आज एक पुरानी डाक भेज रहा हूँ ........आपको याद होगा सन २००५ में ह्त्या के आरोप में किसी तथाकथित शंकराचार्य को बंदी बनाया गया था, निंदनीय कृत्य के लिए दोषी को दंड मिलना ही चाहिए........पर प्रश्न और भी हैं ....उसी सन्दर्भ में तभी की लिखी एक रचना ....प्रस्तुत है आप सबके मंथन के लिए -
" सत्यमेव जयते " के उद् घोषक देश में
बड़ा कठिन है यह समझ पाना
कि सत्य को
क्यों प्रतीक्षा रहती है सदैव
धरती के फटने की ......
और ........
सीता का सत्य
क्यों नहीं स्वीकारा जाता
प्राणों का उत्सर्ग किये बिना !
मैं आश्चर्य चकित हूँ ........
पूरे देश में फैले मंदिरों से
निकलते ही बाहर
न जाने क्यों बदल जाता है चरित्र
पूरे देश का .
कुछ क्षण का पुजारी
बन जाता है ........दिन भर का अत्याचारी.
धार्मिक.....आध्यात्मिक बने रहने के लिए
इतना ही पर्याप्त मान लिया है सबने,
इसलिए किसी को अधिकार नहीं
कि दोष दे सके वह
किसी ओसामा बिन लादेन को
या
ह्त्या के आरोप में बंदी
किसी शंकराचार्य को .
मैं आश्चर्य- चकित हूँ .......
इतने लोग ............!
इतने रास्ते .............!
इतना ज्ञान ................!
पर ....
सब तिरोहित हो जाता है ........
न जाने कहाँ, .........न जाने क्यों ?
और मिलता नहीं कोई प्रमाण
प्रतिदिन होते बलात्कारों का .
"बलात्कार" .........
यह शब्द इतना कुंठित हो गया है अब
कि कोई आँच नहीं आती .......
हमारी नैतिक और आध्यात्मिक श्रेष्ठता पर.
चाहे कितनी ही बार ....क्यों न घटित होती रहें
इस कुण्ठित शब्द की शर्मनाक घटनाएं .
........................................................
ऐसी ही श्रेष्ठताओं के सहारे
विकास ( ? ) के सोपानों पर चढ़कर
बन गए हैं हम
धरती के सबसे खतरनाक प्राणी .
मैं,
इसीलिये
अधार्मिक हो जाना चाहता हूँ अब
ताकि बची रहे ...................
थोड़ी बहुत मनुष्यता
इस धर्म प्राण देश में .
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जवाब देंहटाएंइसीलिये
अधार्मिक हो जाना चाहता हूँ अब
ताकि बची रहे ...................
थोड़ी बहुत मनुष्यता
इस धर्म प्राण देश में । ॥
समाज में जो रहा है , उसे देखकर मन व्याकुल होकर अधार्मिक ही हो जाना चाहता है।
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nice hai but font thode se bade karege to or mazza aayega
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