रविवार, 19 जुलाई 2020

भारत-नेपाल-चीन सीमा विवाद

कालापानी

हिमांचल के काँगड़ा जिले में स्थित कालापानी नहीं बल्कि उत्तराखण्ड के धारचूला सब-डिवीज़न में 6180 मीटर की ऊँचाई पर, लगभग एक सौ लोगों की आबादी वाला गाँव कालापानी एक बार फिर चर्चा में है ।

भारत-चीन युद्ध के समय तक तिनकर एवं कुमाऊँ के भूटिया लोग कालापानी और लिपुलेख दर्रे से होते हुये तिब्बत से व्यापार किया करते थे । कैलाश मानसरोवर आने-जाने एवं स्थानीय लोगों के व्यापार का यह एक प्रमुख मार्ग हुआ करता था । कालापानी परम्परा से कुमाऊँ का हिस्सा रहा है । कालापानी ही नहीं उससे भी आगे उत्तर की ओर आपीपर्वत तक की भूमि पर कुमाऊँ स्थित गर्बियांग गाँव के लोगों का पुश्तैनी अधिकार रहा है और वे 1962 में भारत चीन युद्ध के ठीक पहले तक कालापानी की 190 एकड़ भूमि का कृषि एवं पशु चराने के लिए उपयोग करते रहे हैं ।  

भारत से लेकर नेपाल तक विस्तृत ब्यास घाटी में स्थित तिनकर गाँव भी कभी ब्रिटिश इण्डिया का एक हिस्सा हुआ करता था । महाकाली नदी की कई सहायक नदियों में से एक तिनकरखोलानदी छांग्रू गाँव के पास कालीनदी में मिलती है । दोनों नदियों के संगम का वह बिंदु आज नेपाल और चीन की सीमा रेखा तय करता है ।

वर्ष 1816 में ब्रिटिश इण्डिया सरकार और नेपाल नरेश के बीच सुगौली ट्रीटी हुयी थी जिसके अनुसार काली नदी को सीमारेखा मानते हुए नदी से पूर्व की भूमि नेपाल की और पश्चिम की भूमि भारत के हिस्से में स्वीकार की गयी । इस ट्रीटी के बाद वर्ष 1817 में नेपाल के राजा ने तत्कालीन ब्रिटिश इण्डिया सरकार से तिनकर, छांग्रू, नाबी और कुती की भूमि नेपाल को दे दिये जाने की माँग की । तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने ट्रीटी की शर्तों के अनुसार कालीनदी के पूर्व में स्थित तिनकर और छांग्रू गाँव तो नेपाल को दे दिये पर नाबी और कुती गाँव काली नदी के पश्चिम में होने के कारण देने से इंकार कर दिया । इसी ट्रीटी के कारण गर्बियांग गाँव के लोगों को आपी पर्वत तक की अपनी पुश्तैनी भूमि नेपाल के लिए छोड़ देनी पड़ी । 

Sugauli Treaty, Article 5 – “The king of Nepal renounces for himself, his heirs, and successors, all claims to and connexion with the countries lying to the West of the river kali, and engages never to have any concern with those countries or the inhabitants thereof.”

नेपाल सरकार लिम्पियाधुरा को काली नदी का उद्गम मानने लगी है और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा । वर्ष 1865 में ब्रिटिश इण्डिया ने कालापानी झरना को, जो कि आज भी भारत का हिस्सा है, काली नदी (जो तराई में आते ही शारदा नदी के नाम से जानी जाती है) का उद्गम माना और तिनकर एवं काली नदी के संगम से भारत-नेपाल की सीमा शुरू होना निर्धारित किया । आज यह बिंदु तीन देशों की सीमासंधि का बिंदु माना जाता है । अंग्रेजों ने यहाँ भी उलझाने वाली दुष्टनीति अपनाते हुये काली नदी को भारत और नेपाल के बीच की सीमा निर्धारित कर दिया जिसके कारण सीमाविवाद सदा के लिए उत्पन्न हो गया । चीन ने वर्ष 1950 में तिब्बत को अपने अधिकार में ले लिया जिससे आये दिन सीमा विवाद के नये-नये मसले शुरू होने लगे ।

जो भी हो, हम तो एक ही सत्य जानते हैं ...और वह यह कि कैलाश मानसरोवर भारतीयों का पवित्र तीर्थस्थल रहा है । क्या कोई देश अपने तीर्थ स्थल दूसरे देशों में बनाता है और वहाँ आने-जाने के लिये रास्ते भी दूसरे देशों में तलाशता है ? स्पष्ट है कि तिनकर, छांग्रू, गर्ब्यांग, नाबी, कुती, लिम्पियाधुरा, लिपुलेख, राक्षसताल, मानसरोवर और कैलाशपर्वत अखण्डभारत के हिस्से रहे हैं और आज भी हैं । तिनकर और छांग्रू तो हम अपने सहोदर नेपाल को दे चुके हैं पर कैलाश पर्वत चीन से वापस लेना ही होगा ।   


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