ज़ख्म अंधेरों ने दिए थे ख़ूब
छिप गया था चाँद
उगते प्रेम का,
हो गया था बादलों की ओट.......
पर घड़ी भर बाद ही
वह आ गया हंसता हुआ,
उम्मीदें बच गईं फिर ख़ाक होने से .
क्या ख़ूब है गर्मी तुम्हारे इश्क की
पिघलते द्वंद्व के हिमनद
बहे हैं इन दिनों .
सैलाब कब ठहरे हुए
देखे किसी ने आज तक !
आओ कश्ती खोल दें हम प्यार की
गा उठा है गीत कोलंबस कोई
ढूंढ लेंगे रास्ता हम भी नया.
दोस्ती कितनी पुरानी
प्रेम से है
दर्द की.
रोक कर इनको करें क्या
चलो ......इनको छोड़ दें रिसता हुआ
बस, प्रेम को सिज़दा करें
सिज़दा करें ...... यह तय हुआ.
रोक कर इनको करें क्या
जवाब देंहटाएंचलो ......इनको छोड़ दें रिसता हुआ
hmmmmmmm.....baba...marmsprshi...rchna...
pr ptaa nhi kyun..mere liye aapki ..rchna..in 2 lines me hi simat gyi.......jaan ekyaa baat he in 2 lines me...............bahut praabhshaali he.....bdhaayi...mujhe..kyunki mere baba ne likhi he.....:).....:)
बहुत मर्मसपर्शी रचना धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंआओ कश्ती खोल दें हम प्यार की
जवाब देंहटाएंगा उठा है गीत कोलंबस कोई
ढूंढ लेंगे रास्ता हम भी नया.
बड़ी प्यारी नज़्म है .....
प्रेम रस में भीगी सी .....
पी.टी.वी. एवं हीर जी ! शुक्रिया !!
जवाब देंहटाएंहाँ जोया ! बधायी तुम्हें ...क्योंकि तुम्हारे बाबा ने लिखी है. शैतान ! !
कौशलेंद्र जी... बेहद रूमानी अंदाज़!! बस सिर्फ भीगने का जी चाहता है इस बारिश में!!
जवाब देंहटाएंगा उठा है गीत कोलंबस कोई
जवाब देंहटाएंढूंढ लेंगे रास्ता हम भी नया.
दोस्ती कितनी पुरानी
प्रेम से है
दर्द की.
अतिसुन्दर ,क्या खूब लिखा आपने !
प्रेम का मनभावन सन्देश !
कौशलेन्द्र जी बस्तर के उन घने जंगलों से इतनी सुंदर अभिव्यक्ति...उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़!!!
जवाब देंहटाएंbahut achchi kavita samvedansil. upar wali kavita v achchi ha.
जवाब देंहटाएंमन में गहरे बसे
जवाब देंहटाएंकुछ अलसाए-से भाव
मानो
कुछ "अपने-से" शब्द हो कर
अंगड़ाईयाँ लेने लगे हों ....
अनुपम काव्य !
सलिल भाई, मिसिर जी, राजरिशी जी, मुसाफिर जी, एवं दानिश जी! हमारी गली में आप आये ......हम धन्य हुए . सुखानुभूति हुयी ......आते रहें और इस यात्रा के साक्षी बनते रहें ......
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