बहुत पहले लिखी गयी थीं
कुछ शाश्वत कवितायें
......................
उनमें से एक कविता थी ......
सृष्टि की,
एक विलय की,
एक प्रेम की,
और एक विरह की.
...................
...................
फिर एक दिन लिखी शैतान ने
एक कविता शोषण की......
और खुश होता रहा
गा-गा कर अपनी कविता
गा-गा कर अपनी कविता
तब
साधु को भी लिखनी पड़ी
एक कविता
त्याग की
और बस ....
..............
..............
इसके बाद नहीं लिखी गयी
कोई कविता.
हम तो छूने का प्रयास भर करते हैं
इन्हीं कविताओं को
अपनी क्षमता भर
फिर कर देते हैं रूपांतरण
या भाषांतरण
.....और जोड़ते हैं
साहित्य में
सिर्फ एक छोटी सी कड़ी
बड़े गर्व के साथ .
पर शायद ....वह शक्ति नहीं रही अब
शब्दों में
कि कविता कर सके
कोई क्रान्ति.
हे दयानिधे ! वह शक्ति दो हमें
कि भर सकें
शब्दों में कुछ आग
और रची जाएँ कुछ
जलती हुई कवितायें.
जलती हुई कवितायें.
अद्भुत व्याख्या कौशलेंद्र जी कविता की!! उसके उद्भव और पराकाष्ठा की!
जवाब देंहटाएं"कि भर सकें
जवाब देंहटाएंशब्दों में कुछ आग
और रची जाएँ कुछ
जलती हुई कवितायें."
सचमुच अंकल जी ! आजकल क्रांतिकारी कविताओं की आवश्यकता है ...देखिये न ! घोटालों पे घोटाले हुए चले जा रहे हैं ...और किसी को शर्म भी नहीं आती ......और अंकल जी ! सजा भी नहीं मिलती किसीको. कैसा देश है हमारा ?
सत्य कहा...ह्रदय तो यही आकांक्षा करता है कि ईश्वर शब्दों में वह ताप भर दें जो सबके अन्तः करण झकझोर उसे क्रांति को बाध्य कर दे......
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली अतिसुन्दर रचना...
आभार आपका...
सलिल भाई ! आपका टिप्पणी हमको एकदम बूम कर देता है ......तसल्लिया जाते हैं की चलो कुछ गलत नहीं लिखे हैं ....बल्कि डाक्टरो लोग थोरा बहुत लिख सकता है ....ई भरोसा करवा देते हैं आप .....धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंसोनू जी ! आपको रचना अच्छी लगी ...धन्यवाद.
रंजना जी ! सादर अभिवादन ! ब्लॉग पर तशरीफ लाने और उत्साहवर्धन के लिए.
बहुत अच्छी कविता ! अग्नि का आवाहन करती ,
जवाब देंहटाएंव्यंजनापूर्ण सुन्दर रचना !