भारत
में तैयार हैं
किशोरवयस्क
जो अपने
समय से
बहुत
पहले कर लेना चाहते हैं
वह सब
कुछ
जो वे
वयस्क होने पर कर सकेंगे ।
बड़े
उल्हइते हैं ये किशोरवयस्क
जिनकी
भावनाओं का सम्मान नहीं करता कोई,
न सरकार
... न कानून !
उफ़्फ़ !
कितनी नाइंसाफ़ी है ... कितनी बन्दिशें हैं !
उन्हें
ज़ल्दी है, बलात्कार करने की
उन्हें
ज़ल्दी है, हत्या करने की
उन्हें
ज़ल्दी है, ताक़तवर बनने की ....
आख़िर यह
ज़िद्दी कानून
क्यों
नहीं मानना चाहता उन्हें वयस्क
जबकि कर
सकते हैं वे भी
वयस्कों
वाले ही सारे कुकर्म ...
बड़ी ही
कुशलतापूर्वक
बिना
किसी त्रुटि के ..
ठीक
वयस्कों की तरह
वयस्क
हुये बिना ही !
तब
वयस्क
होना ही इतना अनिवार्य क्यों है ?
आख़िर
उनकी
क्षमताओं का
कोई
क्यों नहीं करता
सही-सही
मूल्यांकन ?
यह कैसी
विचित्र ज़िद है
नयी
पीढ़ी के अवमूल्यांकन की !
निश्चित्
ही
यह एक
साज़िश है
किशोरों
के मौलिक अधिकारों के हनन की ।
वे दक्ष
हैं ...अपने कृत्य के प्रति समर्पित हैं ..
और
तुम्हारी ज़िद है
कि वे अभी
किशोर हैं ...
नहीं
हैं लायक ...यह सब कर सकने के लिये ।
किशोरवयस्क
हैरान हैं ... परेशान हैं
आख़िर
क्रूर
बलात्कार और
जघन्य
हत्या करने की
उनकी
दक्षता के प्रति
इतना
सशंकित क्यों है
भारत का कानून ?
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " पप्पू की संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसही लिखा
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