सभी को मंगलकामनाओं के साथ शुरू करते हैं उत्तर मधुशाला का वह भाग जो लखनऊ के काजी साहब नें मधुशाला के ख़िलाफ़ फ़तवा ज़ारी करके मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया ......उन्हें तहे दिल से शुक्रिया ....बड़ी विनम्रता के साथ समर्पित हैं काजी साहब को ये रुबाइयां -
सभी धर्म ग्रंथों को जीकर
सार सुनाती मधुशाला /
फ़तवा वही सुनाते जिनको
समझ न आती "मधुशाला" // २१
बाह्य कलेवर में भटका जो
पी न सकेगा वो हाला /
भीतर नेक उतर जो देखे
पा जाएगा "मधुशाला" // २२
धर्म-धर्म की रट करते सब
मर्म समझ ना कोई पाया /
कर्म संभालो अपने-अपने,
होगी मधुमय कड़वी हाला // २३
छोडो कटु भाषा फ़तवे की
बोलो प्रेम पगी भाषा /
खुली नज़र से देखो तो जग
चलती-फिरती मधुशाला // २४
टूटा मन , ले टूटी आशा
जो भी आ जाए मधुशाला /
सबको अपने-अपने रंग की
मिल ही जाती थोड़ी हाला // २५
पाखण्ड नहीं है यहाँ लेश भी
भग्न हृदय हो, मन हो साँचा /
तनिक लीक से हटकर आओ /
तुम्हें बुलाती है मधुशाला // २६
मान मिला कब जग से हमको,
सदा ही तरसी है "मधुशाला" /
नफ़रत कर लो कितनी भी, पर
भूल सकोगे ना ये हाला // २७
कितने ही रंगों की हाला
देख भ्रमित है पीने वाला /
सच्चे मन से खोजे जो भी
पा जाता है असली हाला // 28
मान मिला कब जग से हमको,
जवाब देंहटाएंसदा ही तरसी है "मधुशाला" /
नफ़रत कर लो कितनी भी, पर
भूल सकोगे ना ये हाला // २७
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Awesome !
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