रविवार, 10 अक्तूबर 2021

सब कुछ बिक जाएगा, जो बेच सके सो बेच

         भारतीय संस्कृति और सभ्यता से प्रभावित ज़र्मनी की कैरोलिना को अंततः एक नया उपनाम मिल ही गया और अब वे कैरोलिना गोस्वामी के नाम से जानी जाती हैं जो भारतीय समुदाय के लिये एक पोस्टमार्टम गर्ल बन गयी हैं । हाँ! वे पश्चिमी देशों में पनप रही नयी-नयी मानव प्रवृत्तियों और जीवनशैली का पोस्टमार्टम करती हुयी दुनिया को चेतावनी देती हैं । इस लेख को आगे पढ़ने से पहले सभी पाठकों से अनुरोध है कि एक नग छोटी इलायची अपने मुँह में अवश्य रख लें । यदि आप अधिक कल्पनाशील और संवेदनशील हैं तो आपको वमन हो सकता है, ऐसी स्थिति में आपसे विनम्र अनुरोध है कि इस लेख को और आगे मत पढ़ें ।

मुझे आश्चर्य हुआ जब कैरोलिना गोस्वामी ने अपने एक वीडियो में योरोपीय देशों की एक नयी प्रवृत्ति का पोस्टमार्टम करते हुये बताया कि वहाँ की लड़कियाँ अपनी पढ़ायी का खर्च निकालने के ऐसी-ऐसी चीजें बेच देती हैं जो अकल्पनीय हैं । बाजार में इन अकल्पनीय चीजों के ख़रीददारों की भीड़ बढ़ती जा रही है । इतना ही नहीं, इन चीजों को बेचने के लिये इण्टरनेट पर एक बहुत बड़ा बाजार भी खड़ा कर लिया गया है ।

हाँ! तो ये चीजें हैं –“अनवाश्ड एण्ड डर्टी अण्डरगार्मेंट्स”। जो अधोवस्त्र जितने अधिक दिन तक बिना धोये हुये पहनने के बाद बेचा जायेगा बाजार में उसकी कीमत उतनी ही अधिक होती है । जर्मनी के एक विश्वविद्यालय की छात्रा ने बताया कि एक जोड़ी अण्डरगार्मेण्ट को पाँच हजार डॉलर में बेचने के लिये कम से कम तीन हफ़्ते तक बिना धोये हुये पहनना पड़ता है । इस तरह उसे प्रतिमाह अच्छी खासी रकम की कमायी हो जाया करती है ।

विकसित देशों में प्रचलित इस नवीन व्यापार का पोस्टमार्टम करने से पहले मैं यह बता दूँ कि एक गंदे और अनहाइजेनिक अण्डरगार्मेण्ट से हजारों डॉलर कमाने के लिये इन पढ़ी-लिखी लड़कियों को बहुत बड़ी कीमत चुकानी होती है । हफ़्तों तक किसी अण्डरगार्मेण्ट को पहनने से योरोप की लड़कियाँ “वेजाइनोसिस” नामक व्याधि की शिकार होती जा रही हैं ।

आज मुझे वर्षों पहले फ़िनलैण्ड से बस्तर आयी एक लड़की की याद आ रही है जिसने बस्तर की गर्मी में भी बिना स्नान किये दो सप्ताह गुजार दिये थे । हम उसे रोज उन्हीं कपड़ों में देखते थे ।

एक बार दो युवा फ़्रांसीसी महिलायें मुझसे मिलने आयीं । उनके चले जाने के बाद भी मेरे कमरे में बहुत देर तक भयानक बद्बू आती रही थी । यूके में रह रही शिखा ने एक बार बताया था कि सुबह-सुबह वहाँ की बसों, ट्राम और ट्रेन में चलना मुश्किल हो जाता है, शायद यूके के लोग सुबह-सुबह हाज़त रफ़ा करने के अभ्यस्त नहीं होते । यूँ हमेशा ही ऐसा नहीं होता, भारत आने वाले विदेशी पर्यटक भारतीयों की संवेदनशील नाक का यथोचित सम्मान करते हैं और अपने कमरे से बाहर निकलने से पहले ख़ूब सारा पर्फ़्यूम अपने ऊपर स्प्रे कर लिया करते हैं । यह तो योरोप की बात हुयी, किंतु “माथा घुमाऊ इंसानी गंध” के मामले में अमेरिका भी कोई कम नहीं है । मैं तो आपको केवल इतना ही बताना चाहता हूँ कि फ़िलाडेल्फ़िया और लास एंजेलेस जैसे अत्याधुनिक महानगरों की लड़कियाँ भी डर्मेटाइटिस जैसी बीमारियों की ख़ूब शिकार होती हैं ।

          अब बारी है पोस्टमार्टम की । पूँजीवाद के विरुद्ध कई क्रांतियाँ करने और कम्युनिज़्म को खूँटे से बाँध कर रखने के बाद भी पश्चिमी देशों में सम्पत्ति के ध्रुवीकरण को रोका नहीं जा सका । लास एंजेलेस में बहुत अमीरी है, ठीक उतने ही अनुपात में बहुत ग़रीबी भी है । ऐसे समाज में कुछ अकल्पनीय शौक नये-नये व्यापारों को जन्म देते हैं । ग़रीबों को जीवित रहने के लिये पैसा चाहिये, और वे इसके लिये कुछ भी कर सकते हैं । अमीरों को अपना बेशुमार पैसा ख़र्च करने के लिये कुछ शौक पालने होते हैं जिनके लिये वे कुछ भी कर सकते हैं । मैं जर्मनी की बात कर रहा था ...जर्मनी की उन छात्राओं की जो अपने “अनवाश्ड, डर्टी एण्ड अनहाइजेनिक अण्डरगार्मेण्ट्स” को हजारों डॉलर्स में बेच कर अपनी ज़रूरतें पूरी कर रही हैं । अमीर ख़रीददारों की कमी नहीं है । प्रश्न उठता है कि वे इन बद्बूदार कपड़ों का करते क्या हैं?

           पैसा जब बेशुमार होता है तो शौक भी बेशुमार होते हैं जो अंततः “पर्वर्टेड सेक्सुअल बिहैवियर” का कारण बनते हैं । डर्टी अण्डरगार्मेंट्स के सारे ख़रीददार इसी बीमारी के शिकार होते हैं । छात्राएँ इस बीमारी का इलाज़ गंदे कपड़े बेच कर करती हैं । मेडिकली यह सही इलाज़ नहीं है बल्कि सिम्प्टोमैटिक है जिससे रोगियों को थोड़ी देर के लिये एक्सटेसी की अनुभूति हो जाया करती है । कुछ चतुर लड़कियाँ सोशल मीडिया पर इश्तहार भी देती हैं और अण्डरगार्मेण्ट्स के डर्टी होने के प्रमाणस्वरूप उन्हें पहन कर अपने फ़ोटो भी ऊँची कीमत पर ग्राहक को बेच देती हैं । सोशल मीडिया पर ऐसे चित्रों की बोलियाँ लगती हैं । कमाल है, एक तो डर्टी गार्मेण्ट्स की बिक्री और फिर उसके विज्ञापन की भी बिक्री, डॉलर्स कमाने का डबल धमाकेदार तरीका ...वह भी उस देश में जहाँ के लोग साम्यवादी क्रांतियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं । यानी योरोप में तो “सब कुछ बिक जाएगा, जो बेच सके सो बेच”। सचमुच, कमाल का व्यापार है, कमाल के व्यापारी हैं, कमाल के ख़रीददार हैं ।

          बहरहाल कैरोलिना गोस्वामी योरोपीय देशों में अध्ययन के लिये जाने वाली भारतीय लड़कियों से अपेक्षा करती हैं कि वे स्थानीय छात्राओं की देखा देखी किसी लालच में न आयें बल्कि अपनी महान सभ्यता, संस्कृति और संतुलितजीवनशैली को बचा कर रखें ।  

2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (11 -10-2021 ) को 'धान्य से भरपूर, खेतों में झुकी हैं डालियाँ' (चर्चा अंक 4211) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    जवाब देंहटाएं
  2. very nicely written and I really like your blog post so thank you so much for sharing this interesting post with us.
    Free me Download krein: Mahadev Photo | महादेव फोटो

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.