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Creation
is always followed by hypothesis
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पाखण्ड की एक अदृश्य दीवाल है विज्ञान और
आस्था के बीच ।
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पाखण्ड की यह अदृश्य दीवाल काँच की तरह होती है
जो विज्ञान और आस्था दोनों को स्पर्श करती है ।
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पाखण्ड वह बहुरूपिया इनटिटी है जो हर कहीं
प्रवेश कर जाता है, फिर चाहे वह विज्ञान हो आस्था ।
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प्लेसीबो विज्ञान के घर में रहता है और आस्था की
सेवा करता है ।
- मनोरोगविशेषज्ञ अपनी झोली में औषधि लेकर चलता है, परामर्श बाँटता है और प्लेसीबो से चमत्कार करता है ।
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विज्ञान विश्लेषण करता है, आस्था
संश्लेषण करती है ।
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विज्ञान विकृति है, आस्था
प्रकृति है ।
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विज्ञान सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं
करता । विज्ञान को प्रमाण चाहिए इसलिए वह सब कुछ देखना चाहता है, वह भी
केवल अपनी ही आँखों से । विज्ञान के अपने पैमाने हैं वह इतर पैमानों को नहीं मानता
।
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विज्ञान की यात्रा अविश्वास से प्रारम्भ होती
है ।
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आस्था की यात्रा विश्वास से प्रारम्भ होती है
।
- आस्था में अविश्वास का प्रश्न ही नहीं होता इसलिए वहाँ असत्य भी नहीं होता । वहाँ होता है केवल सत्य ...जो सुंदर है ...जो शिव है ।
- अतिबुद्धिजीवियों ने विज्ञान और आस्था दोनों का अपहरण कर लिया है । ऐसा सदा से होता रहा है, अपने युग में रावण ने भी इन दोनों का अपहरण कर लिया था । अपहरण के मामले में आज के अतिबुद्धिजीवी विद्वान रावण से कई हजार कदम आगे निकल गए हैं ।
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जब आप कहते हैं कि इल्यूज़न, डिल्यूज़न
और पैरानोइया का कोई अस्तित्व नहीं होता, फिर आप चिकित्सा
किसकी करते हैं ?
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पहले तय कर लीजिये, आप रोग की चिकित्सा करते हैं या रोगी की ?
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ब्रह्म की मानस सृष्टि
है वह सब कुछ ...जो दृष्टव्य है और अदृष्टव्य भी ।
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मनुष्य की मानस सृष्टि
है ...इल्यूज़न भी और डिल्यूज़न भी ...जो दृष्टव्य है और अदृष्टव्य भी ।
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आस्था और विज्ञान के
बीच की दीवाल अक्सर टूटती रहती है, और तब
जो हमारे सामने होता है वही तो सत्य है ।
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