प्रथम
राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के समय जब आमजनता के लिए मास्क लगाना अनिवार्य किया गया तभी
मैंने इसके उपयोग के तरीके और मेडिकल वेस्ट की तरह साइंटिफ़िक डिस्पोज़ल न किए जाने पर
सवाल खड़े करते हुए आम जनता को जागरूक करने की माँग की थी । तब इस बात पर किसी ने भी ध्यान देना आवश्यक
नहीं समझा । आज महीनों बाद, जबकि इस बीच “अनहाइजेनिक यूज़ ऑफ़ मास्क” ने
अपनी बहुत कूछ भूमिका निभा डाली है, हमारे सामने एक और
साइंटिफ़िक संदेह परोस दिया गया है ।
शायद पिछले महीने
की बात है जब कुछ चिकित्साविज्ञानियों ने कोरोना के हर केस में वेंटीलेटर के अंधाधुंध
स्तेमाल की आवश्यकता के औचित्य पर सवाल खड़े किए थे ।
मैंने अपने
दीर्घजीवन में चिकित्सा विज्ञान को इतना कनफ़्यूज़्ड और पैरालाइज़्ड पहले कभी नहीं
पाया । प्रोबेबलिटीज़ के हिलते हुए पिलर्स पर बैठकर इतना साइंटिफ़िकाना ग़ुरूर कहाँ
से आता है!
जो भी हो, कोरोना के कारण बदली हुई परिस्थितियों में जीवनशैली में
परिवर्तन आवश्यक ही नहीं अपरिहार्य भी है । किंतु प्रश्न यह है कि परिवर्तन कैसा
हो ? थोपी गयी जीवनशैली में भी एप्रोप्रिएट मोडीरेशंस पर
गम्भीरता से चिंतन किया जाना चाहिये था, जिसकी आज भी उपेक्षा
की जा रही है ।
मोतीहारी वाले
मिसिर जी महीनों से पूछे जा रहे हैं हैं कि नाक और मुँह तो ढक लिया रंग-बिरंगे
डिज़ायनर मुसिक्का से लेकिन इन मटकती आँखों का क्या ? हवा में तैरते ड्रॉपलेट्स पर बैठे वायरस जी ने आँखों को निशाना बना लिया
तो ?
मिसिर जी के
सवालों का ज़वाब कभी कोई नहीं देता, उनके
सारे प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं । मिसिर जी कहते रहे कि “हई मुसिक्कवा से
कुच्छो ना होई, मुखवा आ कपारे मं बढ़ियाँ से गमछवा बाँधे के
बा, ..आ अँखिया मं चसमवा पहिंरे के बा... तब नू कोरोनवा से
बचाव होई”।
गोरखपुर वाले
ओझा जी का अंग़्रेज़ी-हिंदी-भोजपुरी मिक्स वाला मुखवाक्य क़ाबिल-ए-ग़ौर है – “इट इज़
अभर ब्रेन भिच लुक्स द भिज़िबल एण्ड इनभिज़िबल थिंग्स, आइज़ आर जस्ट अ टूल । बड़का बड़का वैज्ञानिक अँखिया फार-फार के भकुआता है पर साइंटिफ़िक
एलीमेंट लोहकबे नईं करता है स्ससुरा” ।
कयास लगते रहे कोरोना बढ़ता गया
इलाज़ करते रहे मर्ज़
बढ़ता गया, गोया किसी फूट गये बाँध से बहती विशाल जलराशि जिसमें जलमग्न
हो गयी हो आसपास की धरती । सारी हिकमतें धरी की धरी रह गयीं ।
फ़्लाइट्स बंद, रेल बंद, बस बंद... ठहर गयी
दुनिया । क़यास लगते गये, उपाय बढ़ते गये, रायता फैलता गया
।
फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग, लॉक डाउन, Quaranitine, वेंटीलेटर, क्लोरोरोक्वीन फ़ॉस्फ़ेट, रेमडेसिविर, फ़ेबीफ़्लू, फ़ेवीलाविर और वैक्सीन
ट्रायल्स से होते हुये प्रोटीन रिच डाइट, नीबू पानी, त्रिकटु चूर्ण, अश्वगंधा, सोंठ, लौंग, कालीमिर्च, स्टार एनिस ...और
आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट पर आ कर ठहर गयी दुनिया । पिछले सात महीनों से ठहरी हुयी दुनिया
को फिर-फिर चलाने के प्रयास होते रहे हैं । इस बीच नोवेल कोरोना वायरस ने लाख विरोध
के बाद भी दुनिया के लगभग हर देश में अपनी सरकार बना ही ली । रपट पड़े तो हर गंगा की
तर्ज़ पर भारत के लोगों ने भी आख़िरकार कोरोना के साथ ही रहने का मूड बना लिया है ।
भारत में अवैध घुसपैठियों
का विरोध होता रहता है, घुसपैठिये अल्पसंख्यक से बहुसंख्यक होते रहते हैं और फिर एक
दिन अपनी सरकार भी बना लेते हैं । पता नहीं किसने भारत के जनजीवन में व्याप्त यह सुलभता
कोरोना को बता दी । कोरोना भी आ गया, पहले अल्पसंख्यक
होकर आया और अब बहुसंख्यक होकर दहशत फैलाने लगा है ।
मोतीहारी वाले मिसिर जी का तो साफ कहना है – “जंगली बिल्ली को शेर बनाकर पेश करने से न जाने कब बाज आयेंगे लोग! अच्छा चलो शेर ही सही पर उसे भी थोड़े से प्रयास से पकड़ने की अपेक्षा न्यूक्लियर बम से उड़ाने की योजना बनाने का क्या औचित्य?”
मास्क नहीं लगाने
पर ज़ुर्माना एक लाख...
अब झारखण्ड में मास्क
न लगाने वाले को एक लाख रुपये का अर्थदण्ड देना होगा और लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले
को दो साल तक जेल की हवा का सेवन करना होगा । झारखण्ड सरकार ने यह फ़रमान तब जारी किया
है जब दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने मास्क की उपयोगिता पर ही कई सवालिया निशान लगा दिये
हैं । समाचार है कि कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो चुका है और दुनिया से कटकर
घर में सुरक्षित रहने वालों से भी कोरोना मोहब्बत करने लगा है ।
अमेरिका की सड़कों
पर कुछ माह पहले लॉकडाउन और मास्क के विरोध में लोगों ने प्रदर्शन किया था । मेरी आँखों
के सामने उस प्रदर्शनकारी महिला की छवि घूमने लगी है जो चीख-चीख कर कह रही थी – “किसी के जीने के तरीके को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता । हम
कैसे जियें यह हमें तय करने दीजिये”।
तब मुझे उस महिला की बुद्धि पर तरस आया था । आज इतने दिनों बाद जबकि दुनिया भर की आधुनिक सरकारों और वैज्ञानिकों के उपाय निष्फ़ल होते जा रहे हैं, मुझे उस अमेरिकी महिला की बातों में बहुत दम दिखायी दे रहा है ।
मेडिकल प्रोटेक्शन
ऑर्डीनेन्स में अग्रणी झारखण्ड...
अब झाखण्ड में चिकित्सा
सेवाओं से जुड़े किसी भी व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार करने पर होगी ग़ैरज़मानती ग़िरफ़्तारी
। झारखण्ड के डॉक्टर सरकार के आभारी हैं । भारत की सभी राज्य सरकारों को इस तरह के
अध्यादेश लाने चाहिये ।
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