व्यापारी हैं सारे रिश्ते
राह निहारे साकीबाला /
कहीं मिले ना सुकूं अगर, तो
आ जाना तुम मधुशाला /
उतरे चढ़ कर, ऐसी हाला
से मत भरना अपना प्याला /
कहीं मिले तो ले आना तुम
भरे हृदय की धधकी ज्वाला /
दाम चुका कर भी न मिलेगी
मैं पीता हूँ जो हाला /
सारे जग की पीड़ा तपकर
बन पाती है असली हाला /
ताक रहा क्यों इधर-उधर तू
करके अपना खाली प्याला /
तेरे हिस्से में जितनी है
उतनी पी, हो जा मतवाला /
औरों को कर देती बेसुध
होश में रहकर साकीबाला /
होश संभालो अपने-अपने
जग की रीत है मधुशाला /
बेहद उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबाल दिवस की शुभकामनायें.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
वन्दना जी ! सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंमधुशाला की इस प्रस्तुति को साहित्यिक मंच पर चर्चा हेतु चुनने के लिए सादर आभार /
कल आपके आदेश का पालन अवश्य होगा
सुन्दर---
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