क्या हो तुम ...कैसे कहूं
वह गंध शब्दों में कहाँ !
हूँ, खो गया पाकर तुम्हें
है साक्ष्य मेरे नयनों में.
नख से शिखर तक हो ग़ज़ल
हौले से थिरकीं नयनों में,
सरगम उमड़ता जा रहा
आ भर लूं अपने नयनों में.
कितनी गहरी झील को
ले घूमती हो नयनों में,
कहीं फिसल कोई गिर न जाए
डूब जाए नयनों में.
पांखुरी की कोर पर
ठहरी हुयी ज्यों ओस सी,
रूप तेरा ढल न जाए
आ भर लूं अपने नयनों में.
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