टैक्सी से उतरकर गंगा की ओर जा रहा हूँ. कई पण्डे आकर घेर लेते हैं.......पूजा....संकल्प......स्नान ......?
मैं विनम्रता से मना कर देता हूँ ...पर वे मानने वाले कहाँ ! जैसे-तैसे पीछा छुड़ाकर घाट तक पहुँचा.
लीजिये, वहां के कुछ दृश्य आपके लिए भी -
लीजिये, वहां के कुछ दृश्य आपके लिए भी -
सीढ़ियों पर फ़ैली गन्दगी का ढेर ......जूते..चप्पल....पोलीथिन....मूर्तियाँ (जो पूजा के बाद शायद सम्मान के योग्य नहीं रह गयीं थीं और उन पर किया गया विषाक्त रासायनिक रंग मछलियों को आत्महत्या करने के लिए सहज ही उपलब्ध कराने के लिए गंगा में विसर्जित की गयीं थीं )...सड़े फूल...निर्विकार लोग .......शिक्षा का बढ़ता स्तर .......पब्लिक स्कूलों की भरमार .......देश में बढ़ती उच्च .. शिक्षा.....गंगा प्रदूषण .......गंगा बचाओ अभियान......ऊंह छोडो न यार ! चलो आगे चलते हैं .........
एक ओर किसी परिवार को खड़े होकर संकल्प दिलाते हुए पंडा जी . एक ओर दक्षिणा के लिए झगड़ते पंडा जी. लुब्ध द्रष्टि से जजमान को तलाशते पंडा जी....युवा पंडा.....अधेड़ पंडा...वृद्ध पंडा ....भाँति-भाँति के पंडा जी....मुझे लगा....बिना पंडा को मध्यस्थ बनाए गंगा - स्नान भी संभव नहीं...... क्या स्वतंत्रतापूर्वक, बिना मंत्रोच्चारण के स्नान कर लेने पर कोई पाप लग जाएगा ? गंगा और श्रद्धालु के बीच ये मध्यस्थ क्यों ? आम आदमी की स्वतंत्रता का हरण करने वाले ये ठेकेदार कहाँ से आ गए ? उत्तर पूरे समाज को देना ही होगा. आज ...नहीं तो कल ......समय आपसे पूछेगा अवश्य.
मैं आगे बढ़ा .....नालियों का गंदा पानी गंगा में गिर रहा है ...उससे मात्र दस फिट की दूरी पर ही एक युवा श्रद्धालु जी हाथ में गंगा जल लेकर आचमन कर रहे थे .उनकी श्रद्धा देखकर आश्चर्य होना स्वाभाविक था, तुलना करके देखा ....मैं सचमुच "नास्तिक" होता जा रहा हूँ . चलो, जब कोलायीटिस होगा न! तब पता चलेगा कौन कितना नास्तिक है .
एक ही घाट पर स्त्री-पुरुष सभी का स्नान ....वहीं खुले में कपडे बदलतीं श्रद्धालु नारियां ...जो अन्य अवसरों पर अत्यंत लाजवंती हुआ करती हैं .......गंगा-स्नान के पुण्य-लोभ में कुछ समय के लिए "लोक-लाज बिसराय" परमहंस की गति को प्राप्त हो गयीं सी प्रतीत हो रही थीं.
एक ही घाट पर स्त्री-पुरुष सभी का स्नान ....वहीं खुले में कपडे बदलतीं श्रद्धालु नारियां ...जो अन्य अवसरों पर अत्यंत लाजवंती हुआ करती हैं .......गंगा-स्नान के पुण्य-लोभ में कुछ समय के लिए "लोक-लाज बिसराय" परमहंस की गति को प्राप्त हो गयीं सी प्रतीत हो रही थीं.
आगे बढ़ा .....एक युवा पंडा जी एक लडके को सीढ़ियों पर पड़े गन्दगी के ढेर को गंगा में जल्दी-जल्दी फेकने का निर्देश दे रहे थे ......लड़का बड़ी तत्परता से आज्ञा का पालन कर रहा था. मैंनें कहा गंगा को साफ़ करने के स्थान पर आप बाहर पड़ी गन्दगी गंगा में क्यों फिकवा रहे हैं ? पंडा जी नें अपने श्री मुखारविंद से उवाचा - यह सब तो प्रशासन को करना चाहिए...अधिकारी ध्यान ही नहीं देते, मैं क्या करूँ ?
मैंने कहा - गंगा सफाई अभियान के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है और आप गंगा को गंदा कर रहे हैं.
उन्हें अवसर प्राप्त हो गया .....शायद फूटने के लिए तैयार बैठे थे .....उवाचने लगे - ये करोड़ों रुपये अधिकारियों की जेब में जाते हैं, चारो ओर भ्रष्टाचार है ,गंगा की ओर कोई ध्यान ही नहीं देता...इसीलिये तो गंगा इतनी गंदी होती जा रही है.....
ब्रह्मावर्त के घाट पर, जहां पृथ्वी का केंद्र माना जाता है कई श्रद्धालु लोग पुण्य लाभ ले रहे थे ......पंडा जी उच्च स्वर में प्रशासन को कोसे जा रहे थे और श्रद्धालु निर्विकार भाव से पुण्य लूटे जा रहे थे.....
धन्य है भारत भूमि ! यहाँ सब कुछ कितने निस्पृह भाव से होता रहता है ......पाप भी, पुण्य भी ....
इतने अविचारी पंडों को पुण्य का मध्यस्थ बनाने वाले लोगों की जय हो !
गलत मंत्रोचारण कर लोगों को पुण्य दिलाने के ठेकेदार .......ब्राह्मणत्व (??????) को अधोगति की ओर धकेलते पंडों की जय हो !!
भारी मन से वापस आ गया ...बिना गंगा स्नान किये ...
पुण्य नहीं लूट सका ....मेरा तो नरक में जाना तय ही समझो .
वापस जाते समय पंडों नें विचित्र द्रष्टि से द्रष्टिपात किया , जैसे कह रहे हों ......वंचित रह गया बेचारा ब्रह्मावर्त आकर भी पुण्य नहीं ले सका ....मति मारी गयी है ...पुण्य हर किसी के भाग्य में लिखा भी कहाँ विधाता नें ?
हाँ ! ठीक ही तो विधाता नें ऐसा पक्षपात किया ही क्यों ? मैंने तो तय कर लिया है नरक में जाऊंगा तो पूछूंगा ज़रूर .
धन्य है भारत भूमि ! यहाँ सब कुछ कितने निस्पृह भाव से होता रहता है ......पाप भी, पुण्य भी ....
इतने अविचारी पंडों को पुण्य का मध्यस्थ बनाने वाले लोगों की जय हो !
गलत मंत्रोचारण कर लोगों को पुण्य दिलाने के ठेकेदार .......ब्राह्मणत्व (??????) को अधोगति की ओर धकेलते पंडों की जय हो !!
भारी मन से वापस आ गया ...बिना गंगा स्नान किये ...
पुण्य नहीं लूट सका ....मेरा तो नरक में जाना तय ही समझो .
वापस जाते समय पंडों नें विचित्र द्रष्टि से द्रष्टिपात किया , जैसे कह रहे हों ......वंचित रह गया बेचारा ब्रह्मावर्त आकर भी पुण्य नहीं ले सका ....मति मारी गयी है ...पुण्य हर किसी के भाग्य में लिखा भी कहाँ विधाता नें ?
हाँ ! ठीक ही तो विधाता नें ऐसा पक्षपात किया ही क्यों ? मैंने तो तय कर लिया है नरक में जाऊंगा तो पूछूंगा ज़रूर .
... bahut sundar ... jaandaar-shaandaar !!!
जवाब देंहटाएंगंगा के तट पर गन्दगी के जिम्मेदार सबसे ज्यादा वहाँ के पण्डे ही हैं। अपनी दूकान चलाने लिए वो कब पण्डे से गुंडे बन जाते हैं पता ही नहीं चलता। और हमारी अंधविश्वास में डूबी जनता , लगी रहती हैं अपनी ही धुन में, मोक्ष पाने के लिए ।
जवाब देंहटाएंउदय जी ! दिव्या जी !!
जवाब देंहटाएंव्यग्रता तो तब होती है जब देखता हूँ कि शिक्षित लोग भी उसी भीड़ का एक हिस्सा बन गए हैं, एक शिक्षित सा प्रतीत होने वाला परिवार एक पण्डे से संकल्प करवा रहा था ........मैंने पूछा ये संकल्प क्या पण्डे के मन्त्र पढ़ने से पूरा हो जाएगा ? संकल्प की सार्थकता तो तभी है जब वह आपका अपना डिटर्मिनेशन हो. वे मुस्कराए " ....अब बड़े -बूढों ने कहा तो मैंने भी सोचा चलो करवा ही लेते हैं संकल्प "
शिक्षितों से ऐसे उत्तर की आशा नहीं की जाती,...दिव्या जी ! फिर वही बात आ गयी.....शिक्षा की सार्थकता और व्यर्थता...... हम साक्षर हो रहे हैं ...शिक्षित नहीं .....संस्कारित नहीं , ...सारा रोना तो यही है न !
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जवाब देंहटाएंकौशलेन्द्र जी,
सही कहा आपने। लोग शिक्षित होने के बाद भी अनपढ़ों की तरह व्यवहार करते हैं। अन्विश्वासों से ऊपर उठकर सोचना ही नहीं चाहते। तरस आता है ऐसे लोगों पर।
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