रविवार, 1 अगस्त 2021

देवी-देवताओं के तिरस्कार के बहाने

 एक युवक ने शिवलिंग पर पैर रखकर फ़ोटो खिचवाया और फिर उसे सोशल मीडिया पर डाल दिया । तिरस्कार की इससे भी बढ़कर घटनायें होती रही हैं जिन्हें हतोत्साहित किया जाना चाहिये किंतु दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि इनका उद्देश्य ही हिंसा और अस्तित्व को चुनौती देना हुआ करता है । सम्बंधित समाज के लोगों को ऐसी प्रवृत्तियों पर अंकुश रखना चाहिये किंतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर वह भी नहीं पाता । किसी समुदाय को उकसाने के लिये जब भी कभी ऐसी कोई घटना होती है तो वह भीड़ को उत्तेजित करती है और धार्मिक दंगे हिंसक एवं वीभत्स आकार लेने लगते हैं । एक सीधा सा तरीका यह है कि ऐसी घटनाओं की अनदेखी की जाय और सामाजिक एवं धार्मिक सौहार्द्य बनाये रखा जाय ।

हिंदुओं के देवी-देवता प्रतीकात्मक हैं, न उनका मान होता है न अपमान । जो निराकार और निर्गुण है उसका कैसा मान और कैसा अपमान! यह दर्शन की बात है किंतु भीड़ को तत्व-दर्शन से कोई मतलब नहीं होता, न वह इसे समझती है । वह तो इसे अपने अस्तित्व के लिये चुनौती के रूप में देखती है । भीड़ का दर्शन प्रतिक्रियात्मक और हिंसक होता है, यह एक गम्भीर स्थिति है जिसका सामना पूरे विश्व को करना पड़ रहा है । फ़्रांस में जब कोई धार्मिक प्रतिक्रियावादी घटना होती है तो उसकी हिंसक प्रतिक्रिया भारत में भी होती है । समस्या यह नहीं है कि हिंदुओं के देवी-देवताओं के अपमानजनक तरीके से तिरस्कार किये जाने की घटनायें बढ़ती जा रही हैं और टीवी पर होने वाली डिबेट्स में लोग इसे स्वीकार करने और निंदा करने के स्थान पर वातावरण को और भी उत्त्जित कर देते हैं । किसी बड़े समुदाय या राष्ट्र को चुनौती देने के लिये प्रतीकों से ही शुरुआत होती है । किसी देश के ध्वज का अपमान उस देश के हर निवासी का अपमान है । ध्वज हमारे राष्ट्र का प्रतीक है, देवी-देवता हिंदुओं की दार्शनिक मान्यताओं के प्रतीक हैं ।

आख़िर ऐसी घटनायें बारम्बार क्यों हो रही हैं ? पिछली कुछ शताब्दियों से हम देखते रहे हैं कि सहिष्णुता और अनदेखी के परिणाम हमारे अस्तित्व पर बहुत भारी पड़ते रहे हैं । भारत-विभाजन की पीड़ा को कैसे अनदेखा किया जा सकता है! कश्मीर से पंडितों के निष्कासन की घटना अंतिम नहीं है । उत्तर-प्रदेश के कई गाँवों में हिंदुओं को गाँव छोड़ देने की धमकियाँ दिये जाने की घटनायें बहुत कुछ चेतावनी दे रही हैं । आरोपों-प्रत्यारोपों की आवश्यकता नहीं, शासन-प्रशासन को अपने दायित्वों का पालन करना होगा ।

1 टिप्पणी:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.