लज्जा के बाद डॉक्टर तस्लीमा नसरीन को बांग्लादेश से निर्वासित होना पड़ा । यह सत्य बोलने के विरुद्ध ग्रेट इण्डिया के कट्टरपंथ की असहिष्णु प्रतिक्रिया थी जिसने तस्लीमा नसरीन को भारत में शरण लेने के लिये विवश किया किंतु लाख चिरौरी-विनती के बाद भी उन्हें भारत की नागरिकता नहीं मिल सकी । ग्रेट-इण्डिया के चार हिस्सों- भारत, बांग्लादेश पाकिस्तान और अफ़गांस्तान के कट्टरपंथियों ने भारत सरकार को सत्य का साथ न देने के लिये विवश कर दिया है ।
हम गंगा-जमुनी
आचरण की लाख दुहायी देते रहें किंतु सत्य यह है कि स्वतंत्रता के समय से ही भारत में
मुस्लिम दबंगई की जड़ें इतनी गहरायी तक जम चुकी थीं कि प्रतिक्रियात्मक ध्रुवीकरण को
रोका नहीं जा सका, यह सम्भव भी नहीं था । बाबा साहब अम्बेडकर ने इस सम्बंध में पहले ही अपनी दूरदर्शी
भविष्यवाणी कर दी थी जिसे तत्कालीन हुक्मरानों ने मानने से इंकार कर दिया था ।
“लड़के लिया
है पाकिस्तान हँस के लेंगे हिंदुस्तान” के नारों को कभी भी दफ़न नहीं किया जा सका बल्कि
वे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की राजनैतिक स्थितियों में खूब उर्वरा शक्ति प्राप्त
करते रहे । सन 1947 के भारत का कट्टरवाद आज अपनी प्रगति पर है । ग़्रेट इण्डिया के
दो हिस्सों- बर्मा और श्रीलंका को छोड़ दें तो अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश,
पाकिस्तान और भारत कट्टरवाद से कराह रहे हैं । यह कराह हाल-फिलहाल
रुकती दिखायी नहीं देती । यह कराह सत्ता के जन्म की प्रसव पीड़ा है जो हर राजनेता
को बहुत प्रिय है । नये जमाने में इसे और भी पीड़ादायक बनाने के नये-नये प्रयास
बहुत सफल हुये हैं, गोया बिना एनेस्थीसिया दिये सीज़ेरियन
ऑपरेशन का इन्नोवेटिव एक्सपेरीमेंट ।
हाल ही
में पश्चिमी बंगाल और दिल्ली में बिना एनेस्थीसिया के सीज़ेरियन ऑपरेशन करके हिंदू
जनमानस को प्रचंड क्षति पहुँचाने के कीर्तिमान रचे गये हैं । लोकतंत्र की यह विचित्र
महिमा है जहाँ बहुसंख्यक नहीं बल्कि अल्पसंख्यक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि उसे
साध कर सत्ता कबाड़ना बहुत सरल हो गया है । अल्पसंख्यक को रिझाने के लिये बहुसंख्यक
के विभाजन और उन्मूलन की पीड़ादायी योजनायें कारगर प्रमाणित होती जा रही हैं । पश्चिम
बंगाल में ममता ने हिंदुओं के विरुद्ध आग उगलकर मुसलमानों को ख़ुश कर दिया, बदले
में उन्हें बंगाल की सल्तनत मिल गयी । रही बात हिंदुओं की तो यदि उन्हें जीवित
रहना है तो ममता को वोट देना ही होगा । सत्ता कबाड़ने का यह गलियारा केजरी को भी
बहुत पसंद है । वे दिल्ली में रोहिंग्याओं को साधने में लगे हुये हैं, दिल्ली के जागरूक मुसलमानों की बात छोड़ दें तो वहाँ का कट्टर मुसलमान वोट
के बदले कुछ भी करने के लिये तैयार है । यह दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की
शातिराना बुद्धि का कमाल है कि दिल्ली को कट्टरपंथी मुसलमानों के लिये अवैध कब्जे
का अड्डा बना दिया गया है । यह एक सियासती सौदा है जो हिंसा और अत्याचार की मण्डी
में परवान चढ़ता है । दिल्ली पुलिस के जवान सादी वर्दी में मुसलमानों को कहीं भी मजार
या मस्ज़िद बनाने के लिये पूरी गुण्डागर्दी के साथ सुरक्षा उपलब्ध करवाने में पूरी
मुस्तैदी से लगे हुये हैं, फिर वह स्थान चाहे कोई मंदिर हो,
कोई प्राचीन किले का खण्डहर हो या पशुओं के लिये छोड़ा गया कोई
चारागाह । दिल्ली पुलिस के जवानों द्वारा पत्रकारों को ऐसे स्थानों पर जाने से न
केवल रोका जा रहा है बल्कि उन्हें स्थानीय लोगों से बात भी नहीं करने दी जा रही है
। क्रिटिक की दुहाई देने वाले केजरी और भारत भर के अतिबुद्धिजीवी लोग जिसमें रविश
कुमार और पुण्यप्रसून वाजपेयी जैसे अतिमुखर लोग भी सम्मिलित हैं, दिल्ली पुलिस की इस गुण्डागर्दी पर कोई सवाल नहीं उठाते ।
भारत के
अतिबुद्धिजीवियों का क्रिटिकप्रेम धर्मनिरपेक्षवादी है जिसे इस्लाम और
क्रिश्चियनिज़्म से बेइंतहा मोहब्बत है और हिंदू धर्म से बेइंतहा नफ़रत । हिंदुओं का
दुर्भाग्य यह है कि इस क्रिटिक को सुरक्षा उपलब्ध करवाने में दिल्ली पुलिस के जो
जवान तैनात हैं वे भी हिंदू ही हैं । हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि मुट्ठी भर
अंग्रेज़ों ने भारतीयों पर ज़ुल्म-ओ-सितम के लिये गद्दार भारतीयों को ही अपना हथियार
बनाया था । सत्ता को पता हो गया है कि हिंदुओं पर ज़ुल्म करने के लिये हिंदू बहुत
ही बफ़ादार कौम है ।
इस्लामिक
आतंकवाद पर मोतीहारी वाले मिसिर जी का दृष्टिकोण मंथनयोग्य है, बे बताते
हैं – “ग़्रेट इण्डिया की सत्तायें विनाश की ओर तीव्रता से अग्रसर होती जा रही हैं
। इस्लामिक कट्टरवाद पर लगाम कसने के लिये ग्रेट इण्डिया को फिर से जीवित होना
होगा । अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान से लेकर भारत तक बहुत से मुसलमान ऐसे भी हैं जो वाकई
में आतंकवाद के विरुद्ध उठकर खड़े हो जाना चाहते हैं । लोकतंत्र यदि संख्या का ही
तंत्र है तो भारत की मुख्यधारा के समर्थक मुसलमानों की कमी नहीं है, बस सबको एक बार उठकर खड़े होने की और आतंकियों को हथियार उपलब्ध करवाने
वाले धन्नासेठ देशों का बहिष्कार करने की हिम्मत जुटाने की आवश्यकता है”।
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