ठण्ड बढ़ती जा रही है
मौसम सर्द से सर्द होता जा रहा है
जमता जा रहा है सब कुछ
रक्त भी .....और विचार भी.
लोग बर्फ हो गए हैं
खामोश तो वे पहले से थे ही.
मुझे गर्मी की तलाश थी..............
कहाँ मिलेगी ?
इस बंद कमरे में ?
उफ़ ! यहाँ कहाँ ?
तो चलो बाहर चलते हैं
घने कुहरे में कहीं खोजते हैं ..
पेड़ों से पूछते हैं ...
गेहूं की बालियों से पूछते हैं .......
दूब की पत्तियों से पूछते हैं ............
मैं निकलने ही वाला था
कि तुम मिल गयीं
गहरी नीली चादर ओढ़े
सर से पावों तक ढकीं ...मुदीं ....
मैंने तुमसे गर्मी का पता पूछा
तुम चुप थीं
मैंने तुम्हें हिलाया
तुम चुप थीं
मैंने तुम्हारी चादर को छुआ
वह सर्द थी ....
बेजान सी ...मुझे डर लगा
तुम कौन हो ? मैंने पूछा ...
एक सर्द आवाज़ आयी -
"उदासी"
मैंने कहा - झूठ
वह तो तुम्हारी चादर का नाम है
उसके भीतर कौन है यह बताओ
तुमने कहा - "दर्द"
मैंने कहा - अच्छा है ...चलो अब
मेरे साथ चलो
दोनों मिल के गर्मी को तलाशेंगे
वह यहीं कहीं होगी
मिलेगी ज़रूर
तुम चलो तो सही ....
आगे किरण बेदी से पूछ लेंगे
उनके पास पता है उसका.
मौसम सर्द से सर्द होता जा रहा है
जवाब देंहटाएंरक्त भी .....और विचार भी.
खामोश तो वे पहले से थे ही.
वह सर्द थी बेजान सी ...मुझे डर लग
baba bahut maarmik chitran he
hmmmm baba kiran bediiiiiiiiiiiii
hmmm
लाजवाब बिम्ब चुने आपने भावाभिव्यक्ति को...लेकिन ये अंतिम पंक्ति में "किरण बेदी" का प्रयोग कुछ अजीब सा लगा...
जवाब देंहटाएंरस में बहते जाते लगा जैसे अचानक एक भारी अवरोध आकर मार्ग रोक खड़ा हो गया...और आसमानों में उड़ते मन को जमीन पर ला खड़ा कर दिया...
@ रंजना जी ! किरण बेदी की जगह कोई दूसरा भी नाम हो सकता है .......जो स्त्री अधिकारों के लिए संघर्ष का प्रतीक हो. जहां पीड़ा है ...उदासी है वहां जिजीविषा समाप्त होने लगती है और अवसाद अपनी जड़ें जमाने लगता है ......जो सर्द होता है ...बहुत ही सर्द ......मैं किसी को इस अवसाद से बाहर लाने का प्रयास कर रहा हूँ
जवाब देंहटाएंऔर सुझाव दे रहा हूँ कि वह अपने अधिकारों के लिए किरण बेदी की तरह संघर्ष करे .......यह एक जीती जागती कविता है ........यथार्थ के धरातल से उठायी हुयी .....इसे अंततः धरातल पर आना ही होगा. यूं भी यूटोपिया में धरा क्या है ?
आपने अपने मन की बात कही ...मैं बहुत बहुत आभारी हूँ आपका ......इसी बहाने मुझे अपनी बात और स्पष्ट करने का अवसर मिल गया.
@ जोया जी ! ......हूँ ....तो आपको एक बार फिर बधाई क्योंकि आपके बाबा ने लिखी है......अचानक बीच में किरण बेदी का नाम आ जाने से तुम्हें भी आश्चर्य हुआ न ! जवाब ऊपर है.
किरंबेदी के साथ काफी अन्याय हुआ है सच लिखा ..रचना पढ़ कर एक बार मुझे भी लगा की यह नाम क्यों ? पर आपने रंजना जी की जिज्ञासा को शांत किया हुआ है ....बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना कौशलेन्द्र जी। कोहरे में लिपटा हुआ पूरा के पूरा गाँव ही आँखों के सामने आ गया। सुन्दर बिम्बों का प्रयोग। किरन बेदी के नाम का प्रयोग मुझे भी कुछ अटपटा लगा। वैसे आप का जवाब तो पढ़ ही लिया है। खैर.....आप इसी तरह खामोंशियों को अपनी आवाज़ देते रहिये.....बधाई...!
जवाब देंहटाएंप्रोफ़ेसर साहिबा ! आदाब !!! हमारे जंगल में पधारने का शुक्रिया ! आप सबकी भावनाओं का सादर सम्मान करते हुए निवेदन करना चाहूंगा की हताशा-निराशा में टूट जाने वाली स्त्री को उसकी नारी शक्ति का परिचय दिलाकर और किरण बेदी की नजीर देकर संघर्ष के लिए प्रेरित करना इस रचना का उद्देश्य है . कई बार नजीरें हमें ताकत और जोश देती हैं .......शायद अभी के परिप्रेक्ष्य में उनसे बेहतर कोई नाम मेरी जानकारी में नहीं है ....और फिर इसी बहाने किरण जी की संघर्षशीलता और जीवट को सलाम करने का अवसर भी तो मिल गया.
जवाब देंहटाएंhttp://samvedanakeswar.blogspot.com/2011/02/blog-post_22.html
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा हुई है यहाँ देख लेंगे!!
नि :शब्द हूँ आपकी लेखनी पर ....
जवाब देंहटाएंऔर सम्मान में सर झुकाती हूँ ....
शायद ही कोई डॉ आप जैसा हो ....