कुछ सालों से लता का कोई समाचार नहीं मिला है ...और मैं अक्सर उसकी याद आते ही बुरी तरह काँप उठता हूँ । मैं लता को भूल जाना चाहता हूँ ...मैं उस गाँव को भूल जाना चाहता हूँ ...मैं उन सम्भावित घटनाओं से पीछा छुड़ाकर दूर भाग जाना चाहता हूँ, किंतु ऐसा कुछ भी हो नहीं पाता । मैं जब भी पश्चिमोत्तर उत्तरप्रदेश में किसी धर्मोन्मादी भीड़ का कोई समाचार सुनता हूँ तो लता सिंह का भयभीत चेहरा लाखों प्रश्नों के साथ मेरे सामने आकर खड़ा हो जाता है, तब मुझे लता सिंह से आँखें चुरानी पड़ती हैं और मैं स्वयं को एक कायर और स्वाभिमानशून्य नागरिक अनुभव करता हूँ ...एक ऐसा नागरिक जिसे यह बताया जाता रहा है कि वह सम्प्रभु कहे जाने वाले स्वाधीन भारत का एक नागरिक है जहाँ उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा किये जाने का वचन दिया गया है ।
बहराइच
जिले में एक सुदूर गाँव के शासकीय विद्यालय में वह लड़की अध्यापन करती है । उसका घर
लखीमपुर खीरी में है, एक दिन उसने बताया कि सुरक्षा कारणों से वह गाँव में न रहकर पास के एक
कस्बे में रहती है और प्रतिदिन अपने विद्यालय आना-जाना करती है । आसपास के गाँव
मुसलमानों के हैं और वह पूरा क्षेत्र एक लघुपाकिस्तान जैसा लगता है । अपने
विद्यालय तक पहुँचने के लिये उसे ऐसे ही गाँवों से होकर जाना होता है । पिछले दिनों
वहाँ हिन्दू लड़कियों के साथ कुछ ऐसी घटनायें हो गयीं जिनके बारे में जानने के बाद
से वह भयभीत है और उन गाँवों से होकर जाते समय उन घटनाओं का स्मरण करते ही पसीने
से तरबतर हो जाया करती है । मैंने टीवी समाचार में देखा था ...कि कुछ युवकों ने एक
हिन्दू लड़की को उठा लिया, उसके साथ सामूहिक यौनदुष्कर्म किया
फिर उसकी बुरी तरह हत्या कर दी । उस दिन मेरा साहस नहीं हुआ कि मैं लता सिंह से बात
करके उसका हालचाल पूछ सकूँ ।
मुस्लिम
गाँवों से होकर जाते समय उसे एक-एक पल एक-एक शताब्दी की तरह ठहरा हुआ लगता है
...और स्थायी भाव से ठहर चुके इस भय के हर पल को प्रतिदिन जीना अब उसकी विवशता बन
चुकी है । मैं उस लड़की के लिये बहुत चिंतित हूँ ...कई बार मुझे घबराहट होने लगती
है ...और आत्मग्लानि भी ...कि हमने यह कैसी आज़ादी पायी है जहाँ हमारे घर की
लड़कियों को एक-एक पल काटने के लिये अपनी पूरी शक्ति सँजोनी पड़ती है ।
उसने बताया
था कि रास्ते में एक छोटा सा गाँव और भी पड़ता है जिसमें डोम लोग रहते हैं । एक दिन
मैंने लता से कहा कि वह उनसे मेल-जोल रखे, मुझे विश्वास है कि डोम उसका
कुछ भी अहित नहीं होने देंगे । यह मुलायम राजवंश के युग की बात है, राजपूत लड़की होने के कारण उसके स्थानान्तरण की भी कोई सम्भावना नहीं थी । उस
दिन मैंने स्वयं को लता से भी अधिक असहाय पाया था ।
जब भारत
के उच्चशिक्षित और अतिबुद्धिमान लोग मेरी चिंता को “इमोशनल फ़ुलिशनेस”
और “बेसलेस” कहते हैं तो मैं उनसे निवेदन
करता हूँ कि वे एक बार कुछ पलों के लिये सामूहिक यौनदुष्कर्मियों से नोची जाती
हुयी लड़की के रूप में स्वयं को देखें ...कि वे एक बार कुछ पलों के लिये चाकुओं से
छलनी कर दिये गये आईबी अधिकारी अंकित शर्मा के रूप में स्वयं को देखें ...और अनुभव
करें कि वीभत्सता और क्रूरता से भरे उन क्षणों में किसी व्यक्ति की मानसिकता अपने
देश और समाज के प्रति कैसी होती होगी । हाँ ...हम ऐसे ही भारत के निवासी हैं जहाँ
हमें पल-पल दहशत में जीना होता है ...और जहाँ समाधान की दूर-दूर तक कोई सम्भावना
दिखायी नहीं देती ।
जब उन्नीस
सौ अस्सी और नब्बे के दशक में कश्मीरी पंडितों को उनके अपने पैतृक घरों से पलायन
करके अपने ही देश में शरणार्थी सा जीवन जीने के लिये विवश किया गया था तो भारत के
उच्चशिक्षित और अतिबुद्धिमान हिन्दू समूह में कोई हलचल नहीं हुयी थी । जब विधायक
अकबरुद्दीन ओवेसी ने सार्वजनिक मंच से दहाड़ते हुये घोषणा की थी कि पंद्रह मिनट के
लिये पुलिस को हटा लिया जाय तो वे भारत के सारे हिन्दुओं को काट कर रख देंगे – तब यह
सुनकर भारत का कम पढ़ा-लिखा हिन्दू तो भयभीत हुआ था किंतु उच्चशिक्षित और अतिबुद्धिमान
हिन्दूसमूह ने इस चेतावनी को कोई समस्या ही नहीं माना । जब सिंध, पश्चिमी
पञ्जाब और बांग्लादेश के साथ-साथ उत्तरप्रदेश, गुजरात,
हरियाणा और राजस्थान के चिन्हित किये गाँवों के हिन्दुओं को अपने
पैतृक गाँव छोड़कर पलायन के लिये बाध्य किया जाता है तो भारत का कम पढ़ा-लिखा हिन्दू
तो भयभीत होता है किंतु उच्चशिक्षित और अतिबुद्धिमान हिन्दूसमूह इसे अफ़वाह मान कर
हिन्दुओं की हँसी उड़ाता है । जब अफ़गानिस्तान में सदियों से बसे सिखों को तालिबान
सरकार द्वारा सुन्नी मुसलमान बनने या फिर अफ़गानिस्तान छोड़ देने का विकल्प दिया
जाता है तो भारत का आम आदमी तो भयभीत होता है किंतु उच्चशिक्षित और अतिबुद्धिमान
हिन्दूसमूह इसे कोई समस्या ही नहीं मानता । जब भारत के कई मुल्ला-मौलवी
गज़वा-ए-हिंद के लिये मुसलमानों को उत्तेजित करते हैं तो भारत का आम हिन्दू तो भयभीत
होता है किंतु उच्चशिक्षित और अतिबुद्धिमान हिन्दूसमूह इसे धार्मिक स्वतंत्रता मान
कर मुसलमानों के पक्ष में खड़ा दिखायी देता है । जब दुनिया भर के मौलवी अपने
धार्मिक प्रवचनों में चीख-चीख कर हिन्दुओं सहित सभी काफ़िरों को देखते ही काट डालने
को अल्लाह की ख़िदमत मानने की वकालत करते हैं तो दुनिया भर के मुस्लिमेतर लोग भयभीत
होते हैं किंतु भारत के उच्चशिक्षित और अतिबुद्धिमान हिन्दू इसे मुसलमानों को
बदनाम करने का हिन्दू हथकण्डा मानते हैं । जब 2021 में बांग्लादेश में हजारों
दुर्गा पण्डालों को तहस-नहस किया जाता है, हिन्दुओं की
हत्यायें और हिन्दू-लड़कियों से यौनदुराचार होते हैं, मंदिर
में घुसकर उन्मादी लोगों द्वारा हिन्दुओं को बुरी तरह काटा जाता है और इस्कॉन
मंदिर में घुसकर तोड़फोड़ की जाती है तब दुनिया भर के लोग भयभीत होते हैं किन्तु
भारत के उच्चशिक्षित और अतिबुद्धिमान हिन्दुओं को बांग्लादेशी हिन्दुओं से इन
आरोपों का प्रमाण माँगते हुये देखा जाता है, और जब उन्हें इन
घटनाओं के वीडियो दिखाये जाते हैं तो वे स्वयं न्यायाधीश बनकर उन्हें नकली घोषित
कर देते हैं ।
भारत, पाकिस्तान
और बांग्लादेश के मुसलमानों को पिछले कई दशकों से एक सुर में गज़वा-ए-हिन्द के लिये
योजनाबद्ध तरीके से काम करते हुये दुनिया भर के लोग तो देख पाते हैं किंतु भारत के
उच्चशिक्षित और अतिबुद्धिमान हिन्दूसमूह नहीं देख पाते तो मेरे जैसे आम हिन्दू की
चिंतायें बढ़ जाया करती हैं । मैं, बहुत साधारण से आम
हिन्दुओं के उस समूह का आम आदमी हूँ जिसे अपने सनातनधर्म पर गर्व है, किंतु जो किसी अन्य धर्म को जड़ से उखाड़ फेकने की न तो बात करता है और न
इसमें विश्वास रखता है । ...मैं हिन्दुओं की उस भीड़ का एक हिस्सा हूँ जो सच को
देखने-सुनने और समझने का साहस रखता है ...और जो वर्तमान के दूरगामी परिणामों की
उपेक्षा नहीं कर पाता ।
लोग
पूछते हैं कि इस्लाम के द्वारा दुनिया भर के अन्य धर्मों को समाप्त कर देने के
लिये मारकाट करने का खुले आम आव्हान किया जाने लगा है, धार्मिक
उन्माद और इस्लामी विस्तार का यह तरीका एक वैश्विक समस्या बन चुका है, हिन्दुओं के उत्पीड़न पर भारत सरकार असहाय दिखायी देती है तब ऐसी स्थिति
में इन समस्याओं का समाधान क्या हो सकता है?
भारतीय
हिन्दुओं की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे एक वैश्विक समस्या को किसी भी तरह की
समस्या मानने के लिये तैयार ही नहीं हैं । वे मानते हैं कि यदि इसे समस्या मान भी
लिया जाय तो यह सरकारों की समस्या है इसलिये इसके समाधान का दायित्व भी सरकारों का
ही है, आम आदमी को इस्लामिक विस्तार से या सनातनधर्म के पराभव से क्या लेना-देना!
उच्चशिक्षित
और अतिबुद्धिमान हिन्दू समूह के लोग रिसर्च में विश्वास रखते हैं । वे ऐसी रिसर्च
करना चाहते हैं जिससे और भी घातक एवं विध्वंसकारी हथियार बनाये जा सकें, नयी
वैक्सीन, नये ज़ेनेटिकली मोडीफ़ाइड सीड्स, और आर्टीफ़िशियल इन्टेलीजेंसी के क्षेत्र में नये-नये कीर्तिमान स्थापित
किये जा सकें ...वे अपनी रिसर्च के परिणाम मूर्ख और धूर्त राजनीतिज्ञों को सौंप कर
गौरवान्वित होते हैं और अंत में अपनी रिसर्च की तकनीक भी उन्हें सौंप देते हैं
जिन्हें सौंप देने के लिये धूर्त राजनीतिज्ञ उन्हें आदेश देते हैं । तालिबान
विज्ञान का विरोध करते हैं पर उनके पास अत्याधुनिक हथियार और अन्य आधुनिक संसाधन
होते हैं ...उनके पास वह सब कुछ होता है जिसे अतिबुद्धिमान लोग रिसर्च करके बनाते
हैं । तालिबान को रिसर्च में कोई रुचि नहीं होती पर वे इस्लाम के विस्तार के लिये नई
रिसर्च के उत्पादों का स्तेमाल करने में पूरा विश्वास रखते हैं । कम से कम रिसर्च
के क्षेत्र में भारत के उच्चशिक्षित और अतिबुद्धिमान हिन्दू समूह की अपेक्षा, क्या तालिबान और आइसिस के लड़ाके कहीं अधिक व्यावहारिक नहीं लगने लगे हैं?
बाबर, औरंगज़ेब,
चंगेज़ ख़ान, नादिरशाह और बख़्तियार ख़िलज़ी जैसे
लोगों की स्तुति करके स्वयं को गौरवान्वित मानने वाले हम हिन्दुओं की सबसे बड़ी
समस्या यह है कि हम एक वैश्विक समस्या को अपनी समस्या मानने के लिये तैयार नहीं
हैं । हमें सबसे पहले समस्या को उसके उसी रूप में पहचानने के लिये स्वयं को तैयार
करना होगा । फिर हमें असत्य और नित्य हो रहे अत्याचारों के प्रबल विरोध के लिये
स्वयं को खड़ा करना होगा । स्वामी विवेकानंद ने भारत जागरण के लिये अपने जीवन को
अर्पित कर दिया पर भारत जागरण नहीं हो सका । हमें समाज जागरण के लिये बारम्बार
उठकर खड़े होना होगा । ध्यान रखा जाय कि राजनीतिज्ञों का न कोई धर्म होता है और न
धर्म में उनकी कोई आस्था होती है । इस मामले में वे पूरी तरह नास्तिक और बहुत कुशल
बहुरूपिये हुआ करते हैं, जो सुबह को इस्लाम, दोपहर को सनातन और रात को ईसाई धर्म के अनुयायी होने का बहुत अच्छा मंचन
करते देखे जाते हैं । दूसरे धर्मों को स्थान देने और उनके अनुयायी होने के अंतर को
हम आम हिन्दुओं को समझना होगा । समाधान पर चिंतन करते समय हमें यह भी स्मरण रखना
होगा कि जब राजा अपनी प्रजा की रक्षा करने में असमर्थ हो तो प्रजा को अपनी रक्षा
का उपाय स्वयं ही करना होता है ।
जब
मोहनदास करमचंद गांधी मंदिर में कुरान का पाठ करने के लिये हठ पर उतारू हो जायें
किंतु किसी मस्ज़िद में रामायण के पाठ को इस्लाम के विरुद्ध स्वीकार कर लेते हों तो
सोचा जा सकता है कि ऐसे देश में किस तरह की परम्पराओं का सूत्रपात किया जाता रहा
है । हमें यह भी गम्भीरता से सोचना होगा कि देश भर में उग आयी विषाक्त विषबेलों को
उखाड़ कर नष्ट करने का समय क्या अभी भी नहीं आया है!