और आज......उत्तरमधुशाला की अगले पाँच रुबाइयां .......समर्पित हैं पूरे देश को
अपने-अपने दुःख के पर्वत
अपने-अपने पीड़ा सागर /
अपनी-अपनी सबकी हाला
अपनी-अपनी मधुशाला // १६
अपने आँसू तो अपने हैं
भरले औरों से प्याला /
ऐसा नशा चढ़ेगा जिस दिन
हर ओर दिखेगी मधुशाला // १७
आँसू हैं अनमोल जगत में
फिर भी खाली तेरा प्याला !
सौदागर के फेर में आके
नादान ये क्या तूने कर डाला // १८
दुनिया में बाज़ार सजे हैं
हाथ अमीरों के है प्याला /
सब कुछ अपना बेच न देना
होश न खोना साकी बाला // १९
कभी किसी कचरे में मिलती
साँसें गिनती नन्हीं बाला /
"देवी" नाम रखा जग नें, पर
बना दिया साकीबाला // 20
आज यहीं तक , ....कल फिर चलेंगे मधुशाला...........आप आयेंगे न ! आइयेगा.... ज़रूर.....
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जवाब देंहटाएंदुनिया में बाज़ार सजे हैं
हाथ अमीरों के है प्याला /
सब कुछ अपना बेच न देना
होश न खोना साकी बाला ....
behatreen prastuti.
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ज़ील जी !
जवाब देंहटाएं(क्या मैं इसका हिन्दी अनुवाद करके "जोश" लिख सकता हूँ ? यूँ भी आप लौह महिला तो हैं ही )
हाँ ! तो निवेदन यह है कि कृपया प्रतिक्रया वाले वर्ग में जाकर किसी में एक सही का निशान लगाने की भी कृपा कर दिया करें ......बिंदास ...किसी पर भी / हमें ईमानदार प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है .....आशा है इतना मान रखेंगी / लेखन में उत्तरोत्तर परिमार्जन के लिए आपका इतना संकेत ही समीक्षा के लिए सहयोगी होगा / धन्यवाद /