कविता नम्बर 1
भूले-बिसरे भीम चढ़े
हैं सबकी बोली में
आजा बाबा भीम आज मेरी ही
झोली में ॥
सीरत में क्या धरा जो बाबा
है तेरी सूरत में
गणित सभी को दिखता बाबा
तेरी मूरत में ॥
आदर्शों की छोड़ो बातें,
है सबकुछ तेरे नाम में
काम-काज सब छोड़ मैं
आया बाबा तेरे धाम में ॥
मैं हूँ सच्चा वारिस जाना
मत उनकी टोली में
आजा बाबा भीम आज मेरी ही
झोली में ॥
कविता नम्बर 2
राधे-राधे छोड़ दे प्यारे
अल्ला-अल्ला बोल
चपटी है जब अक्ल मेरी
तो धरती कैसे गोल ॥
गोल नहीं है चपटी धरती
अल्ला ने बोला है
इतने वर्षॉं बाद राज
अल्ला ने खोला है ॥
जो बात नहीं मानेगा
उसको गोली मारूँगा
जितने भी हैं काफ़िर सबको
दोजख़ भेजूँगा ॥
पश्चिम की तालीम बुरी,
हैं अल्ला के ये बोल
असलाह ग़ज़ब बस उनके, कर
दूँ धरती डाँवाडोल
मैं अल्ला का अल्ला
मेरा बाकी है सब झोल ॥
चपटी है जब अक्ल मेरी
तो धरती कैसे गोल ॥
भूले-बिसरे भीम चढ़े हैं सबकी बोली में
जवाब देंहटाएंआजा बाबा भीम आज मेरी ही झोली में ॥
सीरत में क्या धरा जो बाबा है तेरी सूरत में
गणित सभी को दिखता बाबा तेरी मूरत में ॥
आदर्शों की छोड़ो बातें, है सबकुछ तेरे नाम में
काम-काज सब छोड़ मैं आया बाबा तेरे धाम में ॥
मैं हूँ सच्चा वारिस जाना मत उनकी टोली में
आजा बाबा भीम आज मेरी ही झोली में ॥
sach me baba...ye to sach me mahaan kavita hui aajkal ki.,....baba bhim bhi sochte honge..main kyaa kr gya..main kya ban gya....:)
sahi karaaksh...kaash smjhe sab...pr chances kam hi hain
बिटिया रानी ! मैं जब भी खीझ कर कुछ लिखता हूँ तो ऊटपटाँग लिखता हूँ ...लेकिन वह लोगों को अच्छा लगता है ।
हटाएंगीति शैली का बहुत खूबसूरत व्यंग्य है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय कौशलेन्द्र जी को प्रणाम ।
सामयिक कविता पढ़वाने के लिए बहुत-बहुत आभार।
धन्यवाद प्रतुल भाई ! क्या आप फ़ेसबुक पर भी हैं ?
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