नयीपीढ़ी
में भारत के फ़्रेंकफ़र्तियायी उच्चशिक्षितों द्वारा यह आक्षेप अब अश्लील गालियों के
साथ आरोपित किया जाने लगा है कि मिस्टर दशरथ के एल्डर सन ने अपनी प्रिगनेण्ट बीबी
को पैलेस से निकालकर जंगल में छोड़वा दिया, ही वाज़ एन इम्पोटेण्ट एण्ड
क्र्यूल किंग । आप लोग उसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान कहते हैं, स्त्री के प्रति
अत्याचार ही क्या आपके भगवान की मर्यादा है ?
मोहम्मद
अशरफ़ बानी के लव अफ़ेयर में पिछले तीन महीने से गाफ़िल श्राबोनी चोटर्जी (श्रावणी
चटर्जी) ने कॉलर बोन के नीचे शर्ट के भीतर हाथ डालकर खुजाते हुये बहस को आगे बढ़ाया
– “... और वह भी अपनी लव मैरिज़ वाली बीबी ! मिस्टर रामा वाज़ अ क्र्यूल किंग, ऐसे
आदमी को तो गोली मार देनी चाहिये” । दिल्ली में सिगरेट पीती हुयी, जगह-जगह फटी हुयी (रिप्ड) जींसधारिणी छरहरी कन्यायों की भीड़ इस तरह के
डिस्कशन में बहुत रुचि लेती है । नयी पीढ़ी के लोग “द सो काल्ड पुअर हिंडू कल्चर”
को गरियाने का पुण्य अवसर कभी हाथ से सरकने नहीं देते । इस कार्य के दो तात्कालिक
लाभ होते हैं, पहला यह कि मन में प्रगतिशील होने के बोध से आत्मसंतुष्टि मिलती है
और दूसरा यह कि प्रगतिशील क्रिश्चियंस और शांतिदूत बहावी मुसलमानों के साथ दोस्ती
परवान चढ़ती है एवं बीफ़-भक्षण की एक तार्किक भूमिका निर्मित होती है ।
उस
सुन्दर कन्या ने सिगरेट के मुफ़्त धुयें से मुझे भी उपकृत किया, बड़ी
अदा से सिगरेट की राख झाड़ी फिर दिल्लियाना अंग़्रेज़ी में दशरथाज़ एल्डर सन की ऐसी
तैसी करने में लग गयी । वे सब यूनीवर्सिटी की छात्रायें थीं, उन्होंने हमारी बोलती बन्द कर दी थी । एक ने कहा - "प्रिगनेंट वाइफ़
...ओह माइ गॉड ! और वो भी जंगल में छोड़वा दिया ...क्या सोचा था ...कि जंगल में शेर
उसे पालेंगे ? अग्नि परीक्षा के बाद भी पनिश्मेण्ट ? और तुसीं उस आदमी नू मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हो?" वह व्यंग्य से हंसी, अन्य लड़कियों ने भी हंसने में
उसका साथ दिया । मैं चुप रहा, विग्रह्य सम्भाषा में चुप रहना ही प्रशस्त होता है ।
उस रात
मैं सो नहीं सका । कनेक्शन मिलाया और “दशरथाज़ एल्डर सन रामा” से बात की । मैंने
सीधे-सीधे दन्न से पूछ दिया - "आपको कुछ पता भी है कि यहाँ आपकी करतूतों के
कारण हमें क्या-क्या झेलना पड़ता है ? लेट मी नो, व्हाय डिड यू एबेंडोन
योर प्रिगनेंट वाइफ़ इन द फ़ॉरेस्ट ? ह्यूमन राइट्स की तनिक भी चिंता नहीं थी आपको ?
त्रेता का मामला आज कलियुग तक बवाल मचाये हुये है । आपसे अच्छा तो
वो मुगल अकबर था जिसने एक तरफ़ तो अनारकली को सबके सामने दीवार में चिनवा देने का
नाटक किया और दूसरी तरफ़ पीछे से उसे निकाल कर उज़्बेकिस्तान भेज दिया । कम से कम
जान तो बच गयी बेचारी की"।
मिस्टर
रामा हँसे, फिर बोले - "तो तुम्हारे ऊपर भी मार्क्सवादी रंग चढ़ने लगा है ! मिस्टर
मिसिर जी ! मोनार्ची का अर्थ समझते हैं ? किसी मर्यादित किंग
के लिये यह एक दोधारी तलवार है जो दोनों ओर से काटती है । सीता पर आक्षेप हमने
नहीं लगाया था, हमारे राज्य की प्रजा ने लगाया था । हम सीता
के पति के साथ-साथ अयोध्या की प्रजा के राजा भी थे जिसके सामने सबसे बड़ा दायित्व
नैतिकता के दीपक को जलाये रखने का भी था । यदि हम केवल सीतापति रामचन्द्र होते तो
धोबी के आरोप का सामना दूसरी तरह से करते । किंतु हमें तो घाटे का सौदा करके भी
मर्यादाओं को स्थापित करने का ज़ोख़िम उठाना था । प्रश्न सीता की बेग़ुनाही का नहीं
था, बल्कि उस धारणा का था जो उस धोबी के मन-मस्तिष्क में घर
कर चुकी थी । हमारे लिये एक ओर सीता थीं और दूसरी ओर अयोध्या की लाखों स्त्रियों
की मर्यादा थी । हम किसी एक की ही रक्षा कर पाने में समर्थ थे ...इसलिये हमने एक
स्त्री के मूल्य पर लाखों स्त्रियों के लिये चारित्रिक दृढ़ता का सन्देश देना उचित
समझा । एक व्यक्ति के रूप में निश्चित ही हमने सीता के प्रति न्याय नहीं किया
...किंतु एक राजा के रूप में हमने एक आदर्श को मरने से बचा लिया । राजा के लिये
व्यक्ति नहीं ...आदर्श महत्वपूर्ण है । राजा की एक छोटी सी त्रुटि भी दूसरों के
लिये नज़ीर बन जाती है । अपने लालू को ही देख लीजिये न ! उन्होंने केवल अपने परिवार
की चिंता की ...उनकी दृष्टि में भूखी भैंसों का कोई महत्व न था .... देश की संस्कृति
का कोई महत्व न था । यही कारण है कि उनके राजवंश में आदर्श और मर्यादा को छोड़कर वह
सब कुछ है जो किसी डॉन के पास होता है”।
हमारा
गुस्सा थोड़ा कम हुआ, हमने प्रतिप्रश्न किया - "ठीक है, आपने ऐज़ अ
किंग एक मानक को स्थापित करने का आदर्श तो निभाया किंतु क्या सीता की सुरक्षा का दायित्व
ऐज़ अ किंग आपका नहीं था ?"
दशरथाज़
एल्डर सन मिस्टर रामा की सोल ने उत्तर दिया - "मैंने कब कहा कि यह दायित्व
मेरा नहीं था ...हम डीप फ़ॉरेस्ट में वर्षों एक साथ रहे हैं, हमें
फ़ॉरेस्ट लाइफ़ का बहुत अच्छा एक्सपीरियंस है । हम चाहते तो मिस्टर गांधी की तरह रात
के अंधेरे में अपनी पत्नी को घर से निकाल सकते थे या उसका मर्डर करवा सकते थे
...किंतु यह सब तब होता जब सीता कल्प्रिट होतीं । हमें तो अपनी राजमर्यादा का पालन
करना था और ऐज़ अ हसबैण्ड उसकी रक्षा भी करनी थी । इसीलिये हमने लक्ष्मण को उसके
साथ भेजा और फ़ॉरेस्ट के सभी ऋषियों -मुनियों को यह मैसेज़ भिजवाया कि अब सीता की
रक्षा का दायित्व तुम्हारा है । आफ़्टर डिलीवरी ...जब लव एण्ड कुश बड़े हुये और
उन्हें एजूकेशन की ज़रूरत हुयी तो गुरुकुल में राजपुत्र की तरह ही उनका पालन-पोषण
और शिक्षण किया गया । मिस्टर मिश्र जी ! क्या आप समझते हैं कि यह सब यूँ ही हो गया,
क्या हमारा सिस्टम वहाँ निष्क्रिय था ? क्या
राजपुत्रों के लिये उपयुक्त राजशिक्षा की व्यवस्था अपने आप हो गयी ? क्या हमारी आज्ञा के बिना वह सम्भव था ? क्या हमने
अपने पुत्रों से युद्ध कर उनकी योग्यता को सिद्ध नहीं किया ? क्या हमने उस कूटनीतिक युद्ध से अपने पुत्रों की पात्रता को प्रमाणित कर
उनके लिये मार्गप्रशस्त नहीं किया ?"
"देखिये
मिसिर जी ! जब आप कार्ल मार्क्स, स्टालिन और शॉपेनहॉर के रंगीन
जल से स्नान कर लेते हैं तो फिर आपके चिंतन की धारा वह नहीं रहती जो इस देश की
पारम्परिक धारा है । यह केर-बेर का संग है जो एक साथ नहीं निभेगा । आप चाहें तो
देश में सीता पैदा कर सकते हैं ...और यदि आपको फ़्रेंकफ़र्तिया कल्चर अधिक लुभाता है
तो आप सनी लियोनी भी पैदा कर सकते हैं । हमारा कार्यकाल समाप्त हुआ, अब भारत को आप जैसा चाहें बना लें”।
चलो ,एक नई उद्भावना सामने आई!
जवाब देंहटाएंनई पीढ़ी ने राम को एक स्त्रीविरोधी खलनायक के रूप में खोज निकाला है । नयी पीढ़ी के मत की उपेक्षा उन्हें और भी उग्र बना देती है। यहाँ लिखने के अतिरिक्त हमारे पास और कोई उपाय नहीं था ।
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