रविवार, 29 अप्रैल 2012

चलिये, कुछ तीर्थाटन हो जाय...

चलिये, चलते हैं नानक मत्ता .....रुद्रपुर से पीलीभीत की ओर मात्र एक घण्टे की दूरी पर स्थित है सिख गुरु नानक साहब का यह गुरुद्वारा


पूरे देश से आने वाले सिख तीर्थयात्रियों का स्वप्न है यह गुरुद्वारा जिसकी भव्यता देखते ही बनती है।  संगमरमर निर्मित इस गुरुद्वारे के मुख्य द्वार की मेहराबों पर की गयी कार्विंग का अलग ही आकर्षण है ।


रात में संगमरमर की यह इमारत और भी निखर उठती है.....ख़ासकर तब और भी जब चाँद अपने पूरे शबाब पर हो । चलिये अन्दर चलते हैं ....

दिव्यता...भव्यता....और शांति का समागम
गुरुद्वारे के मुख्य भवन के पीछे पहँचते ही लगता है जैसे किसी महल में आ गये हों। मध्य में एक बड़ा एवं पक्का सरोवर है..... जिसके चारो ओर दीर्घ गलियारे वाले बृहद प्रकोष्ठ हैं ......जिनमें तीर्थयात्रियों के ठहरने की व्यवस्था के अतिरिक्त दाहिनी ओर के भवन में एक बृहद चित्र प्रदर्शिनी है .....जिसमें सिख गुरुओं, राजाओं एवम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले सिख वीरों के चित्र लगे हैं।
सरोवर में निवासरत हैं विभिन्न निर्भय मत्स्य परिवार। जल इतना स्वच्छ कि लहरों से परावर्तित होकर बनने वाले प्रकाश के वलय स्पष्ट देखे जा सकते हैं । चित्र रात के अन्धेरे में लिया गया है।  

नानकमत्ता के समीप ही है विशाल जलागार नानकसागर

और चलते चलते शिवस्वरूप की टिप्पणी....
यदि किसी गरीब के पास सीज़ेरियन ऑपरेशन के लिये पैसे न हों तो गर्भिणी को उत्तरप्रदेश की सड़कों पर मात्र दो किलोमीटर की यात्रा करा देना पर्याप्त होगा।

13 टिप्‍पणियां:

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  2. अपने साथ पाठकों को भी तीर्थयात्रा कराने का आभार! हम धन्य हुए।

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  3. रत तस्वीरों से हमने भी की तीर्थयात्रा ...
    विशेष टिप्पणी तो जानलेवा है :)

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    1. जी! लोग तो यह भी कहते हैं कि जब सड़क पर गाड़ी उछलना बन्द कर दे और उसकी गति 20 से अधिक हो जाये तो जान लेना चाहिये कि गाड़ी उत्तरप्रदेश छोड़कर उत्तराखण्ड में प्रवेश कर चुकी है। :)

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति,..तीर्थाटन कराने केलिए आभार,...चित्र सुंदर लगे कौशलेन्द्र जी ,

    MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

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  5. सुन्दर चित्रों के जरिए यात्रा कराने का आभार!

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  6. इस तीर्थाटन का शुक्रिया..
    चित्रों के माध्यम से हम भी घूम लिए.
    बहुत ही सुन्दर चित्र हैं..

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.