रविवार, 22 अगस्त 2021

हमें मत भूलो - अमाल

 

ज़िंदग़ी की तलाश में खण्डहरों से होते हुये सीरिया की एक शरणार्थी 

गोदनामे की कानूनी प्रक्रिया पूरी होते ही ब्रिटिश नागरिक ने तीन साल के उस अनाथ कुर्दिश बच्चे को गोद में उठाया और शिविर से बाहर निकल गया । बच्चे की बड़ी बहन जो कि अभी मात्र तेरह साल की थी, शरणार्थी शिविर में अपने छोटे भाई से बिछड़ने के दुःख के बाद भी ख़ुश थी । उसकी आँखों में आँसू थे और दिल में एक तसल्ली कि भाई को एक अच्छी ज़िंदगी जीने का अवसर मिल गया था ।  

कोरोना महामारी के समय जब योरोप में लॉक-डाउन किया गया तो फ़्रांस के कलाइस शरणार्थी शिविर में रहने वाले लगभग दो हजार शरणार्थियों और ग्रीस के लेस्बोस द्वीप स्थित मोरिया शरणार्थी शिविर के लगभग बीस हजार शरणार्थियों पर जैसे एक और कहर टूट पड़ा । बाहरी दुनिया से उनका सम्पर्क पूरी तरह कट गया और वे कैदी की तरह शिविर में रहने के लिये बाध्य हो गये । शरणार्थियों की सहायता करने वाली बहुत सी स्वयंसेवी संस्थाओं को भी कोरोना के कारण अपनी गतिविधियाँ बंद करनी पड़ीं जिससे शरणार्थियों की ज़िंदगी और भी बदतर हो गयी ।

मोरिया शिविर के कुल बीस हजार शरणार्थियों में से दस हजार शरणार्थी वे बच्चे हैं जिनमें से अधिकांश ने अपने माता-पिता दोनों को ही खो दिया है । योरोप के किसी देश का कोई नागरिक कभी-कभार इन शरणार्थी शिविरों में बच्चों को गोद लेने के लिये आता है तो कुछ बच्चों के भाग्य करवट लेकर उठ खड़े होते हैं लेकिन ऐसे भाग्यशाली बच्चे अपने पीछे अपने उन भाई-बहनों के लिये एक असहनीय पीड़ा छोड़ जाते हैं जिन्हें अभी तक किसी ने गोद नहीं लिया है । लोगों की प्राथमिकता प्रायः छोटे बच्चों को गोद लेने की होती है, जिसके कारण किशोरवय बच्चे अपने छोटे भाई-बहनों से बिछड़ने की पीड़ा के अथाह समुद्र में डूबने के लिये बाध्य होते हैं ।

इन शिविरों में सीरियन ही नहीं बल्कि इरिट्रियन और ईराकी आदि भी हैं । अमाल नौ साल की एक सीरियन बच्ची है जो शरणार्थी शिविर में अपनी माँ के साथ रहती है । एक दिन अमाल की माँ उसके लिये खाना लाने गयी तो कभी वापस नहीं आयी । एक ज़ियाण्ट पप्पेट गर्ल अमाल के दर्द को लेकर सीरियन तुर्किश सीमा के गाज़ियनपेट से ब्रिटेन के लिये आठ हजार किलोमीटर की पदयात्रा पर निकल चुकी है ।    

पिछले कुछ दशकों से युद्धों और जलवायु परिवर्तन के कारण न जाने कितने लोग पलायन के लिये विवश होते रहे हैं । सभ्य समाज की यह एक ऐसी त्रासदी है जिस पर विचार तो होता है किंतु काम नहीं होता । पलायन करने वाले परिवारों की समस्याओं की कल्पना भी नहीं की जा सकती । वे गम्भीर स्थितियों से होकर किसी तरह जी भर पा रहे हैं जो वास्तव में एक तरह का दण्ड है जो उन्हें चाहे-अनचाहे भोगना पड़ रहा है । उन्हें समाज की मुख्य धारा में आने के लिये जीवन भर संघर्ष करना होता है । दावानल, बाढ़, सूखा और भूस्खलन आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाले पलायन के अतिरिक्त युद्धों और मनुष्यकृत अनेक पापों के कारण कश्मीर, सीरिया, ईराक, इरिट्रिया और अब अफ़गानिस्तान से लोगों का पलायन पूरी दुनिया को झकझोरने वाला है ।

धर्मिक उग्रवादियों को सहयोग करते रहने वाले तुर्की के कुछ चिंतकों और कलाकारों ने मिलकर अमाल को जिस कामना के साथ पदयात्रा पर भेजा है वह कीचड़ में कमल खिलने जैसी घटना है । चेहरे पर छलकते गहरे दर्द के साथ अपनी ख़ामोशी से हर किसी को झकझोरती हुयी आगे बढ़ती जा रही अमाल का एक ही संदेश है – “हमें मत भूलो”।


क्या नहीं भूलना है? यह हमें और आपको सोचना है । हमने प्रकृति को भुला दिया और उसका अनादर किया । सत्ताधीशों ने मानवता को भुला कर अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिये निर्दोष लोगों को युद्ध में झोंक दिया । हमने बेघर हो चुके उन लोगों की त्रासदी को भुला दिया जिसके लिये वे ज़िम्मेदार नहीं थे । समाधान खोजने के लिये हमें अपने सारे पापों को याद रखना होगा ।



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