हें अपने पूर्वजों की धरती
छोड़ने के लिये मज़बूर किया जा रहा था । घाटी के पण्डित अपनी सारी सम्पत्ति कश्मीरी
मुस्लिमों को लुटाकर दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में जीने के लिये मज़बूर हो रहे थे
। यह एक इस्लामिक उन्माद था जो दीर्घकाल से घाटी में पोषित होता आ रहा था ।
स्वतंत्र
भारत में यह भी एक दौर था जब महबूबा मुफ़्ती की रिहायी के बदले में देशद्रोहियों को
जेलों से निकालकर उनकी माँद तक पहुँचाने की एक नयी परम्परा का सूत्रपात हुआ जो
किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की अपंगता का सबसे कुरूप चरित्र है । आज वही महबूबा
कश्मीर की मुख्यमंत्री हैं जिनके शासन में एन.आई.टी. की छात्राओं को स्थानीय
नागरिकों द्वारा बलात्कार की धमकियाँ दी जा रही हैं । 1990 में भी यही हुआ था जब
कश्मीरी पण्डितों की लड़कियों को बलात्कार की न केवल धमकियाँ दी जाती थीं बल्कि
उनके साथ बलात्कार की क्रूर घटनायें हो भी रही थीं । यही वह कारण था जिसने
पण्डितों को घाटी छोड़ने पर विवश कर दिया था । पण्डितों के बाद अब ग़ैरकश्मीरियों की
बारी है और देश के बुद्धिजीवी ख़ामोश हैं । मुझे घिन आने लगी है इन बुद्धिजीवियों
से ।
तो
किस्सा यह हुआ कि 31 मार्च 2016 को वेस्ट इण्डीज़ और भारत के बीच टी.ट्वेंटी मैच
में भारत की पराजय पर कश्मीरी छात्रों द्वारा ज़श्न मनाते हुये श्रीनगर के
एन.आई.टी. कैम्पस में पाकिस्तानी ध्वज फहराया गया और पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे
लगाये गये । इस राष्ट्रविरोधी गतिविधि का विरोध करने के लिये ग़ैरकश्मीरी छात्रों
द्वारा अगले दिन एक अप्रैल को तिरंगा लहराया गया तो छात्रों के दोनो समूह
आमने-सामने आ गये और विवाद हुआ । केन्द्र सरकार के अधीन संचालित संस्था के कैम्पस
में तिरंगा लहराने वाले छात्रों को जेके पुलिस द्वारा “साले हिन्दुस्तानी” कहकर बुरी
तरह पीटा गया जबकि पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे लगने वालों पर जेके पुलिस ने कोई
कार्यवाही नहीं की । जेके पुलिस ने छात्रों से तिरंगा छिना लिया । और उन्हें
दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया ।
यह तो
उबाल था जबकि आग तो दशकों पहले से भड़कती रही है । लड़कियों को स्थानीय नागरिकों
द्वारा बलात्कार की धमकियाँ दी जाती रही हैं । प्रोफेसर्स द्वारा परीक्षा में 1-2
नम्बर देकर ज़िन्दगी तबाह कर देने की धमकी दी जाती रही है । छात्रों की केवल दो ही
मांगे हैं – 1- जेके पुलिस से उनका तिरंगा वापस दिलाया जाय और 2- एन.आई.टी. को
शिफ़्ट किया जाय ।
एन.आई.टी.
श्रीनगर में पाकिस्तान प्रेमी भारतीयों ने उत्पात किया, ग़ैरकश्मीरी छात्रों के साथ
मारपीट की और उस भारत के प्रति अपनी नफ़रत का प्रदर्शन किया जो उन्हें उच्चशिक्षा
उपलब्ध करवा रहा है । पी.डी.पी. की महबूबा ख़ामोश हैं और गठबन्धन का हिस्सा बनी
भाजपा स्वयं को जंजीरों में जकड़ा पा रही है । कश्मीर की उच्चशिक्षित नयीपीढ़ी यदि
कश्मीर को पाकिस्तान का एक हिस्सा बनाना चाहती है और पृथकतावादी शीर्ष नेताओं का
आशीर्वाद भी उन्हें प्राप्त हो तो कोई भी शक्ति कश्मीर को अधिक समय तक मनमानी करने
से कैसे रोक सकेगी, विशेषकर तब और भी जबकि शेष भारत के राजनीतिज्ञों में भी
पारस्परिक विद्वेष हो, राष्ट्रीय भावना का अभाव हो और अपनी सम्पूर्ण शक्ति
एक-दूसरे को नीचा दिखाने में ही जाया करने की तीव्र प्रतिद्वन्दता की वृत्ति हो ?
भारत
अपने विभिन्न अंतर्द्वन्द्वों में जकड़ता जा रहा है, राजनीति में अपराधियों का
वर्चस्व है और परिस्थितियाँ लोगों को सच बोलने के लिये हतोत्साहित करने वाली हैं ।
हमें अब यह स्वीकर कर लेना चाहिये कि स्वातंत्र्योत्तर भारत में बिखराव और
पारस्परिक टकराव की प्रक्रिया जन्म ले चुकी है ।
नयी
पीढ़ी की भारत के प्रति यह बगावत मामूली बात नहीं है । आये दिन होने वाली इस तरह की
घटनायें थमने का नाम नहीं ले रहीं । कश्मीर की सत्ता में पी.डी.पी. और भा.ज.पा. के
गठबन्धन की सरकार है । पी.डी.पी. का पृथकतावादी तत्वों के प्रति रुझान नरम है या
यूँ कह लीजिये कि सहयोगी है । निश्चित् ही भा.ज.पा. कश्मीर में बेबस है । कश्मीर
के युवा शेष भारत की आर्थिक मदद पर अपना विकास कर रहे हैं तो ज़ाहिर है कि उन्हीं
के द्वारा उठायी जाने वाली पृथकतावादी आवाज़ों से शेष भारत के लोगों को तकलीफ़ होगी
। सरकार को इस बात पर गहरायी से मंथन करने की आवश्यकता है कि आख़िर कश्मीर के
युवाओं को पाकिस्तान से इतनी मोहब्बत और भारत से इतनी नफ़रत क्यों है ?
हम
वर्तमान भारत के भीतर एक और हिंदुस्तान और पाकिस्तान देखते हैं । भारत के भीतर का
यह हिन्दुस्तान हिन्दुओं और मुस्लिमों का है जबकि भारत के भीतर का पाकिस्तान एक और
बंटवारे के लिये बेताब है । क्या यह भारत का दुर्भाग्य और सरकारों की असफलता का
परिणाम है ?
पाकिस्तान
अधिकृत कश्मीर के लोग पाकिस्तान से मुक्त होना चाहते हैं और भारतीय कश्मीर के लोग
पाकिस्तान में शामिल होना चाहते हैं । इस मामले में दोनो देशों की सरकारों का
रवैया विचारणीय है । आख़िर कश्मीर घाटी के लोग कब चैन की सांस ले सकेंगे ?
एन.आई.टी.
श्रीनगर के भारत विरोधी ये छात्र भारत सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का लाभ उठाकर
भारत के तकनीकी शत्रु की भूमिका निभाने के लिये तैयार होने जा रहे हैं । तकनीकी
ज्ञान में दक्ष होकर ये छात्र हमारे लिये ग़ुलाब की नहीं घातक हथियारों की खेती
करने जा रहे हैं । स्पष्ट है कि भारत में भारत के शत्रुओं की एक घातक खेप तैयार हो
रही है ।
भारत के
भीतर कई विश्वविद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों द्वारा भारत के विरोध में हो रहे
अनवरत व्याख्यानों और प्रदर्शनों पर सरकार की नीति अभी तक स्पष्ट नहीं है । इन
घटनाओं पर राज्य सरकारों का कोई अंकुश भी नहीं है । हमारी चिंता का विषय यह है कि
भारत की शिक्षित पीढ़ी का भारत के प्रति ऐसा विघटनकारी चिंतन क्यों है ? भारत की आम
जनता के आर्थिक सहयोग से उच्चशिक्षा संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र और उनके गुरु
जी बड़ी ग़ुस्ताख़ी के साथ जनता के पैसों की डकैती डाल रहे हैं और सरकारें मूक-दर्शक
बनी हुयी हैं । राज्य सरकारों ने अभी तक हमें हमारी चिंताओं के लिये लेश भी
आश्वस्त नहीं किया है । हम जानना चाहते हैं कि भारत की आम जनता यूँ ही लुटती रहेगी
और अपने पैसे से अपने लिये दुश्मन तैयार करती रहेगी ?
भाजपा गठबन्धन
सरकार को अपना गठबन्धन समाप्त करने के लिये गम्भीरता से विचार करना चाहिये । जेके
पुलिस के जिन जवानों ने ग़ैर कश्मीरी छात्रों को “साले हिन्दुस्तानी” कहकर पिटायी
की है उन पर देशद्रोह का मुकद्दमा चलना चाहिये । दूसरी ओर, भाजपा यदि सोचती है कि
वह कश्मीर में सत्ता में बने रहकर देश का कुछ भी भला कर सकने की स्थिति में हैं तो
यह उनकी भयानक भूल है । सत्य यह है कि वहाँ भाजपा सत्ता में रहकर देश और दल दोनो
को गम्भीर क्षति पहुँचाने का कारण बन रही है ।
अब
प्रश्न यह उठता है कि हम भारत के आम नागरिक केन्द्र सरकार को जेके के लिये कोई
टैक्स क्यों दें ? क्या हम हमारे धन का एक हिस्सा हमारे विरुद्ध स्तेमाल करने के
लिये दें ? क्या हम अपना पैसा उन लोगों की उच्च शिक्षा के लिये दें जो हमारी
लड़कियों से बलात्कार करना चाहते हैं ? हम टैक्स न देकर अपराधी नहीं बन सकते किंतु भारत
सरकार से यह माँग तो कर ही सकते हैं कि हमारे दिये गये टैक्स का कोई हिस्सा जेके
पर ख़र्च न किया जाय ।
आज मैं
यह स्वीकार करता हूँ कि श्रीनगर के एन.आई.टी. की इस घटना ने मेरे मन में उच्चशिक्षा
संस्थानों के शिक्षकों के प्रति नफ़रत और हिकारत को और भी बढ़ा दिया है । मेरी इस
नफ़रत में राष्ट्रविरोधी शिक्षक तो हैं ही, वे भी हैं जो शिक्षक होकर भी अन्याय के
विरुद्ध मौन हैं । बल्कि मेरी नफ़रत में हर वह भारतीय भी सम्मिलित है जो भारत में
लगी आग से निर्लिप्त है ।
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