मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

लोग
लोग
ख़ुश होते हैं
स्वर्ग की कल्पना करके
फिर भी
नहीं होना चाहते स्वर्गवासी
तब
धरती को क्यों बनायें स्वर्ग ?
नर्क
इतना बुरा भी तो नहीं लगता न !
आख़िर
सदियों से यहीं तो रहते आये हैं लोग ।

भीड़
भीड़ आग लगाती है
भीड़ हत्या करती है
भीड़ बलात्कार करती है
भीड़ धरती को नर्क बनाती है
वास्तव में
भीड़ में मनुष्य नहीं रहे अब
इसीलिये
धरती पर स्वर्ग नहीं है कहीं ।
यह भीड़ दुर्बल है
दुर्बल असंगठित है
असंगठित अभिषप्त है
अभिषप्त अपने शोषण का अभ्यस्त है ।
शोषण एक खेल है
खेल एक परम्परा है
परम्परा से राजा बनते हैं
परम्परा से प्रजा बनती है
राजा और प्रजा देश बनाते हैं
देश में भीड़ होती है
भीड़ दुःखी और पीड़ित होती है
दुःखी और पीड़ित लोग भगवानों की रचना करते हैं
भगवान अपने भक्तों के दास होते हैं
भगवान अपने भक्तों को जीने की प्रेरणा देते हैं
किंतु
धरती को स्वर्ग बनाने के लिये
भगवान की नहीं
मनुष्यों की आवश्यकता होती है ।
मनुष्य नहीं रहे अब
इसलिये धरती पर स्वर्ग नहीं है ।

जानवर
जानवर
पढ़ायी नहीं करते
नौकरी नहीं करते
खेती नहीं करते
उद्योग-धन्धे नहीं करते
अधिकारी नहीं बनते
चुनाव नहीं लड़ते
फिर भी
कितने ख़ुश रहते हैं ! 

और हम
पढ़ायी करते हैं  
नौकरी करते हैं   
खेती करते हैं
उद्योग-धन्धे करते हैं
अधिकारी बनते हैं
चुनाव लड़ते हैं
फिर भी
कितने दुःखी रहते हैं !

हम
मनुष्य नहीं बन पाये, 
चलो
जानवर ही बन जाएं ।
बनते ही जानवर
ख़ुश हो जायेंगे
जंगल के सारे जानवर
और फिर
कभी नहीं होंगे
परमाणु युद्ध
यह
मेरा आश्वासन नहीं
बल्कि दावा है ।

मरीन ड्राइव
हवाओं ने पूछा ...
दिशाओं ने पूछा ...
कीट-पतंगों ने पूछा ...
पशु-पक्षियों ने पूछा ...
मनुष्यों के बच्चे पढ़ायी क्यों करते हैं ?
पढ़ायी करते हैं तो फिर लड़ायी क्यों करते हैं ?
लड़ायी करते हैं तो फिर हार-जीत क्यों नहीं होती ?
हार-जीत नहीं होती तो फिर इतना गर्व क्यों करते हैं ?
प्रश्न सुनकर
भगवान भौंचक रह गये
उनका मुंह
खुला का खुला रह गया 
वे आज तक चुप हैं
और खोज रहे हैं
इन प्रश्नों के उत्तर ।
उधर
मनुष्य ने
समन्दर में फेक दी है
बाँधकर पत्थर
उत्तरों की पोटली
और करता रहता है निगरानी । 
भगवान इस धोखे में हैं
कि लोग तो बस
घूमने आते हैं
मरीन ड्राइव पर ।



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