उत्तरप्रदेश
की इण्टरमीडिएट परीक्षा के हिंदी विषय में अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों की संख्या
में वृद्धि मुझे आश्चर्यचकित नहीं करती । योजनाबद्ध तरीके से हिंदी के पाठ्यक्रम से
हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकारों की रचनाओं के लोप होते रहने के बाद हिंदी के
छात्रों की इतनी दुर्गति तो होनी ही थी । पिछले वर्ष मैंने बस्तर विश्वविद्यालय
में अध्ययनरत बी.ए. के एक छात्र से जयशंकर प्रसाद और पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी के
बारे में पूछा तो उत्तर मिला -“मैं तो गाँव में रहता हूँ, जगदलपुर
में होंगे कोई तो मैं नहीं जानता”।
आज
साहित्य के स्नातक छात्र अनामदास का पोथा, कामायनी, रश्मिरथी और निहारिका जैसी महान कृतियों के नाम भी नहीं जानते । आज के
छात्र शरत्, महादेवी वर्मा, निराला,
सुमित्रानंदन पंत, आशापूर्णा देवी और
फ़णीश्वरनाथ रेणु जैसे महान लोगों की रचनायें नहीं पढ़ा करते । मैं इसके लिए छात्रों
से अधिक उस व्यवस्था को दोषी मानता हूँ जिसने हिंदी के पाठ्यक्रम से हिंदी की
प्रतिनिधि रचनाओं से भी छात्रों का कभी परिचय नहीं होने दिया ।
विज्ञान
के छात्रों से हमारा कहना है कि हम भी विज्ञान के छात्र रहे हैं, हमने
भी फ़िज़िक्स और केमिस्ट्री की ओर अधिक ध्यान दिया फिर भी हमारे समय में हिंदी में
अच्छे अंक न लाने वाला पूरी कक्षा में कदाचित ही कभी कोई छात्र रहा हो ।
फेसबुकी और व्ह्टसअप हिंदी का जमाना है।
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