मंगलवार, 2 नवंबर 2010

मुखौटे बड़े काम के हैं

बहुत सहज है
कर देना 
औरों पर दोषारोपण 
पर
सच तो यह है 
कि घात लगाकर बैठे हैं 
हम सब /
मिलते ही अवसर ज़रा सा
लुप्त हो जाते हैं हमारे 
सारे आदर्श /
तब
नहीं रह पाते हम 
दार्शनिक.....
धार्मिक.....
और चरित्रवान....
और दिनों की तरह /
ये मुखौटे तो तभी तक हैं
जबतक 
मिलते नहीं अवसर /


बहती गंगा में हाथ धोते समय
कभी......कहीं
द्वन्द तक नहीं होता मन में
और
बड़े मज़े से 
इसी द्वैत में जी लेते हैं हम /
अन्दर 
हमारा 'मैं' है
और ऊपर
मेरा 'हम' /
कुशल नट की तरह
संतुलन बनाए रखने में 
सिद्धहस्त हैं हम /
सचमुच,
मुखौटे बड़े काम के हैं /
मैं इस द्वैताचार को
अक्सर देखा करता हूँ
और खोजता रहता हूँ
इन सबके बीच 
अपना गौरवपूर्ण इतिहास
जो मुझे 
कहीं दिखाई नहीं देता /
पिछले दिनों
जब आतंकी हमला हुआ था
मुझे लगा था
कोई भी आतंकवाद
इतना खतरनाक नहीं हो सकता 
जितना कि 
हमारा चरित्र / 











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