साकी इस बार पिलाई कैसी !
मैं तो था इस जग से रूठा /
सारी दुनिया हो गयी मेरी
ऐसी तूने ढाली हाला //
खोज रहा हूँ , न्याय कहाँ है ?
लेकर अपना खाली प्याला /
जिसने उसका मोल चुकाया
हो गयी उसकी मधुशाला //
लोग उजाले से डरते हैं
पीते हैं 'तम' की हाला /
हर कोई झूठे नशे में डूबा
सूनी रहती मधुशाला //
नयनों से ले मेरा काजल
उसने फिर श्रृंगार किया /
पीकर तारीफों की हाला
तोड़ दिया मेरा ही प्याला //
ईमान दिया , ईनाम लिया
कर मुह काला पहनी माला /
"नशा" शर्म से डूब मरा है
पानी -पानी हो गयी "हाला" //
ईमान दिया , ईनाम लिया
जवाब देंहटाएंकर मुह काला पहनी माला
"नशा" शर्म से डूब मरा है
पानी -पानी हो गयी "हाला
बहुत सुन्दर बिंदास रचना .... वाह
भाई मिश्र जी !
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार .
यूँ ही उत्साहवर्धन करते रहिएगा .......हमारा प्रयास रहेगा कि हम आपको मनोरंजन के साथ-साथ सन्देश भी देते रहें ......मैंने देखा है ...लोग रास्ट्रपति पुरस्कार तक खरीद लेते हैं .....कुपात्रों को शीर्ष पुरस्कार ?......हमारी व्यवस्था कैसी हो गयी है ?