रविवार, 22 नवंबर 2020

नींद नहीं आयेगी

नींद नहीं आयेगी...

दस-बारह / सड़क के आवारा कुत्ते / घूम रहे हैं झुण्ड में / कभी इस / तो कभी उस मोहल्ले में / तलाशते हैं / किसी मनमौजी / अकेले कुत्ते को / टूट पड़ते हैं फिर उस पर / बुरी तरह / नहीं देते भागने / अपने चंगुल से ।

किसने किससे सीखा / यूँ टूट पड़ना / किसी पर / आदमी ने कुत्तों से / या कुत्तों ने आदमी से / पता नहीं / आज रात / फिर मुझे नींद नहीं आयेगी ।  

भौंक रहे हैं / बुरी तरह नोच रहे हैं / सारे कुत्ते / बेचारे / उस एक कुत्ते को / जो नहीं था शामिल / उनके गैंग में ।

घूमने लगे हैं / चित्र / मेरी आँखों के सामने / ज़र्मनी और फ़्रांस में हुये / तहर्रुश गेमिया के / आज रात / फिर मुझे नींद नहीं आयेगी ।   

कलाकारों की राह पर...

नहीं जाते जेल / बेल पर घर लौट आते हैं / पकड़े गये कलाकार / पीत हुये गाँजा / लेते हुये कोकीन / नाचते हुये गाते हुये / देते हुये संदेश, कि / दम मारो दम / मिट जाए गम / बोलो सुबह-शाम / हरे कृष्णा हरे राम ।

किशोर और किशोरियों की पीढ़ी / चल पड़ी है / कलाकारों की राह पर, / कूद पड़ी है / गहरे समंदर में ।

समुद्र मंथन के लिये / क्यों / तैयार नहीं होता कोई / नये भारत में ?

कुकुरमुत्ते

तलाश रहती है उन्हें / यौनशोषण, क्रूरता, हत्या / और अन्याय की ।

वे / घटनाओं को होने देते हैं / बढ़ने देते हैं / पकने देते हैं / फिर, जैसे ही पक कर टपकती है / कोई घटना / टूट पड़ते हैं उस पर / शातिर भेड़िये / बनाने के लिए / एक स्मारक / जिस पर गाड़ सकें / झण्डा / अपनी महानता का ।

तलाश रहती है उन्हें / पत्तों के टूट कर गिरने की / झंझावातों में / पेड़ों के टूट कर धराशायी होने की / और फिर / जैसे ही सड़ने लगती हैं / टूटी हुयी पत्तियाँ / गिरे हुये पेड़ / वे सब टूट पड़ते हैं उन पर / और जमा लेते हैं अपनी जड़ें / मृत पत्तियों / और पेड़ों की सड़ती देह पर / फिर उगाते हैं वहाँ / रंगबिरंगे, सुंदर, आकर्षक / कुकुरमुत्ते / यानी परी का छाता / जिसकी छाया में / खेलते / और खिलखिलाते / बढ़ते जाते हैं कुछ लोग / कदम-कदम आगे / राजसिंहासन की ओर ।

स्मारक...

महीनों / वह संघर्ष करती रही / अकेली / जूझती रही / न्याय के लिये ।

एक दिन / जला दिया उसे / पकड़कर जिंदा ही / कुछ लोगों ने ।

मर गयी लड़की / तड़पती हुयी / अकेली ।

मरते ही उसके / टूट पड़ी वहाँ / करुणानिधानों की भीड़ / अब / लड़की की लाश नहीं थी अकेली / भीड़ / बहा रही थी / न्याय की गंगा ।

बन रहा है गाँव में / लड़की की जली हुयी लाश पर / एक भव्य स्मारक / जो ले जायेगा / करुणानिधानों को / राजसिंहासन की ओर ।  

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपने सम-सामयिक परिस्थितियों को बहुत ही उत्कृष्ट तरीके से पिरोकर जोड़दार व्यंग करते हुए, इन आततायियों को एक झन्नाटेदार तमाचा लगाया है। सुशांत मर्डर, दिशा सालयान मर्डर, नशे के गहरायी दुनिया, शरीफों के चोले ओढ़े सारे चील कौए और कुत्ते आदि और लाचार / अक्षम सी अपनी न्याय व्यवस्था।
    इस लेखन हेतु शत्-शत् नमन व साधुवाद। आशा है करोड़ों पाठक इसे पढ़कर जागरूक होंगे और मूक तमाशबीन न बनकर कोई प्रण अवश्य ही लेंगे।
    पुनः साधुवाद। ।।।।

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  2. उत्कृष्ट व्यंग

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  3. उत्कृष्ट व्यंग्य!

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.