स्वघोषित
मूलनिवासियों के दलितवाद ने निष्क्रिय पड़े मनुवाद को ब्राह्मणवाद की गाली दे-देकर
मार डाला है ....
स्वघोषित
मूलनिवासियों को दुःख है कि कभी ब्राह्मणों ने उनके परदादाओं को गाली दी थी इसलिये
अब वे ब्राह्मणों को जीने नहीं देंगे और उनके लकड़दादाओं को गाली देंगे ... देते ही
रहेंगे ... अनंतकाल तक .....जब तक सूरज-चांद रहेगा तब तक, और यदि सम्भव हुआ तो
इसके बाद भी देते रहेंगे । इस तरह वे सामाजिक विषमता और वर्गभेद को समाप्त कर
सामाजिक समानता और मानवतावाद की स्थापना करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं ।
हमें
जाति-वर्ण व्यवस्था नहीं चाहिये किंतु जाति-वर्ण आधारित आरक्षण चाहिये ...अनिवार्यतः
चाहिये । मानवता के शत्रु ये नालायक मनुवादी जाति और वर्ण व्यवस्था को बनाये रखना
चाहते हैं किंतु हम प्रतिज्ञा करते हैं कि इन विदेशी धूर्त मनुवादियों की जाति और
वर्ण व्यवस्था को जड़ से उखाड़ कर नेशनल हाइ-वे पर रखकर पूरी दुनिया के सामने ढोल
बजा-बजा कर जला देंगे किंतु जाति-वर्ण आधारित आरक्षण व्यवस्था को कभी समाप्त नहीं
होने देंगे । हम ब्राह्मणों से वह सब छीन लेंगे जो उन्होंने हमसे छीनकर स्वयं को
इतना प्रखर और सम्माननीय बना लिया है । हम उनसे अपने छीने हुये राजमहल, बड़े-बड़े
दुर्ग, बड़े-बड़े साम्राज्य, तहख़ानों में छिपे हीर-मोती, सुन्दर रानियाँ, समस्त
विद्यायें, समस्त कलायें, समस्त वेद, समस्त भगवान और वह सब कुछ वापस छीन लेंगे जो
अभी हमें याद नहीं आ रहा है ।
क्या
हुआ जो आज भारत के किसी भी प्रांत में न तो मनुवाद है और न ब्राह्मणवाद । यह तो
चिंतन का विषय है ही नहीं, चिंतन का विषय तो यह है कि मनुवाद और ब्राह्मणवाद को
भारत से कैसे समाप्त किया जाय । रूस और ईरान से आये कोपीनधारी, जटा-जूटधारी,
भिक्षावृत्तिचारी और वनों-गिरिकंदराओं में रहने वाले ब्राह्मणों ने छलपूर्वक
ब्राह्मणेतर राजाओं पर सहस्रों वर्षों तक साम्राज्य किया है । इन विदेशियों ने आज
भी हमें बन्धक बना रखा है, आज भी भारत की सत्ता को अपने कब्ज़े में रखा हुआ है ।
हमें इनसे सत्ता छीनकर अपने हाथ में लेना है, जो हम लेकर रहेंगे ।
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