गुरुवार, 2 जुलाई 2020

ब्रह्म की मानस सृष्टि i.e.

-      Creation is always followed by hypothesis

 

-      पाखण्ड की एक अदृश्य दीवाल है विज्ञान और आस्था के बीच ।

-      पाखण्ड की यह अदृश्य दीवाल काँच की तरह होती है जो विज्ञान और आस्था दोनों को स्पर्श करती है ।

-      पाखण्ड वह बहुरूपिया इनटिटी है जो हर कहीं प्रवेश कर जाता है, फिर चाहे वह विज्ञान हो आस्था ।

-      प्लेसीबो विज्ञान के घर में रहता है और आस्था की सेवा करता है ।

-      मनोरोगविशेषज्ञ अपनी झोली में औषधि लेकर चलता है, परामर्श बाँटता है और प्लेसीबो से चमत्कार करता है ।

-      विज्ञान विश्लेषण करता है, आस्था संश्लेषण करती है ।

-      विज्ञान विकृति है, आस्था प्रकृति है । 

-      विज्ञान सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करता । विज्ञान को प्रमाण चाहिए इसलिए वह सब कुछ देखना चाहता है, वह भी केवल अपनी ही आँखों से । विज्ञान के अपने पैमाने हैं वह इतर पैमानों को नहीं मानता ।  

-      विज्ञान की यात्रा अविश्वास से प्रारम्भ होती है ।

-      आस्था की यात्रा विश्वास से प्रारम्भ होती है ।

-      आस्था में अविश्वास का प्रश्न ही नहीं होता इसलिए वहाँ असत्य भी नहीं होता । वहाँ होता है केवल सत्य ...जो सुंदर है ...जो शिव है ।

-      अतिबुद्धिजीवियों ने विज्ञान और आस्था दोनों का अपहरण कर लिया है । ऐसा सदा से होता रहा है, अपने युग में रावण ने भी इन दोनों का अपहरण कर लिया था । अपहरण के मामले में आज के अतिबुद्धिजीवी विद्वान रावण से कई हजार कदम आगे निकल गए हैं ।

-      जब आप कहते हैं कि इल्यूज़न, डिल्यूज़न और पैरानोइया का कोई अस्तित्व नहीं होता, फिर आप चिकित्सा किसकी करते हैं ?

-                          पहले तय कर लीजिये, आप रोग की चिकित्सा करते हैं या रोगी की ?

-                          ब्रह्म की मानस सृष्टि है वह सब कुछ ...जो दृष्टव्य है और अदृष्टव्य भी ।

-                          मनुष्य की मानस सृष्टि है ...इल्यूज़न भी और डिल्यूज़न भी ...जो दृष्टव्य है और अदृष्टव्य भी ।

-                          आस्था और विज्ञान के बीच की दीवाल अक्सर टूटती रहती है, और तब जो हमारे सामने होता है वही तो सत्य है ।  


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.