पूर्वी चम्पारण के जितवारपुर गाँव के रवीश कुमार पाँडे के अलावा एनडीटीवी में एक और रवीश हैं, नाम है रवीश रंजन शुक्ल जो यूपी के बहराइच से हैं । रवीश रंजन शुक्ल 13 अगस्त 2021 को अपने चहकू(ट्वीटर) पर लिखते हैं – “हर धर्म की नींव इंसानियत की बुनियाद पर टिकी है, लेकिन अफसोस, धर्म के कुछ ठेकेदार धर्म के नाम पर और धर्म के लिये हिंसा को जायज ठहरा रहे हैं । अब पूरी दुनिया में धर्म ही नफ़रत का पर्याय बन रहा है”।
प्रगतिवादी
चश्मे से पहली नज़र में यह ट्वीट बहुत शानदार सा लगता है, लेकिन
थोड़ा और आगे बढ़ने पर इसकी तासीर रफ़्ता-रफ़्ता समझ में आने लगती है । यूँ, एक शंका रह जाती है, जब “हर धर्म की नींव इंसानियत
की बुनियाद पर टिकी है” तो किसी धर्म विशेष के प्रचार की और धर्मांतरण की क्या
ज़रूरत? और क्यों लोगों को इस काम के लिये आज़ादी चाहिये?
रवीश
रंजन शुक्ल बहराइची 16 अगस्त 2021 को चहकते हैं – “अफ़गानिस्तान का असर
कुछ तो पड़ना चाहिए । स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिल्ली-गाज़ियाबाद का इंटरनेशनल बॉर्डर
कल बंद कर दिया गया था । कइयों की फ़्लाइट्स और ट्रेन छूट गई । आतंकी साया दिखाकर security
State में बदल दो । इसी आतंकी साये में पलकर ये पत्तलकार जवान से
बूढ़ा हो गया”।
सही बात
है पंडित जी महाराज! महीनों शाहीन बाग में जमे रहे धरनों और दिल्ली की सरहदों पर
स्थायी हो चले टिकैती धरनों के दौरान किसी की फ़्लाइट और ट्रेन नहीं छूटती लेकिन
पंद्रह अगस्त को हाई एलर्ट के दिन कुछ घण्टों के लिये बॉर्डर बंद होने से बड़ी
मुश्किल हो गयी ...क्योंकि छीनके लेंगे आज़ादी वालों के ख़ानदानी अपने मंसूबों में
क़ामयाब नहीं हो सके । लेफ़्टियाना इरादों और उग्रवादी हरकतों को बौद्धिक कवरेज देने
वाले सफ़ेदपोश लोग आज़ाद भारत के लिये सबसे बड़ी चुनौती बन गये हैं ।
दिनांक 19
अगस्त 2021 को शुक्ल जी ने एक लिंक देते हुये फिर एक चहक मारी – “इस
श्रंखला को पढ़िये और दिमाग को खोलिए । तालिबान की बंदूक से ज़्यादा उसकी जैसी सोच
से हमें ख़तरा है”।
रवीशद्वय
की सोच के हिसाब से ऐसा इशारा प्रायः मोदी, शाह और योगी की ओर हुआ करता
है । बेगूसराय से कश्मीर भाया जेएनयू तक फैले तमाम पढ़े-लिखे लोगों को “हिंदुत्वा”
वाली सोच तालिबानी सोच से भी अधिक भयानक लगती है । सावधान! इस सोच से देश ही नहीं
बल्कि इंसानियत को भी ख़तरा है ।
शुक्ल
जी ने 19 अगस्त 2021 को ही एक बार फिर चहक मारी, फ़रमाया – “पिछला चुनाव पाकिस्तान के नाम पर और ये चुनाव तालिबान के नाम पर लड़ा
जायेगा । तालिबानी आतंकियों के वीडियो में मुनव्वर राणा जैसों के बयान का तड़का
लगेगा, फिर हिंदुओं को डराया जायेगा कि अफ़गानों की तरह तुम
भी आने वाले समय में इसी तरह भागोगे । उप्र की चुनावी स्क्रिप्ट तैयार है”।
शुक्ल
जी! क्या कैराना से हिंदुओं को नहीं भगाया गया? क्या कश्मीर घाटी से पंडितों को
नहीं भगाया गया ? क्या पाकिस्तान से हिंदुओं को नहीं भगाया गया.....?
रवीश जी! इस देश को आपके जैसे ब्राह्मणों से बेहद ख़तरा है जिन्हें
दुनिया भर में होने वाले हिंसक दंगों, युद्धों और फ़तवों में
कोई दोष दिखायी नहीं देता जबकि अपनी सुरक्षा के लिये प्रतिक्रियास्वरूप डिफ़ेंसिव
मोड में आने वाले जेव्स और हिंदुओं में दोष ही दोष दिखायी देते हैं । विप्र जी!
समाज को राह न दिखा सको तो भ्रमित भी मत करिये । उजाले की आप जैसे लोगों से उम्मीद
नहीं लेकिन अँधेरा भी इतना मत फैलाइए जिसमें हमारे साथ-साथ आप भी डूब जायँ ।
यहाँ कौन बंजारा नहीं है ? कोई वाम बंजारा ( जिनसे आपने अभी मुखातिब कराया ) है तो कोई खुलेआम (आप) है और सही भी हैं । यूँ ही कलम पर तेज धार देते रहें । ऐसी सोच का समय रहते पर्दाफाश होना ही चाहिए ।
जवाब देंहटाएंमहोदय जी! क्या आप भी हमारे कुनबे वाला बंजारा बनना चाहेंगे!मानवता के लिए हम सबको एक साथ सामने आना होगा
हटाएंआपके द्वारा दी जानकारी झकझोर देती है ।
जवाब देंहटाएंपढ़ने के लिए आभार ! हम ढपली वाले हैं, आवाज़ आप तक पहुँची, हमारा ढपली बजाना सार्थक हुआ ।
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